तहलका टुडे टीम
बाराबंकी -राम सेवक यादव एक नाम नही मोहब्बत और गरीबो के लिए संघर्ष करने की शख्सियत है,जो हर इंसानियत पसंद इंसान के दिलो पर छाई रहती है आज इस महापुरुष की पुण्य तिथि है सुबह सुबह समाजवाद का परचम ज़िंदा किये हर दिल अज़ीज़ पूर्व मंत्री अरविंद सिंह गोप पहुच गये उनकी समाधि पर पुष्प गुच्छ भेंट कर चित्र पर माला पहनाकर कुछ दिल ही दिल मे कहा भी जो सुना नही जा सका
मालूम हो इंक़लाबी नेता राम सेवक यादव सन 1957 से 1971 तक लगातार बाराबंकी से सांसद रहे।और और विपक्ष में अपने दल के नेता रहे। वे समाजवाद को प्रतिष्ठित करने में डॉ राम मनोहर लोहिया के साथ कदम से कदम मिलाकर जीवन भर संघर्ष करते रहे और उन्होंने सन 1960 में ही दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों,और आदिवासियों और महिलाओं को आरक्षण दिलाने की मांग उठाते रहे उनसे सदन में सत्ता पक्ष के लोग हमेशा घबराते रहे। लोहिया जी के सबसे विश्वसनीय साथी रहे।
उनके इंक़लाबी तेवर को नेता मुलायम सिंह यादव भी बहूत पसंद करते है,
रामसेवक यादव के खानदान की शराफत का आज भी कोई जवाब नही
विरासत में पाई इस शराफत और सियासत के गुर में आस्तीन के सांपो ने रुकावट ज़रूर पैदा की है।लेकिन आज भी इस खानदान का एहतेराम और सियासत में इस्तेमाल आज भी है
इस मौके पर अरविंद गोप ने कहा कि स्व राम सेवक यादव जी के बताए हुए रास्ते पर चलने की जरूरत है ताकि सर्वसमाज का उद्धार हो सके।
इस अवसर पर उनके साथ मौजूद स्वर्गीय रामसेवक यादव के सुपुत्र अमिताभ यादव और उनके पोते हिमांशु यादव,अनिल कुमार यादव पूर्व जिला अध्यक्ष समाजवादी पार्टी,डॉ कुलदीप सिंह,उपाध्यक्ष अजय वर्मा बबलू ,हशमत अली गुड्डू,नसीम कीर्ति,पंकज यादव,लल्ला यादव सभासद, यशवंत यादव,सुरेंद्र यादव,आदि तमाम लोग उपस्थित रहे।
22 नवम्बर- स्व. रामसेवक यादव और मुलायम सिंह यादव को जोड़ती तारीख
कलमकार अरविंद विद्रोही अपने अंदाज में लिखते है कि
तारीखों का अपना महत्व अलग ही होता है। पुरखों, शख्सियतों को प्रति दिन स्मरण करना, उनके आदर्शों-संकल्पों का स्मरण करना, स्वयं अपने चारित्रिक-मानसिक विकास के लिए अत्यंत कारगर होता है। परन्तु पुरखों- शख्सियतों के जन्मदिन व पुण्य तिथि को विशेष यादगार दिवस के रूप में मनाना एक अच्छी सोच व सच्चे अनुयायी के प्रत्यक्ष परिलक्षित होने वाले गुणों में से एक होता है। अद्भुत संयोग की घड़ी तब आ जाती है जब एक ही दिन दो शख्सियतों का मेल हो जाये। तमाम ऐसे ही दिवसों में से एक दिवस 22 नवम्बर भी है, इस दिन समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव का जन्म दिन तो है ही आज ही के दिन 1974 में समाजवादी पुरोधा राम सेवक यादव की आत्मा ने अपने नश्वर शरीर का त्याग कर परिनिर्वाण की प्राप्ति की थी।
वर्तमान सामाजिक राजनितिक फलक पर समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव एक बहुचर्चित राजनेता है। उत्तर प्रदेश के जनपद इटावा के सैफई गाँव में माता श्रीमती मूर्तिदेवी के कोख से जन्मे मुलायम सिंह यादव के जन्म 22नवम्बर, 1939 के समय उनके जन्मदाता पिता श्री सुघर सिंह यादव ने भी तनिक कल्पना नहीं की होगी कि उनकी संतान के रूप में जन्मा यह अबोध बालक करोड़ों-करोड़ गरीबो-मज़लूमों-पीडितों-वंचितों-आम जनों का दुःख हर्ता बनकर युगों-युगों तक के लिए कुल का नाम रोशन करेगा। क्या उस वक़्त किसी ने भी तनिक सा सोचा होगा कि एक किसान के घर जन्मा यह बालक मुलायम अपनी वैचारिक-मानसिक दृठता और कुशल संगठन क्षमता के बलबूते समाजवादी विचारक डॉ. राम मनोहर लोहिया का सबसे बड़ा जनाधार वाला अनुयायी व उनके संकल्पों, उनके विचारो को प्रचारित-प्रसारित करने वाला बनेगा? और स्व. राम सेवक यादव का नाम जनसाधारण, नई समाजवादी पीढ़ी के लोगों के लिए अनजाना सा हो गया है। सवाल लाज़मी है कि आखिर राम सेवक यादव थे कौन ? रामसेवक यादव ही वह शख्स थे जिन्होंने युवक मुलायम सिंह यादव की प्रतिभा को पहचान कर युवजन सभा की जिम्मेदारी सौपीं थी और राजनीति में आगे किया था।
ग्राम ताला मजरे रुक्मुद्दीनपुर पोस्ट थल्वारा (वर्तमान में पोस्ट रुक्मुद्दीनपुर ) परगना व थाना सुबेहा हैदरगढ़ जनपद बाराबंकी के एक संपन्न कृषक परिवार में हुआ था। पिता श्री राम गुलाम यादव को किंचित भी आभास न था कि उनका यह वरिष्ठ पुत्र देश की राजनीति में अपना व जनपद का नाम रोशन करेगा। दो अनुजों क्रमशः प्रदीप कुमार यादव और डॉ. श्याम सिंह यादव तथा तीन बहनों क्रमशः रामावती, शांतिदेवी व कृष्णा के सर्व प्रिय भाई रामसेवक यादव की प्राथमिक शिक्षा कक्षा 4 तक की ग्राम ताला में ही हुई। मिडिल 5 -6 की शिक्षा अपने एक करीबी रिश्तेदार जो कि मटियारी-लखनऊ में रहते थे, के घर पर रहकर ग्रहण करी। कक्षा 7 की शिक्षा के लिए बाराबंकी के सिटी वर्नाक्युलर मिडिल स्कूल में दाखिला लिया। सिटी वर्नाक्युलर मिडिल स्कूल से कक्षा 8 की परीक्षा में सफल होने के पश्चात् हाई स्कूल की शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्थानीय राजकीय हाई स्कूल में राम सेवक यादव ने दाखिला लिया। इंटर मीडियट की शिक्षा रामसेवक यादव ने कान्य कुब्ज इंटर कॉलेज से पूरी करी। उच्च शिक्षा स्नातक व विधि स्नातक की उपाधि लखनऊ विश्व विद्यालय से ग्रहण करके रामसेवक यादव ने बाराबंकी जनपद में वकालत करना प्रारंभ किया।
आज़ादी के पश्चात् 1952 के चुनाव में कांग्रेस व नेहरु के नाम का डंका बज रहा था, वहीं दूसरी तरफ आज़ादी के पश्चात् देश में बुराई की जननी कांग्रेस व नेहरु को मानने वाले समाजवादी पुरोधा डॉ. राम मनोहर लोहिया सोशलिस्ट पार्टी के माध्यम से देश के ग्रामीण जनता के हितकारी विचार व कार्यक्रम देने में जुटे थे। बाराबंकी लोकसभा सीट पर कांग्रेस के दमदार प्रत्याशी जगन्नाथ बक्श सिंह के मुकाबिल सोशलिस्ट पार्टी ने रामसेवक यादव को अपना प्रत्याशी बनाया। 1952 का यह चुनाव रामसेवक यादव हार गए थे लेकिन सामाजिक राजनीतिक सक्रियता व प्रभाव बढ़ता गया।
बाराबंकी जनपद में 1955-56 में अलग अलग घटनाओ में कांग्रेस के विधायक भगवती प्रसाद शुक्ला और सोशलिस्ट पार्टी के विधायक लल्ला जी की हत्या हो गयी। सोशलिस्ट पार्टी के विधायक लल्ला जी की हत्या अपने मित्र सियाराम से मित्रता निभाने के परिणामस्वरूप हुई थी। लल्ला जी की हत्या के प्रतिकार स्वरूप रामसेवक यादव ने जनता को जगाने का शुरू किया तथा जालिमों – हत्यारों के इलाकों में जाकर सोशलिस्ट पार्टी की बैठकों -सभाओं का आयोजन किया। सोशलिस्ट पार्टी के विधायक स्व. लल्ला जी की श्रद्धांजलि सभा बड्डूपुर में समाजवादी पुरोधा डॉ. राममनोहर लोहिया ने कहा था कि — लल्ला जी की शहादत ने यह साबित कर दिया है कि खाली एक माँ के पेट से पैदा होने वाले ही दो सगे भाई नहीं होते बल्कि अलग-अलग माँ के पेट से पैदा होने वाले भी सगे भाई हो सकते हैं। सोशलिस्ट पार्टी के नेता रामसेवक यादव द्वारा लल्ला सिंह – सियाराम की हत्या के विरोध में जनांदोलन व मजबूत अदालती पैरवी के चलते ही मुख्य अभियुक्त भोला सिंह 26 सहित लोगों को दोहरे हत्याकांड के इस मामले में सजा हुई थी। 1956 के दौरान हुए उत्तर प्रदेश विधान सभा उप चुनाव में रामसेवक यादव रामनगर विधान सभा से विजयी हुए। 1957 के आम चुनावों में बाराबंकी जनपद की पर सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार जीते थे। 1957-62, 1962-67 और 1967-71 तीन बार रामसेवक यादव लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य रुधौली से 1974 में निर्वाचित हुए और उपभोक्ता विभाग और अध्यक्ष लोक लेखा समिति भी रहे। आपकी मृत्यु सिरोसिस ऑफ़ लीवर बीमारी के कारण हुई।
रामसेवक यादव मन से गरीबों के दोस्त व वंचितों के साथी थे। अपने गुणों के कारण ही वे डॉ. लोहिया के प्रिय थे। पार्टी की जिम्मेदारी के साथ साथ डॉ. लोहिया ने रामसेवक यादव को लोकसभा में पार्टी संसदीय दल का नेता भी बनाया था। स्व. रामसेवक यादव, डॉ. राम मनोहर लोहिया के अति प्रिय थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु से एक प्रसंगवश डॉ लोहिया ने लिखा / कहा था कि सदन के भीतर रामसेवक जी मेरे नेता हैं और सदन के बाहर सड़क और संगठन में मैं उनका नेता हूँ। सदन से सम्बंधित कोई भी वार्ता आपको रामसेवक जी से करनी चाहिए मुझसे नहीं।
स्व. रामसेवक यादव के बाल्य काल से मित्र रहे वयोवृद्ध समाजवादी नेता अनंत राम जायसवाल (पूर्व मंत्री-पूर्व सांसद ) की नज़र में रामसेवक यादव के अन्दर आम जनता को जोड़ने और उनके लिए लड़ने की असीम ताकत थी, वो सही मायनों में गाँव -गरीब के नायक थे। स्व. रामसेवक यादव के राजनीतिक उत्तराधिकारी अरविन्द कुमार यादव ( पूर्व विधान परिषद् सदस्य ) के अनुसार डॉ लोहिया, राम सेवक यादव के पश्चात् अब समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी आन्दोलन व संघर्ष को नूतन आयाम दिए है।
स्व. राम सेवक यादव जी के युवा शिष्यों में से एक ईमानदारी की जीती जागती मिसाल बंकी विकास खंड के चार बार ब्लाक प्रमुख रहे श्री नन्हे सिंह यादव जी ने स्व. राम सेवक यादव की संगठन कुशलता और ग्रामीणों से संवाद स्थापित करने के विषय में, उनके साथ अपनी राजनैतिक यात्राओं के विषय में बताया था मुझे।
मेरे स्व. पिता नरेश चन्द्र श्रीवास्तव( अध्यक्ष -खंड विकास अधिकारी सेवा संगठन ) स्व. राम सेवक यादव जी को गरीबों का मसीहा कहते थे। मुझे याद है कि रेल मंत्री रहते हुए नितीश कुमार जी एक बार लखनऊ आये थे तब मेरे पिता ने मुझसे कहा था कि तुम नितीश कुमार से मिलने पर उनसे कहना कि स्व. राम सेवक यादव के नाम से कोई विशेष ट्रेन संचालित करें या किसी योजना की शुरुआत करें।
परन्तु अफ़सोस है कि समाजवादी पुरोधा स्व. रामसेवक यादव जी के नाम से कोई भी सरकारी योजना की शुरुआत नहीं हुई, कोई भी सार्वजानिक उपवन या उद्यान का निर्माण नहीं हुआ। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में लखनऊ में निर्मित डॉ. राम मनोहर लोहिया पार्क में एक स्मृति स्तूप स्व. रामसेवक यादव जी का है। बाराबंकी में कुछ एक शैक्षिक संस्थान /विद्यालय स्व. रामसेवक यादव जी के नाम पर संचालित हैं परन्तु उनके व्यक्तित्व के प्रचारार्थ कोई भी संस्थान रूचि नहीं रखता। लगभग आधा दर्जन प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। प्राप्त जानकारी के आधार पर सिर्फ एक उल्लेखनीय कार्य स्व. रामसेवक यादव जी के नाम पर होने की बात प्रकाश में आई है। वरिष्ठ राजनेता बेनी प्रसाद वर्मा ने केन्द्रीय दूरसंचार मंत्री रहते हुए स्व. रामसेवक यादव जी पर डाक टिकट जारी किया था।
मुझे यह जानकर कतई आश्चर्य नहीं हो रहा है कि खुद को समाजवादी विचारधारा का मानने वाले अधिसंख्य युवा स्व. रामसेवक यादव जी को, उनके व्यक्तित्व व कर्मों को नहीं जानते हैं। दरअसल तमाम समाजवादी पुरोधाओं के जीवन संघर्षों को बताने, उनके जन्मदिन, पुण्यतिथि पर विचार गोष्ठियों के आयोजन होने की आवश्यकता थी और है परन्तु कुछ एक आयोजनों के अतिरिक्त समाजवादी विचारधारा और उसके अनुसरण को ग्रहण लग चुका है। विचारधारा के प्रशिक्षण, प्रसार और राजनैतिक आयोजन में बहुत अंतर होता है इसका ध्यान होना चाहिए।
आज जरूरत है समाजवादी युवाओ को स्व. रामसेवक यादव सरीखे समाजवादी आन्दोलन की आधार शिलाओं को स्मरण करने का, उनके संघर्षो-विचारो के अनुपालन का।