

बहुजन समाज पार्टी इन दिनो संकट से गुजर रही है। यह संकट वजूद का है। हाल ही में हुए उपचुनावों में उसके पास एक भी सीट नही आई। लोकसभा चुनावों में उसे जो 10 सीटें मिलीं, उसमें समाजवादी पार्टी के वोट बैंक का बड़ा हिस्सा माना जा रहा है। ऐसे में बीएसपी ने अपना पूरा कलेवर बदलने का इरादा कर लिया है। मगर असली समस्या पावर सेंटर की है।
उत्तर प्रदेश में 11 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने को-ऑर्डिनेटर मंडल और जोन व्यवस्था भंग कर दी है। वह बेहद परेशान हैं। उनके तमाम सियासी दांव असफल हुए जा रहे हैं। अब उन्होंने नए सिरे से पार्टी का पुर्नगठऩ करने की कोशिश की है। अब पार्टी में सेक्टर व्यवस्था लागू करने की बात की जा रही है।
मायावती के सामने सबसे बड़ा संकट पार्टी की नीतियों का है। पार्टी के पास अपनी कोई ऐसी नीति नही है जो मतदाताओं को एकजुट कर सके। उत्तराधिकार का संकट भी ज्यों का त्यों है। मायावती अपने भतीजे आकाश को सामने लेकर आई हैं। मगर आकाश के सामने सबसे बड़ा संकट अपनी खुद की जमीन का है। बसपा ने नए कलेवर के तहत पूरे यूपी को चार सेक्टर में विभाजित कर दिया है। बूथ कमेटियों को मजबूत करने के निर्देश दिए गए हैं।मायावती ने बीएसपी कार्यकर्ताओं को 2022 के विधानसभा चुनावों के लिए तैयारी करने का निर्देश दिया है। साथ ही साथ उपचुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन को लेकर पार्टी के नेताओं से रिपोर्ट भी तलब की है।
जानकारी के मुताबिक मायावती पार्टी पदाधिकारियों से बेहद नाराज हैं। उधर पार्टी पदाधिकारी पार्टी को वन वे ट्रैफिक मानकर चल रहे हैं। उन्हें मायावती के निर्देशों का पालन करना होता है मगर मायावती उनकी नही सुनतीं। ये आम शिकायत है। अब बदलाव करते हुए बहुजन समाज पार्टी में नए चेहरों को भी जगह दी जा सकती है। बसपा सुप्रीमो की तरफ से पार्टी संगठन के स्वरूप में आमूलचूल परिवर्तन भी किया जा सकता है।
बसपा का वजूद यूपी से है। मगर वह यूपी में ही अप्रसांगिक होने की कगार पर है। हैरान परेशान बसपा ने यूपी में चार सेक्टर बनाए हैं। इन दो सेक्टरों में 5-5 मंडल शामिल किए गए हैं जबकि बाकी दो सेक्टरों में 4-4 मंडल रखे गए हैं। पहले सेक्टर में लखनऊ, बरेली, मुरादाबाद, सहारनपुर और मेरठ को रखा गया है जबकि दूसरे सेक्टर में आगरा, अलीगढ़, कानपुर, चित्रकूट और झांसी हैं। तीसरे सेक्टर में इलाहबाद, मिर्जापुर, फैजाबाद और देवीपाटन हैं जबकि चौथे सेक्टर में वाराणसी, आजमगढ़, गोरखपुर और बस्ती होंगे। इन सभी चार सेक्टरों की जिम्मेदारी अलग-अलग नेताओं को दी जाएगी। उसी के मुताबिक हर नेता से कामकाज का हिसाब लिया जाएगा। मायावती ने यह भी साफ कर दिया है कि जो ठीक से काम नहीं कर सकते हैं वो अपनी जगह कहीं और देख लें।
मगर मायावती की इन बातों और कदमों से जमीन पर कोई भी असर पड़ता नजर नही आ रहा है। उनकी समस्या तेजी से उभरते दलित नेता चंद्रशेखर भी बढ़ा रहे हैं। वह मायावती से बार बार एक मंच पर आने की अपील कर रहे हैं। चंद्रशेखर ने मायावती को चिठ्ठी लिख सत्तारूढ़ बीजेपी से लड़ने के लिए एक साथ आने का प्रस्ताव भेजा था, जिसे मायावती ने अस्वीकार कर दिया।
चंद्रशेखर ने मायावती को 4 पन्ने की चिट्ठी लिखी थी, जिसमें उन्होंने बताया कि देश में साम्प्रदायिक-जातिवादी शक्तियों का बोलबाला बढ़ रहा है। उन्होंने लिखा, ‘2014 से 2019 के बीच बीजेपी की ताकत बढ़ी है। दक्षिण भारत को छोड़कर लगभग बाकी सभी ओर बीजेपी का दबदबा मजबूत हुआ है। बहुजन आंदोलन के लिए सबसे मजबूत गढ़ उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी की वापसी हुई है। बहुजन समाज के लिए यह कठिन दौर है। बीजेपी के शासन में बहुजन समाज पर अत्याचार बढ़ा है उसके अधिकार छीने गए हैं। लेकिन मायावती नही पसीजीं। उन्होंने साफ कर दिया कि उनका चंद्रशेखर के साथ कोई संबंध नहीं है.
यूपी के सहारनपुर जिले से ताल्लुक रखने वाले चंद्रशेखर और बीएसपी सुप्रीमो के बीच संबंध अच्छे नहीं है। हालांकि, कई बार चंद्रशेखर उन्हें बुआ कहकर बुलाते हैं, लेकिन बुआ ने बार बार इस बात पर जोर दिया है कि उनका चंद्रशेखर के साथ कोई संबंध नहीं है। चंद्रशेखर, मायावती को प्रधानमंत्री के रूप में देखने की इच्छा भी जाहिर कर चुके हैं, जबकि मायावती, चंद्रशेखर पर बीजेपी की कठपुतली होने का आरोप लगाती रही हैं। इस बीच मायावती ने आगरा और अलीगढ़ जोन में अनुशासनात्मक कार्यवाही की है। कई नेताओं को पार्टी से बाहर कर दिया है। जाहिर सी बात है कि मायावती बेहद परेशान हैं मगर कोई रास्ता नही दिख रहा है। बीएसपी को भीतर से जानने वाले राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी के भीतर लोकतंत्र की सुगबुगाहट उभरने लगी है जो मायावती के लिए अच्छे संकेत कतई नही हैं।