तहलका टुडे
स्कूल कॉलेजों की बढ़ती फीस और कम हो रही शैक्षिक सुविधाओं सहित आम जन-जीवन की जरूरतें बिजली पानी,खेती, किसानी आदि शैक्षिक और सामाजिक कुरीतियों के मुद्दों पर अगर छात्र और नौजवान मुखर विरोध नहीं करेंगें तो सरकारें निरंकुश और तानाशाह हो जाएंगी।ऐसे में प्रगतिशील देश का सपना ही अधूरा रह जायेगा।लेकिन इन मुद्दों से इतर आजकल मीडिया हो या सोशल मीडिया सब पर रिया-सुशांत और कंगना आदि जैसे तमाम मुद्दे आये दिन छाए रहते है।ऐसे मुद्दों में देश का युवा रात-दिन अपनी सहमति और असहमति पोस्ट करने में उलझा नजर आता है।शिक्षा,स्वास्थ्य और रोजगार के मुद्दों को भूलकर अन्य तमाम दिशा विहीन मुद्दों पर युवाओं का जो मुखर विरोध देखने को मिल रहा है वह सकारात्मक दिशा की तरफ़ नहीं, बल्कि मेरी नजर में छात्रों, नौजवानों और युवाओं को दिग्भ्रमित करने वाला ही है।सोशल मीडिया फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्वीटर आदि पर विरोध के लेख और तस्वीरों में जरूरत और मूलभूत समस्याओं के मुद्दे धीरे-धीरे गायब ही होते जा रहें हैं।ज्यादातर केवल व्यक्तिगत कटाक्ष ही परोसे जा रहे हैं।असल समस्याएं तो धरातल पर है। जिनका लोग जिक्र तक नहीं करते है।सबसे ज्यादा स्वास्थ्य और शिक्षा की समस्याओं से आम गरीब इंसान सहित हर किसी को जूझना पड़ रहा हैं।निजी अस्पतालों में इलाज के नाम पर परिजनों से किस तरह लूट हो रही हैं जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती हैं।मरने के बाद शव तभी देते है जब सारा हिसाब किताब अस्पताल के बिल का कर पाओगे।
यही हाल शिक्षा का है।निजी स्कूलों की फीस में बेतहाशा बढोत्तरी और सीमित होती सुविधाएं बच्चों और अभिभावकों के लिये सिर दर्द बनती जा रहीं हैं।इसके अलावा मूलभूत समस्याओं से लोगों को आये दिन जूझना पड़ता है।यदि किसी के आधार कार्ड में नाम और जन्मतिथि गलत है तो उसके संशोधन के लिये लोग दर-दर को ठोकरें खा रहें हैं।किसी का राशन कार्ड नहीं बन पा रहा है, तो किसी बुजुर्ग की पेंशन रुक गयी है।किसी का बिजली बिल गलत है, जिसके लिये वह दफ्तरों के महीनों से चक्कर लगा रहा है। लेकिन बाबू और अधिकारी सुन नहीं रहें हैं। खाद पानी की समस्या और खेतों में चरने वाले आवारा जानवरों की समस्या जिनसे आम जनजीवन प्रभावित हो रहा है।निचले स्तर पर सरकारी सुविधाएं नहीं पहुँच पा रही है।कहीं कागजों की कमी से तो कहीं अधिकारियों और कर्मचारियों की हीलाहवाली से तमाम योजनाओं का लाभ गरीबों, किसानों,मजदूरों, छात्रों और नौजवानों को नहीं मिल पा रहा है।इन मुद्दों की तरफ कितनों का ध्यान जा रहा है ? यदि बिजली बिल गलत हो जाता है तो उसे दुरुस्त करवाने के लिये बिजली विभाग के कार्यालयों की कितनी बार परिक्रमा करनी पड़ती है यह दर्द उस बेसहारा गरीब इंसान से पूछो जिसके पास न तो घूस देने भर के पैसे हैं और न पहुँच। गरीबों, किसानों ,मजदूरों और छात्रों को तमाम योजनाओं के लिये डिजिटल ऑनलाइन सिस्टम में किन परिस्थितियों से जूझना पड़ रहा है यह अंदाजा आपको तभी लग पायेगा जब आप उस दर्द से रूबरू होंगे।सिस्टम की ऐसी खामियों की तरफ न तो किसी का ध्यान है और न ही कोई जानने की कोशिश कर रहा है।स्वास्थ्य,शिक्षा, रोजगार जैसी मूलभत जरूरतों से बेखबर देश का अधिकांश नौजवान आखिर किन मामले को लेकर सोशल मीडिया सहित अन्य प्लेटफॉर्म पर अपनी सहमति और असहमति जता रहे हैं शायद यह बातें उन्हें भी नहीं पता होंगी।शायद नीति नियंता और सरकारें भी यही चाहती है कि देश के नौजवान शिक्षा,स्वास्थ्य और रोजगार सहित मूलभूत समस्याओं के मुद्दे भूलकर बेवजह के मुद्दों पर इसी तरह अपनी ऊर्जा खपाते रहें , जिससे उनकी परेशानियां न बढ़ने पाये।
जय हिंद????