
खाड़ी देशों में सैयद के जूते जालिम मुल्कों के सरदार के सर पर विराजमान होने का मौका रहे है तलाश?
तहलका टुडे टीम/ सैयद रिजवान मुस्तफा
14 दिसंबर 2008 को, इराक की राजधानी बगदाद में एक ऐसी घटना घटी जिसने दुनिया भर में तहलका मचा दिया। एक साधारण जूते ने न केवल अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश को अपमानित किया बल्कि अमेरिका की मध्य पूर्व में दमनकारी नीति पर एक तीखा सवाल खड़ा कर दिया था,यह जूता इराकी पत्रकार मुन्तज़िर अल-ज़ैदी द्वारा फेंका गया था, जिन्होंने अपने देश पर हुए अमेरिकी जुल्म के खिलाफ अपनी नाराजगी जाहिर की थी। यह एक प्रतीकात्मक कृत्य था जिसने अमेरिका की ताकत और प्रभुत्व को चुनौती दी थी। आज तक कोई भी अमेरिकी राष्ट्रपति खाड़ी के इस देश में कदम रखने की हिम्मत नहीं कर सका।
घटना का पृष्ठभूमि
अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश उस समय इराक की यात्रा पर थे, जब इराक पर अमेरिकी आक्रमण और उसकी नीति पर विवाद चरम पर था। 2003 में इराक पर हुए हमले और उसके बाद की सैन्य कार्रवाई ने इराक के समाज और अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया था। लाखों निर्दोष नागरिकों की मौत और तबाही के बावजूद, बुश प्रशासन ने इसे ‘लोकतंत्र स्थापित करने’ के नाम पर उचित ठहराया।

मुन्तज़िर अल-ज़ैदी, एक इराकी पत्रकार और सैयद परिवार से संबंध रखने वाले, बगदाद में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद थे। जब राष्ट्रपति बुश बोल रहे थे, तभी मुन्तज़िर ने अचानक जूता फेंकते हुए चिल्लाया, “यह तुम्हारे लिए विदाई का चुंबन है, कुत्ते!” यह कृत्य न केवल एक व्यक्ति की व्यक्तिगत नाराजगी का प्रतीक था बल्कि पूरे इराकी समाज क्या अरब के उस गुस्से और दुख को व्यक्त कर रहा था जो अमेरिका की नीतियों से उपजा था।
एक जूते की गूंज: अमेरिका के लिए एक संदेश
मुन्तज़िर अल-ज़ैदी के इस प्रतीकात्मक विरोध ने अमेरिका के खिलाफ खाड़ी और अरब देशों में पनप रहे आक्रोश को आवाज़ दी। उनका यह कृत्य उन लाखों निर्दोष इराकियों के लिए एक प्रतीक बन गया जो युद्ध की विभीषिका झेल रहे थे। अमेरिका ने इराक में जो स्थिरता और लोकतंत्र लाने का वादा किया था, वह मात्र एक छलावा साबित हुआ। इसके बजाय, इराक के लोग मौत, गरीबी, और तबाही का सामना कर रहे थे। मुन्तज़िर के जूते ने यह स्पष्ट कर दिया कि अमेरिका की दमनकारी नीतियाँ अब इराकी जनता के सामने टिक नहीं सकतीं।

मुन्तज़िर अल-ज़ैदी का साहस और उसका असर
मुन्तज़िर अल-ज़ैदी को इस कृत्य के लिए गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें तीन साल की सजा सुनाई गई, जिसे बाद में घटाकर नौ महीने कर दिया गया। लेकिन उनके इस साहसिक कदम ने उन्हें उत्पीड़न का शिकार यातिमों बेवाओ और विकलांग हुए लोगो समेत दुनिया भर में एक नायक बनाकर दुआ का पात्र बना दिया। अरब देशों में, उन्हें एक प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में देखा गया, जिसने अमेरिका के दमनकारी नीतियों के खिलाफ खुलकर विरोध किया।
अमेरिका की खाड़ी नीति पर प्रभाव
इस घटना के बाद से, कोई भी अमेरिकी राष्ट्रपति इराक आने की हिम्मत नहीं कर सका। खाड़ी देशों में अमेरिका की छवि को गहरा नुकसान पहुँचा, और अमेरिकी नीति निर्माता अब खाड़ी देशों में अपनी रणनीति को लेकर अधिक सतर्क हो गए। अमेरिका को यह समझ में आ गया कि उसकी दमनकारी नीतियाँ अब सीधे सैन्य हस्तक्षेप से सफल नहीं हो सकतीं, क्योंकि वहाँ की जनता अब अपने हक के लिए उठ खड़ी हो रही है।
इजराइल को सहयोगी बनाकर अमेरिका की रणनीति चली
अमेरिका ने खाड़ी देशों में अपने प्रभाव को बनाए रखने के लिए इजराइल को एक सहयोगी के रूप में चुना। अमेरिका के द्वारा दी जा रही सैन्य सहायता और तकनीकी मदद से इजराइल ने खाड़ी देशों में एक मजबूत सैन्य शक्ति के रूप में अपनी पहचान बनाई है। इसके माध्यम से, अमेरिका खाड़ी देशों के नेताओं के साथ अपने संबंध मजबूत कर रहा है और अपने आर्थिक और कूटनीतिक हितों को साधने का प्रयास कर रहा है।
इराक का संघर्ष और अमेरिका की असफलता
इराक में अमेरिकी हस्तक्षेप के बावजूद, वहाँ की स्थिति आज भी सामान्य नहीं हो पाई है। इराकी लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं की कमी और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहे हैं। अमेरिकी आक्रमण के बाद से इराक में विभिन्न आतंकवादी गुटों का उदय हुआ, जिन्होंने वहाँ की सुरक्षा और स्थिरता को गंभीर रूप से प्रभावित किया। यह स्पष्ट है कि अमेरिकी हस्तक्षेप ने इराक में जितना नुकसान पहुंचाया, उतना फायदा नहीं पहुँचाया। मुन्तज़िर अल-ज़ैदी के जूते ने अमेरिका की उस विफलता को स्पष्ट कर दिया जो उसने इराक में लोकतंत्र और शांति लाने के नाम पर की थी।
अमेरिका को जूता मारते हुए

खाड़ी देशों में अमेरिका की कमजोर होती पकड़
मुन्तज़िर अल-ज़ैदी की इस घटना के बाद खाड़ी देशों में अमेरिका की स्थिति कमजोर होती गई। जहाँ पहले अमेरिका खाड़ी देशों में अपनी शर्तों पर काम कर रहा था, अब वह वहाँ के नेताओं और जनता की मांगों का सम्मान करने के लिए मजबूर है। सऊदी अरब, क़तर, यूएई और अन्य खाड़ी देशों ने बाहरी निर्भरता कम करने और आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
मुन्तज़िर अल-ज़ैदी के जूते की गूंज और उसका प्रतीकात्मक महत्व
मुन्तज़िर अल-ज़ैदी के जूते की गूंज आज भी दुनिया भर में सुनाई देती है। इस प्रतीकात्मक विरोध ने खाड़ी देशों के लोगों को जागरूक किया और उन्हें यह एहसास दिलाया कि वे अपनी आवाज़ उठाकर दमनकारी नीतियों का विरोध कर सकते हैं। यह घटना एक सबक है कि खाड़ी देशों के लोग अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता के लिए संघर्ष करते रहेंगे, चाहे उन्हें कितनी भी चुनौतियों का सामना क्यों न करना पड़े। मुन्तज़िर अल-ज़ैदी ने दुनिया को यह संदेश दिया कि एक जूते की मार भी सत्ता की चूलें हिला सकती है।
खाड़ी देशों में अमेरिकी हस्तक्षेप की बदलती रणनीति
मुन्तज़िर अल-ज़ैदी की घटना के बाद से, अमेरिका ने खाड़ी देशों में अपनी रणनीति में बदलाव किया है। जहाँ पहले अमेरिका सीधे सैन्य हस्तक्षेप से अपने हित साधता था, अब वह क्षेत्रीय गठबंधनों, तकनीकी सहयोग, और आर्थिक साझेदारी पर अधिक ध्यान दे रहा है। अमेरिका ने खाड़ी देशों में सैन्य हस्तक्षेप से बचते हुए इजराइल जैसे सहयोगी का इस्तेमाल किया है। इजराइल के साथ खाड़ी देशों के कुछ राष्ट्रों ने अब सामान्य संबंध स्थापित कर लिए हैं, जिनमें यूएई और बहरीन प्रमुख हैं। इसे अमेरिका ने ‘अब्राहम समझौता’ (Abraham Accords) के रूप में प्रचारित किया।
खाड़ी देशों का आत्मनिर्भर बनने की कोशिश
हालांकि अमेरिका और इजराइल का प्रभाव अभी भी बना हुआ है, खाड़ी देशों में एक नया चलन देखा जा रहा है। सऊदी अरब, यूएई, क़तर, और अन्य देशों ने अपनी सैन्य ताकत को आत्मनिर्भर बनाने और बाहरी निर्भरता कम करने की दिशा में कदम उठाए हैं। सऊदी अरब के वली अहद (क्राउन प्रिंस) मोहम्मद बिन सलमान ने ‘विजन 2030’ के तहत देश को विविधीकृत करने, हथियार निर्माण में आत्मनिर्भर बनाने, और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं।
जनता के बीच बढ़ता असंतोष और अमेरिकी रणनीति की सीमा
मुन्तज़िर अल-ज़ैदी की घटना ने खाड़ी देशों में अमेरिकी विरोध की भावना को बढ़ावा दिया। हाल के वर्षों में, खाड़ी देशों में जनता की आवाज़, सोशल मीडिया के माध्यम से, और भी मजबूत होती गई है। युवा पीढ़ी, जो अपनी संस्कृति, धार्मिक पहचान, और स्वतंत्रता को महत्व देती है, ने अमेरिका के हस्तक्षेप का खुलकर विरोध किया है। इसके परिणामस्वरूप, अमेरिकी नीति निर्माता अब खाड़ी देशों में सीधे सैन्य हस्तक्षेप से बचने की कोशिश करते हैं।
मुन्तज़िर अल-ज़ैदी का जूता एक प्रतीक है जो दुनिया को यह याद दिलाता है कि खाड़ी देशों के लोग अपनी आवाज़ उठाने और अपनी स्वतंत्रता के लिए खड़े होने से पीछे नहीं हटेंगे। यह घटना यह साबित करती है कि कभी-कभी एक साधारण प्रतीक भी बड़ी शक्तियों को चुनौती देकर उनके दमनकारी नीतियों को बेनकाब कर सकता है।