तहलका टुडे टीम
बाराबंकी,आज रामनाथ सोनी की आंखों में आंसू थे, लेकिन आज वे आंसू दुःख के नहीं, बल्कि संतोष और न्याय की भावना से भरे थे। बरसों से बेटे की हत्या का गम और न्याय पाने की जद्दोजहद में संघर्षरत रामनाथ आज अपने जीवन के सबसे बड़े मकसद में सफल हुए। उनके इकलौते बेटे दिवाकर सोनी के हत्यारों को आखिरकार अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई। यह निर्णय उनके लिए न केवल इंसाफ की जीत थी, बल्कि उनके बेटे की आत्मा की शांति का प्रतीक भी।
घटना का विवरण
20 सितंबर 2017 को, दिवाकर सोनी, जो अपने पिता रामनाथ की आंखों का तारा था, एक दर्दनाक हादसे का शिकार हुआ। फतेहपुर थाना क्षेत्र के मालगोदाम रोड पर, मुकेश कुमार गुप्ता और सुनील यादव ने एक राय होकर पिकअप वाहन (UP 41 AT 3020) से उसे कुचलकर हत्या कर दी। इस घटना ने न केवल रामनाथ के परिवार को, बल्कि पूरे क्षेत्र को भी हिला कर रख दिया। दिवाकर की मौत की खबर सुनते ही पूरे गांव में मातम पसर गया और रामनाथ के दिल पर ऐसा घाव लगा जिसे शायद ही कोई भर सकता।
न्याय की लड़ाई
दिवाकर की हत्या के बाद, रामनाथ ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपने बेटे के लिए न्याय की गुहार लगाई और एक लंबी कानूनी लड़ाई की शुरुआत की। मामला थाना फतेहपुर में मु० अप० संख्या 306/2017 के तहत धारा 302 IPC के अंतर्गत दर्ज किया गया। हालाँकि न्याय प्राप्त करना एक लंबा और कठिन सफर था, लेकिन रामनाथ ने हर मुश्किल का सामना किया। कई बार उन्हें निराशा हाथ लगी, लेकिन उन्होंने अपने बेटे की स्मृति में न्याय की इस लड़ाई को कभी नहीं छोड़ा।
अदालत का फैसला
यह मामला विशेष न्यायाधीश, उमेश चंद पाण्डेय की अदालत में चला। श्री पाण्डेय ने गवाहों और सबूतों की गहन छानबीन की और मुकेश कुमार गुप्ता और सुनील यादव को दोषी पाया। दोनों अभियुक्तों ने एक राय होकर दिवाकर की हत्या की साजिश रची थी। न्यायालय ने दोनों को आजीवन कारावास और 50-50 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। अदालत का यह फैसला रामनाथ और उनके परिवार के लिए एक नई उम्मीद लेकर आया।
सरकारी वकील और पुलिस का योगदान
इस मामले में सरकार की ओर से सहायक सरकारी अधिवक्ता अरविंद राजपूत ने पैरवी की। उनकी सटीक दलीलों और तथ्यों ने अदालत को अभियुक्तों की साजिश और उनके द्वारा की गई क्रूरता को स्पष्ट रूप से दिखाया। इसके अलावा, थाना फतेहपुर के पैरोकार राजा शंकर मिश्रा ने गवाहों के समय पर प्रस्तुतीकरण के माध्यम से मामले के विचारण को पूरा किया। अदालत में हर सुनवाई के दौरान उन्होंने अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया, ताकि दोषियों को सजा दिलाई जा सके।
इस न्यायिक प्रक्रिया में कोर्ट मुहर्रिर अंतिमा सिंह का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने प्रभावी पैरवी करते हुए न्यायालय को अभियुक्तों की साजिश और उनके अपराध की पुष्टि के लिए सबूत पेश किए। उनकी मेहनत और समर्पण की बदौलत रामनाथ को अपने बेटे के लिए न्याय मिल पाया।
रामनाथ की प्रतिक्रिया
फैसले के बाद, रामनाथ ने कहा, “मेरे बेटे की जान तो वापस नहीं आ सकती, लेकिन मुझे संतोष है कि उसके हत्यारों को सजा मिली। दिवाकर की आत्मा अब शांति से होगी। मैंने उसके लिए जो किया, वह एक पिता का फर्ज था।” उन्होंने इस लड़ाई में अपने परिवार और समाज के समर्थन का आभार व्यक्त किया। उनके अनुसार, यह जीत न केवल उनकी है, बल्कि पूरे समाज की है, जो अन्याय के खिलाफ खड़ा हुआ और एक निर्दोष के लिए न्याय की लड़ाई लड़ी।
न्याय की जीत
रामनाथ का यह संघर्ष न्याय की प्रणाली में विश्वास का प्रतीक है। हालांकि, इस सफर में उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपने हौसले को कमजोर नहीं होने दिया। उनके इस जज्बे ने यह साबित कर दिया कि चाहे कितनी भी लंबी और कठिन लड़ाई क्यों न हो, अगर इरादे मजबूत हों, तो न्याय अवश्य मिलता है।
दिवाकर की मौत एक दर्दनाक घटना थी, जिसने उसके परिवार की जिंदगी को बदल कर रख दिया। लेकिन रामनाथ ने उस गम को अपनी ताकत बनाया और अपने बेटे के हत्यारों को सजा दिलाने में सफल रहे। यह कहानी न केवल उनके साहस और संघर्ष की है, बल्कि यह इस बात का भी उदाहरण है कि न्याय की जीत के लिए लड़ने वालों के साथ हमेशा सच खड़ा होता है।
न्याय प्राप्त करने की कठिनाई
भारत जैसे देश में न्यायिक प्रक्रिया अक्सर लंबी और जटिल होती है। ऐसे मामलों में पीड़ित परिवार को अक्सर पुलिस और प्रशासनिक तंत्र के साथ भी संघर्ष करना पड़ता है। रामनाथ को भी कई बार बाधाओं का सामना करना पड़ा। कई बार उन्हें सबूत जुटाने और गवाहों को अदालत में लाने में परेशानी आई। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। पुलिस थाने और अदालत के चक्कर काटते हुए उन्होंने अपनी लड़ाई जारी रखी।
थाना फतेहपुर के पैरोकार राजा शंकर मिश्रा का सहयोग इस मामले में बहुत अहम साबित हुआ। उन्होंने गवाहों को समय पर अदालत में प्रस्तुत किया और हर गवाही को सटीक और प्रभावी तरीके से पेश किया, ताकि अदालत के सामने सच्चाई पूरी तरह उजागर हो सके। उनके समर्पण और समयबद्ध कार्यशैली ने इस मामले को एक निर्णायक मुकाम तक पहुंचाने में मदद की।
न्यायिक प्रणाली में विश्वास
यह कहानी इस बात का प्रतीक है कि भले ही न्याय की प्रक्रिया लंबी हो, लेकिन अगर पीड़ित और उनके समर्थक हार न मानें, तो अंततः सच्चाई की जीत होती है। न्यायाधीश उमेश चंद पाण्डेय द्वारा सुनाए गए इस फैसले ने यह साबित कर दिया कि न्यायपालिका में अभी भी सच्चाई और ईमानदारी का स्थान है। हालांकि रामनाथ और उनके परिवार ने इस सफर में बहुत कुछ खोया, लेकिन उन्हें यह संतोष है कि उनके बेटे की आत्मा को अब शांति मिलेगी और भविष्य में कोई और निर्दोष इस तरह का शिकार नहीं बनेगा।
न्याय की प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता
हालांकि, यह भी सच है कि न्यायिक प्रक्रिया को सरल और शीघ्र बनाने की आवश्यकता है। दिवाकर की हत्या का मामला 2017 में दर्ज हुआ था, और इसका फैसला आने में कई साल लग गए। इस अवधि में रामनाथ और उनके परिवार को मानसिक, शारीरिक, और आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ा। ऐसे मामलों में पीड़ित परिवारों के लिए एक सुव्यवस्थित और त्वरित न्यायिक प्रक्रिया बहुत महत्वपूर्ण है, ताकि उन्हें लंबे समय तक इंतजार न करना पड़ता।
दिवाकर की यादें और विरासत
रामनाथ के लिए, दिवाकर केवल एक बेटा नहीं था, बल्कि उसका जीवन, उसकी उम्मीदें, और उसके भविष्य के सपने थे। दिवाकर की मौत के बाद भी उसकी यादें आज भी रामनाथ के दिल में बसी हुई हैं। वे अपने बेटे के नाम पर एक छोटी सी लाइब्रेरी बनाने की योजना बना रहे हैं, जहां गांव के बच्चे पढ़ सकें और दिवाकर के नाम को जीवित रख सकें। उनका मानना है कि दिवाकर की स्मृति को जीवित रखना और उसे न्याय दिलाना उनके जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य था, और अब वे इसे समाज की सेवा के रूप में आगे बढ़ाना चाहते हैं।
न्याय की जीत – समाज के लिए एक प्रेरणा
रामनाथ की यह कहानी केवल उनकी जीत की नहीं है, बल्कि यह उन सभी लोगों के लिए एक प्रेरणा है जो न्याय के लिए लड़ रहे हैं। यह दिखाती है कि अगर हम अपनी लड़ाई में दृढ़ और समर्पित रहते हैं, तो अंततः सच्चाई और न्याय की जीत होती है।
रामनाथ की आंखों में आंसू अब भी हैं, लेकिन इन आंसुओं में दुःख नहीं, बल्कि सुकून है।