
वरिष्ठ पत्रकार और पायनियर की स्थानीय संपादक ऊषा श्रीवास्तव का निधन हिंदी पत्रकारिता की एक अपूरणीय क्षति है।
अरविंद कुमार सिंह
खास तौर पर हिंदी में वैसे भी महिला पत्रकारों की संख्या अंग्रेजी की तुलना में आंगन में तुलसी की तरह ही है। जो हैं उनमें अधिकतर को अपेक्षित मौका नहीं मिल पाता क्योंकि हिंदी पत्रकारिता आज भी पुरुष प्रधान ही बनी हुई है।
इस विषय पर बहस करने का मेरा कोई मन नहीं है लेकिन ऊषाजी अपनी प्रतिभा, क्षमता और योग्यता से अपनी जगह बनाते हुए एक अच्छे मुकाम तक बहुत मेहनत से पहुंची है। उनके संपर्कों का दायरा बहुत विस्तृत था औऱ कुछ भी लिखने पढ़ने के पहले तथ्यों की जांच पड़ताल के साथ पूरा होमवर्क करती थीं।
संपादक रहने पर भी फील्ड में उनकी लगातार मौजूदगी बनी हुई थी। राजनीति पर उनकी गहरी पकड़ और समझ होने के साथ खास तौर पर उत्तर प्रदेश पर बहुत अच्छा जमीनी अध्ययन था। हमारी एक अच्छी साथी थीं ऊषा जी और दशकों से उनके साथ संपर्क था।
अपने मित्रों के साथ सतत संवाद बनाए रखने के साथ युवा साथियों की मदद भी करती रहती थीं। आप हमेशा याद आएंगी ऊषाजी। सादर नमन।