अयातुल्लाह खामेनाई की रहबरी में विश्व में शांति का रहनुमा बनकर उभरा ईरान, राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन की विश्व गुरु भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर, और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ ब्रिक्स में ऐतिहासिक बातचीत।
भारत की सुप्रीम रिलीजियस अथारिटी आफताबे शरीयत मौलाना कल्बे जवाद नकवी और भारत के जाने माने सोशल रिफार्मर मौलाना कल्बे रूशैद रिजवी ने इस मुलाक़ात का किया स्वागत
तहलका टुडे टीम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को रूस के कज़ान शहर में चल रहे 16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन से मुलाकात की, जो वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण घटना बन गई। अमेरिका और इजराइल के लगातार बढ़ते दबाव के बावजूद, भारत ने ईरान के साथ अपने प्राचीन और गहरे रिश्तों को सशक्त बनाते हुए यह मुलाकात की। यह कदम भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का स्पष्ट संदेश है, जो किसी भी देश की दखलंदाजी के बिना अपने हितों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है।
प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति मसूद की ऐतिहासिक मुलाकात:
इस बैठक के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन के बीच विभिन्न मुद्दों पर चर्चा हुई, जिसे दोनों पक्षों ने ‘सार्थक’ और ‘उपयोगी’ बताया। बैठक में भारत और ईरान के बीच लंबे समय से चले आ रहे सामरिक और आर्थिक संबंधों को और सुदृढ़ करने की दिशा में ठोस कदम उठाए गए। खासतौर पर चाबहार बंदरगाह परियोजना और इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) पर विशेष रूप से चर्चा की गई, जो कि दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण परियोजनाएँ हैं।
इसके अलावा, बैठक में पश्चिम एशिया में तनाव कम करने और अफगानिस्तान की स्थिति को स्थिर करने पर भी गहन विचार-विमर्श हुआ। अफगानिस्तान में स्थिरता और शांति दोनों देशों के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने बयान में इस मुद्दे पर भारत के रुख को स्पष्ट करते हुए कहा कि भारत और ईरान दोनों ही अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता के समर्थक हैं, और इस दिशा में मिलकर काम करने के इच्छुक हैं।
बैठक के बाद, जब ईरानी राष्ट्रपति से पूछा गया कि उनका प्रधानमंत्री मोदी के साथ बातचीत का अनुभव कैसा रहा, तो उन्होंने संक्षिप्त और प्रभावशाली जवाब दिया – “बहुत अच्छा।” यह टिप्पणी बताती है कि दोनों नेताओं के बीच हुई बातचीत सकारात्मक और दोनों देशों के लिए लाभकारी रही।
ईरान-भारत के प्राचीन संबंध और मौजूदा दौर:
भारत और ईरान के संबंध प्राचीन सभ्यता से जुड़े हुए हैं। दोनों देशों के बीच न केवल सांस्कृतिक और धार्मिक बंधन हैं, बल्कि आर्थिक और सुरक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण साझेदारी है। चाबहार बंदरगाह भारत के लिए एक रणनीतिक परियोजना है, जो न केवल मध्य एशिया में उसके व्यापार को आसान बनाएगी, बल्कि पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को प्रतिस्पर्धा भी देगी। यह भारत को अफगानिस्तान और अन्य मध्य एशियाई देशों तक पहुंचने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है, जिससे उसका रणनीतिक महत्व और भी बढ़ जाता है।
इसके साथ ही, दोनों देशों के बीच बढ़ते व्यापारिक संबंधों ने भी भारत और ईरान के बीच सामरिक तालमेल को मजबूत किया है। ईरान के ऊर्जा संसाधन भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं, और भारत की ऊर्जा सुरक्षा में उनका बड़ा योगदान है। 2024 में, विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने ईरान की यात्रा की थी, जिससे दोनों देशों के बीच संबंधों को और भी मजबूती मिली।
ईरान-इजराइल तनाव और क्षेत्रीय राजनीति:
यह बैठक ऐसे समय पर हो रही है जब ईरान और इजराइल के बीच तनाव अपने चरम पर है। विशेष रूप से हिजबुल्लाह और हमास के शीर्ष नेताओं की हत्या के बाद, मध्य-पूर्व की स्थिति और भी अस्थिर हो गई है। इस क्षेत्र में बढ़ते संघर्ष और हिंसा ने वैश्विक शक्तियों की चिंता बढ़ा दी है, लेकिन इसके बावजूद, भारत ने ईरान के साथ इस मुलाकात से साफ संदेश दिया है कि वह क्षेत्रीय तनावों से प्रभावित हुए बिना अपने रणनीतिक हितों की रक्षा करेगा।
इजराइल और अमेरिका दोनों ने ईरान के साथ भारत के संबंधों को लेकर अतीत में कई बार आपत्ति जताई है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इन दबावों को नजरअंदाज कर एक स्वतंत्र और संतुलित विदेश नीति को अपनाते हुए यह मुलाकात की है। इसका उद्देश्य न केवल भारत-ईरान संबंधों को और प्रगाढ़ करना है, बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक मंचों पर भारत की स्थिति को और मजबूत करना भी है।
ब्रिक्स में ईरान की भूमिका और भविष्य की संभावनाएँ:
ईरान का ब्रिक्स में शामिल होना भी एक बड़ा कूटनीतिक कदम है, जिसने वैश्विक व्यापार और अर्थव्यवस्था पर बड़ा प्रभाव डाला है। पहले ब्रिक्स में ब्राजील, रूस, भारत, चीन, और दक्षिण अफ्रीका शामिल थे, लेकिन अब इसमें ईरान, मिस्र, इथियोपिया, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब जैसे महत्वपूर्ण देश भी जुड़ गए हैं। तुर्किये, अजरबैजान, और मलेशिया ने भी ब्रिक्स में शामिल होने की औपचारिक रूप से इच्छा जताई है। इस बढ़ते समूह का उद्देश्य वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक संतुलन को बहुपक्षीयता की दिशा में मोड़ना है, जिससे अमेरिका और पश्चिमी देशों के दबदबे को चुनौती दी जा सके।
भारत और ईरान के बीच बढ़ते तालमेल से यह स्पष्ट है कि दोनों देश एक-दूसरे के रणनीतिक साझेदार हैं। भारत ने यह साबित किया है कि वह अपने निर्णय खुद लेने में सक्षम है, चाहे वह वैश्विक दबावों का सामना क्यों न करना पड़े।
ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में इस मुलाकात को न केवल भारत और ईरान के बीच संबंधों को और प्रगाढ़ करने की दिशा में देखा जा रहा है, बल्कि यह विश्व स्तर पर एक महत्वपूर्ण संदेश भी है – कि भारत अपनी संप्रभुता और स्वतंत्र विदेश नीति के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन के बीच हुई यह बैठक, वैश्विक राजनीति में नए समीकरणों की शुरुआत की ओर संकेत कर रही है।
भारत की सुप्रीम रिलीजियस अथारिटी आफताबे शरीयत मौलाना कल्बे जवाद नकवी और भारत के जाने माने सोशल रिफार्मर मौलाना कल्बे रूशैद रिजवी ने इस मुलाक़ात का स्वागत करते हुए कहा कि हमे अपने देश पर फक्र है, हमेशा हक के साथ और मजलूम के साथ रहा है और रहेगा।