इंतेकाल पर खास रिपोर्ट
तहलका टुडे टीम /सैयद अली मुस्तफा
न्यायमूर्ति सैयद हैदर अब्बास रज़ा (सेवानिवृत्त) का जीवन संघर्ष, आत्मविश्वास और प्रेरणा से भरा हुआ था, उनके जीवन की कहानी यह दर्शाती है कि किसी भी आयु में अगर सपनों को सच्चे इरादों और मेहनत के साथ पूरा किया जाए, तो जीवन का हर क्षण सफल और सार्थक बन जाता है।
न्यायमूर्ति सैयद हैदर अब्बास रज़ा का जीवन उनके पेशेवर अनुभव, छात्र आंदोलन, सामाजिक सेवाओं, और कानूनी करियर के साथ एक प्रेरणादायी यात्रा का प्रतिनिधित्व करते थे । उनके जीवन के हर पहलू में एक मिशन और उद्देश्य की स्पष्ट झलक मिलती थी।
बचपन और शिक्षा – एक संघर्षशील शुरुआत
सैयद हैदर अब्बास रज़ा का जन्म 7 दिसंबर 1939 को फैज़ाबाद जिले में हुआ था। उनका परिवार किछौछा शरीफ से जुड़ा हुआ था, जो एक मशहूर सूफी दरगाह के लिए प्रसिद्ध है। उनके पिता, मेहदी हसन, एक पोस्टमास्टर थे, जिन्होंने अपने बच्चों को शिक्षा के महत्व को सिखाया।
बचपन का सपना और शिक्षा का मार्ग
सैयद हैदर अब्बास रज़ा का जीवन बहुत साधारण था, लेकिन शिक्षा के प्रति उनके प्रयास ने उन्हें एक अलग मुकाम तक पहुँचाया।
उनकी प्रारंभिक शिक्षा फैज़ाबाद में हुई, और उसके बाद लखनऊ आकर शिक्षा की नई शुरुआत की।
उन्होंने जुबली इंटर कॉलेज से पढ़ाई की और धीरे-धीरे अपने स्कूल जीवन में बहस प्रतियोगिताओं और सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेने लगे।
बचपन से ही उनकी यह रुचि उनके आत्मविश्वास और संघर्ष की कहानी कहती है। उनके विद्यालय जीवन में पुरस्कार और बहस प्रतियोगिताओं में उनकी भागीदारी ने उनकी बोलने की कला और नेतृत्व क्षमता को मजबूत किया।
कानूनी करियर की शुरुआत और राजनीतिक रूचि
सैयद हैदर अब्बास रज़ा का सपना पहले से ही था कि वह कानून के क्षेत्र में काम करें। उनके लिए यह सपना महज एक लक्ष्य था, जिसे उन्होंने कठिन संघर्षों के बाद पूरा किया।
कानून की पढ़ाई और बार में प्रवेश
सैयद हैदर ने अपने कानून के सपने को साकार करने के लिए कड़ी मेहनत की। उन्होंने कानूनी शिक्षा के लिए समय निकाला और स्नातक स्तर तक पढ़ाई की।
1962 में उन्होंने बार में शामिल होकर अपने कानूनी करियर की शुरुआत की।
कानून में उनकी रुचि और पेशेवर क्षेत्र में उनकी सफलता उनकी मेहनत का ही परिणाम थी।
राजनीतिक यात्रा
कानूनी करियर के साथ-साथ सैयद हैदर अब्बास रज़ा ने राजनीति में भी अपना सक्रिय योगदान दिया।
वह कांग्रेस पार्टी से जुड़े और लखनऊ कांग्रेस कमेटी के महासचिव और अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली थी।
छात्र आंदोलनों के साथ जुड़कर उन्होंने सामाजिक बदलावों के लिए आवाज़ उठाई और कई मुद्दों पर प्रभाव डाला।
उनके संघर्ष और सक्रिय राजनीति ने उन्हें समाज की सेवा का नया तरीका सिखाया।
न्यायधीश के रूप में जीवन – संघर्ष और सफलता
1988 में न्यायधीश के रूप में उनकी नियुक्ति एक ऐतिहासिक क्षण था। उन्हें लखनऊ बेंच, इलाहाबाद उच्च न्यायालय का न्यायधीश नियुक्त किया गया।
कानूनी संघर्ष और ऐतिहासिक फैसले
उनके कार्यकाल के दौरान सैकड़ों मामलों का निपटान किया गया। उन्होंने 13 वर्षों में लगभग एक लाख से अधिक मुकदमों का निपटान किया।
उनके निर्णय और मामलों के निपटान सुप्रीम कोर्ट और अन्य न्यायालयों द्वारा सराहे गए।
उन्होंने कई जनहित याचिकाओं के मामलों में भी भाग लिया। उनके फैसलों में आम जनता के मुद्दों का समाधान हुआ।
जनहित याचिकाओं का योगदान
उनकी कई जनहित याचिकाओं ने समाज के व्यापक मुद्दों को समाधान दिलाया।
अमीनाबाद में झंडे वाला पार्क का मामला: उन्होंने पार्क को पुनः सुरक्षित और संरक्षित किया।
सामाजिक सुरक्षा और विकास से जुड़े कई मामलों में उन्होंने न्याय प्रदान किया।
उनके फैसले उनकी स्पष्ट सोच, मेहनत और सामाजिक जिम्मेदारी को दर्शाते हैं।
आज का जीवन और युवा पीढ़ी के लिए मिसाल
सेवानिवृत्ति के बाद भी न्यायमूर्ति सैयद हैदर अब्बास रज़ा एक प्रेरणा बने हुए हैं। उनकी दिनचर्या भी विशेष रूप से सराहनीय थी।
नियमित गतिविधियाँ और समाज सेवा
हर सुबह वह नियमित रूप से पैदल चलना पसंद करते थे।
समाचार चैनलों को ध्यानपूर्वक देखते हैं और राजनीति पर गहराई से चर्चा करते थे।
युवा वकीलों और छात्रों को हमेशा अपना मार्गदर्शन प्रदान करते रहे।
उनके युवा वकीलों के प्रति उनका दृष्टिकोण एक दिशा प्रदान करता है। उनके अनुभव उनके छात्रों और साथी वकीलों के लिए एक सिखने का अवसर प्रदान करते रहे।
85 वर्ष की उम्र में भी सक्रिय जीवन
85 वर्ष की उम्र में भी उनके पास संघर्ष की ऊर्जा, आत्मविश्वास और सही दिशा में योगदान की भावना है। उनकी यह दिनचर्या किसी भी युवा पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा थी।
उनका मानना है कि उम्र सिर्फ एक संख्या है, यदि किसी में आत्मविश्वास और मेहनत हो।
एक प्रेरणा का संकल्प
न्यायमूर्ति सैयद हैदर अब्बास रज़ा का जीवन हर किसी के लिए एक प्रेरणा है।
उनके सपनों का पूरा होना उनकी मेहनत, ईमानदारी और संघर्ष का नतीजा है।
उनकी यह कहानी हर उस युवा के लिए प्रेरणा है जो मुश्किलों से डरता है और अपनी मंजिल को पाने के लिए सही मार्ग की तलाश करता है।
उनके शब्दों में एक सबक है:
“सपने देखो, उन्हें मेहनत और ईमानदारी के साथ पूरा करो। किसी भी मुश्किल से डरना नहीं चाहिए।”
यही जीवन का सबसे बड़ा सबक है। सैयद हैदर अब्बास रज़ा ने इसे जीवित कर दिखाया।
आज हमारे बीच में नहीं लेकिन उनकी यादें उनकी नोकिया आज भी लखनऊ की तहजीब में तैर रही है।