
गौरव माहेश्वरी
लखनऊ, सन 1992, दिसम्बर की आती हुई ठंड का महीना, मेरी उम्र मात्र 10 वर्ष के लगभग थी । बमुश्किल चौथी या पाँचवी क्लास में पढ़ने वाला एक स्टूडेंट रहा होंगा । रात के लगभग 9 बजे होंगे कि अचानक घर पर चाचा की आवाज़ सुनता हूँ की चौक में दंगे हो गए है, कभी भी मुसलमान आ सकते है । मुसलमान से इतना ही जानता था कि हमारी कालोनी में एक मुसलमान रहते थे जिनको बहुत कम लोग पसंद करते थे । पूरी कालोनी हिंदुओ लोगों की थी और एक अकेला मुस्लिम परिवार रहता था । ख़ैर, चाचा बोले की छत पर पत्थर-गिट्टी तैयार रखो क्योंकि सुनने में आया है कि मुसलमान लोग हमारी कालोनी में अटैक करने आ सकते है । घर के लगभग सब बच्चे और बड़े छत पर पहुँच गए और पत्थर के साथ डंडो को सुरक्षित रखा । समझ में तो आ रहा था की कुछ लड़ायी जैसी बात हो गयी है, पर क्यूँ हुई है, यह शायद 10 साल के बच्चे के दिमाग़ को नहीं मालूम था । हल्की-हल्की हवा के बीच छत से चुपचाप नज़रें नीचे रोड पर टिकी थी कि शायद कोई हमें मारने आए जिसके लिए हमें तैयार रहना है । पर क्यूँ मारना चाहते है, हमने तो किसी को कुछ नही बोला । इतना मालूम पड़ गया था कि हम हिन्दु है और कुछ मुसलमान है सामने रहने वाले ख़ान साहब जैसे जो की मारपीट करने आ रहे है । मारपीट क्यूँ करने आ रहे है इससे कोई सरोकार नही था । बस वो मुसलमान है इसलिए अच्छे नही है, इतना ही दिमाग़ समझ रहा था । ख़ैर, कोई अनहोनी नही हुई और सब कुछ ठीक ठाक सा निकल गया । पर हाँ, मुसलमान गंदे होते है यह दिमाग़ में बैठ गया था ।

उम्र बढ़ती गयी और दूसरे स्कूल में एडमिशन हुआ । क्लास में भी कुछ मुस्लिम बच्चे पढ़ते थे । उनसे अच्छी दोस्ती थी पर वो जो कुछ साल पहले रात में डंडे और पत्थर इखट्टे करने में मालूम पड़ा था की मुसलमान ठीक नही होते है, वह ज़हन से नही गया था । शायद बढ़ती उम्र के साथ दिमाग़ भूलना भी चाहता था तो समाज भूलने नही देता था । एक और ख़ास बात थी कि हमारा बड़ा परिवार था । राजस्थान के पोखरन से तालुक रखते थे और शाकाहारी परिवार था । दूर-दूर तक कोई माँसाहारी नही था । इसलिए परिवार और रिश्तेदारी में अक्सर यह भी कहते हुए सुनायी पड़ता था कि मुसलमान मांस खाते है इसलिए गंदे होते है । लखनऊ बहतरींन माँसाहारी व्यंजनो के लिए जाना जाता था । इसलिए जब किसी दुकान के आगे से निकलता था और अगर माँसाहारी व्यंजन लटके दिखते थे तो दिल कहता था कि मुसलमान गंदे होते है । शायद वह 6ठी क्लास रही होगी जब हम सब क्लास पिकनिक पर गए थे । हमारी क्लास टीचर हिन्दु थी और क्लास का एक शरारती और हम सब का चाहने वाला मुसलमान मित्र मटन के लज़ीज़ कबाब लाया था । मित्र का नाम नही लिख रहा हू पर जब वह यह लेख पढ़ेगा तो मुस्कुरा ज़रूर रहा होगा । क्लास टीचर को कबाब खाते देखा तो समझ आया की हिन्दु भी माँसाहारी खाना खा लेते है । घर पर एक ड्राइवर था जिसका नाम रामदेव था और मालूम पड़ा की वह भी माँसाहारी है । ग़लती से भी जनाब आप महानुभाव इस लेख को पढ़ते समय योग वाले बाबा रामदेव को हमारे ड्राइवर से इतेफ़ाक न कर लीजिएगा, नही तो आजकल मानहानि के दावे का दौर चल रहा है । कहा माँसाहारी हमारा रामदेव, और कहा शाकाहारी बाबा रामदेव । तो एक बात तो धीरे-धीरे समझ आ रही थी कि केवल मुसलमान ही माँसाहारी नही होते है ।
मैंने सेंट फ़्रांसिस स्कूल से पढ़ायी की है जो की लड़कों का स्कूल है । बग़ल में कैथीड्रल स्कूल था जो की को-एजुकेशन था । कैथीड्रल स्कूल की और हमारी छुट्टी लगभग एक ही समय होती थी । कैथीड्रल से एक लड़की छुट्टी के वक़्त हमारे स्कूल के सामने से होकर निकलती थी । काफ़ी लड़के उसको पसंद करते थे वो अलग बात थी की वह किसी को भले ही पसंद न करती हो । अगर किसी साथी को पसंद करती थी, तो कृपया मेरे को ज़रूर बताए । मेरे बचपन के स्कूल के दोस्त जो इस समय इस लेख को पढ़ रहे हो तो शायद याद कर पाए स्कूल के बाहर कितनी बार उसको देखने के लिए खड़े होते हो । ख़ैर, लड़की मुसलमान थी और बचपन से ज़हन मे यह भरा था कि मुसलमान गंदे होते है । कुछ अजीब सा लग रहा था क्यूँकि लड़की को सब पसंद करते थे तो मुसलमान गंदे कैसे हुए, यह समझ से परे था । केवल मुसलमान मीट नही खाते, ख़ूबसूरत लड़की जिसको हर कोई पसंद भी करता था, यह सोच कर चिंताए और बढ़ गयी की मुसलमान ख़राब कैसे हुए ?
काफ़ी दिनो बाद एक बार पिकनिक पर कबाब लाने वाले मित्र के घर जाने का मौक़ा मिला तब उसकी अम्मी से मालूम पड़ा की उसके पापा शाकाहारी है अगर मेरी याददाश्त सही है कुछ ग़लत तो नही लिखवा रही है । बढ़ती क्लास और उम्र बता रही थी की मुसलमान गंदे नही होते । हमारे पड़ोसी पंजाबी है और जो अंकल थे काफ़ी पहले उनका स्वर्गवास हो चुका है । वह अक्सर अपनी कुर्सी को घर में गेट के पास डाल कर मीट पका कर खाते थे । मुझे ख़ुशबू भी बहुत पसंद थी शायद इसलिए की मुसलमान गंदे नही थे, यह धीरे-धीरे मालूम पड़ रहा था पर दिमाग़ अभी उतना नही समझ पाया था । इसी बीच बढ़ती समझ के साथ बाबरी मस्जिद के बारे में भी पढ़ा तब मालूम पड़ा की देश में हिन्दु-मुसलमान दंगे हो गए थे जिसकी वजह से हमें छत पर ईंट-पत्थर रखने पड़ गए थे । तभी भी लगता था कि ज़रूर इन मुसलमानो ने हमारे साथ बदमाशी की होगी, जो ऐसा करना पड़ा था । एक बार कुछ दोस्तों के साथ बातचीत के दौरान बाबरी मस्जिद की घटना का ज़िक्र आया और बिना समझे मैंने कह दिया की सही हुआ जो भी उस दिन मस्जिद तोड़ के हुआ । तभी एक हिन्दु मित्र ने बड़े क्रोधित लहजे में कहा कि वो ख़ौफ़नाक मंज़र कभी आँखो में देखना जिसमें इस नफ़रत के चलते हज़ारों लोग लड़ें । चीख़ती हुई, दम तोड़ती और ख़ून बहाती हुई आवाज़ों ने अपनी जाने गँवायीं । जान गवाने वाले हिन्दु-मुसलमान दोनो थे, तुम्हें कुछ पता भी है ? मेरी बोलती बंद हो गयी थी और सही मायने में मेरे पास जवाब नही था । शुक्र है कोचिग के उस मित्र का जिसने यह समझाने का प्रयास किया की हिन्दु-मुसलमान की नफ़रत के पीछे नेता है । आप और हम तो सिर्फ़ मोहब्बत करने के लिए पैदा हुए है ।
जब कॉलेज पहुँचा तो रूम में रहने वाले साथियों के साथ सेट्टिग नही बैठ पायी । कुछ लखनऊ के दोस्त मिल गए और एक बहतरींन मित्र रामपुर से जो की मुस्लिम है । वह सब पहली मंज़िल पर रहते थे । बोरियाँ – बिस्तर बाँध कर पहली मंज़िल पर पहुँच गया और रूम मे उन सब के साथ रहना चालू कर दिया । जनाब हमारे साथ अक्सर मंदिर चले जाया करते थे । दोस्तों के साथ मैंने माँसाहारी खाने का लुत्फ़ उठाना चालू कर दिया था क्यूँकि तब तक मुझे मालूम पड़ गया था की मुसलमान ही ख़ाली माँसाहारी नही खाते । मित्र के घर से अक्सर कुछ न कुछ बन कर आता रहता था और ईद-बक़रीद का तो क्या कहना । थोड़ी तारीफ़ इसलिए ज़्यादा कर रहा हू ताकी रामपुर वाले मित्र जल्द बुलावा भेजे । मेरी मम्मी को कभी पसंद नही था की मै माँसाहारी खाना खाऊँ । पर मुझे खाने मे कोई ऐतराज़ नही लगा..
हो सकता है बहुत से लोग इस लेख को पढ़ कर मुझे कोस भी रहे हो की कैसी धारणा रखते थे मुस्लिमों के लिए पर क्या करूँ लाशों पर राजनीति करने वाले कुछ नेताओ के कारनामों ने समाज और परिवार के माध्यम से बचपन के उस दिमाग़ में नफ़रत के बीज को बोने की भरपूर कोशिश की थी । पढ़ायी के बाद से बिज़नेस में आने के बाद जब अपनी फ़ैक्टरी चालू की तो अधिकतर काम करने वाले कर्मचारी मुस्लिम आए । आज सालों से बड़े भाई जो की फ़ैक्टरी देखते है सबको परिवार की तरह रखते है । हर दिवाली और विश्वकर्मा पूजा पर सब प्रसाद लेते है । न कोई हिन्दु, न कोई मुसलमान । हर ईद पर मित्रों के घर सालों से मुबारकबाद देने जाता हूँ…
पिछले काफ़ी वर्षों में बाबरी मस्जिद वाली घटना के हिन्दु नेताओ के विडियो से लेकर मुस्लिम नेताओ के विडियो देखे । उनको बोलते हुए सुनता हूँ । क्षेत्रीय पार्टियों को मुसलमानो की राजनीति करते हुए देखा जिसकी वजह से हिंदुओ को पक्ष में कर के भाजपा ने सरकार बना ली । पर वही दूसरी तरफ़ हिंदुओ के पक्ष में आँग उगलने वाली भाजपा सरकार को एक आतंकी का समर्थन करने वाली पी.डी.पी. के साथ सरकार बनाते भी देखा है । तो न ही कोई सरकार हिंदुओ की और न ही कोई मुसलमानो की । बस यही अहसास करता हू की आमजन बिचारा भावनाओं में फँस कर मारकाट के लिए तैयार हो जाता है ।
पिछले 4 साल पहले आम आदमी पार्टी में आ गया । इस दौरान बहुत से हिन्दु और मुस्लिम अच्छे साथी मिले । सौभाग्य से राजधानी लखनऊ के अध्यक्ष के रूप में नेतृत्व करने का मौक़ा मिला । ईद, बक़रीद, दिवाली, होली सब साथ मनाते है । तीन महीने पहले प्रियंका को लखनऊ का मेयर का चुनाव लड़ने का मौक़ा भी मिला । जीत भले ही न मिली हो मगर हिन्दु-मुसलमान, सिख और इसाई सबका प्यार मिला ।
पर एक बात मन को खाए जा रही है । कुछ दिन पहले रयांन इंटर्नैशनल स्कूल, गुड़गाँव में छात्र के साथ हुई घटना के बाद बेटी पलाक्षी के स्कूल की प्रिन्सिपल ने सारे पेरेंट्स को ऑडिटॉरीयम में बुलाया था । बेटी क्लास फ़र्स्ट में है । ऑडिटॉरीयम मे सारे पेरेंट्स फ़र्स्ट क्लास की बच्चियों के ही थे । अपने लेक्चर के दौरान प्रिंसिपल अचानक बोली “आप सब को शर्मिंदा होना चाहिए । आपकी बेटी दूसरी बच्ची के साथ इसलिए बात नही करती क्यूँकि वह हिंदू या मुस्लिम है… । क्या आपकी फ़र्स्ट क्लास की बच्ची को हिन्दु और मुस्लिम होने की अक़्ल है ? नही, पर ऐसा इसलिए है, क्यूँकि आप लोग हिन्दु – मुस्लिम नाम की बातें अपने बच्चों के सामने करते है..!!” । मेरे कान यक़ीन नही कर पा रहे थे की वही हिन्दु और मुसलमान जिससे मैंने पीछा छुड़ाया, अब बच्चों के पीछे पड़ गया है । मैं तो जब 4th क्लास में था तब समझ आना चालू हुआ था हिन्दु-मुस्लिम क्या होता है पर क्लास फ़र्स्ट का बच्चा…..? बेटी से बात करने पर मालूम पड़ा की उसके मन मे ऐसा कुछ नहीं भरा हुआ है । पर कुछ 1st क्लास के बच्चों के मन मे आयी यह भावना बेहद ख़तरनाक है । जो माँ और बाप यह लेख पढ़ रहे है उनको यह बता दूँ की बच्चों को मोहब्बत करना सिखाइए । फ़ूल से बच्चों का मन बहुत नाज़ुक और पवित्र होता है, उसको ख़ुशबू महकाना सिखाए, दुर्गन्ध फैलाना नही । समय अच्छा नही है, खेलने कूदने की उम्र मे ज़हर बोने का काम बिलकुल न करे । नही तो 4th क्लास के बच्चे की तरह मन मे ज़हर न भर जाए । कही इन नेताओ के चलते आपके बच्चों के हाथ मे किसी दिन उस 4th क्लास के बच्चे की तरह ईंट, पत्थर और डंडे न आ जाए ।
अब का समय और भी ख़तरनाक आ गया है । मेरे बचपन मे तो खाना और पहनना नफ़रत की वजह थी पर अब तो खाने वाले भी नफ़रत करते है । दो हिस्सों मे आदमी बँटता हुआ नज़र आ रहा है । अब तो और कठिन समय आ गया है । बहुत से लोगों को पढ़ कर महसूस हो रहा होगा की हिंदुओ की बुरी छवि पेश कर दी है । एक मिलने वाले मुस्लिम सज्जन के यहाँ कुछ दिन पहले गया तो इसी मसले पर बात करते हुए उन्होंने कहा की आपको रामपुर वाला अच्छा मित्र मिल गया होगा पर कुछ नासमझ है जो भारत के क्रिकेट हारने पर पटाखे चला देते है और नेताओ को ज़हर उगलने का मौक़ा मिल जाता है । चाहे हिंदू हो या मुस्लिम सबको समझना होगा की आपस मे मोहब्बत और भाईचारा ही ज़िंदगी का मक़सद है । समाज मे हर चीज़ के दो पहलू है और जो आज की स्थिति है वह बहुत हद तक सुधार लाने मे आपके ऊपर ही निर्भर करती है । इसलिए सिक्के के दोनो पहलुओं को अपने आप मे बदलाव लाने की ज़रूरत है ।
आप को अपने धर्म से बेहद लगाव है, यह बहुत ही ख़ूबसूरत एहसास है । पर दूसरे धर्म से नफ़रत है यह उससे भी ज़्यादा दुर्भाग्यपूर्ण है । खाने और पहनने से धर्म मे अंतर करने का आकलन करने के गुण से बचाए अपने बच्चों को । यह तो दुष्ट नेताओ का काम है । आपको अपने बच्चे का बेहतर भविष्य का निर्माण करना है जो की एक अच्छा इंसान बनने से ही सम्भव है । और अपने बच्चे को एक अच्छा इंसान तभी बना पाएँगे जब वह इंसानियत सीखेगा । मंदिर से सुनायी देने वाली आरती और मस्जिद से पढ़ी जाने वाली नमाज़ मे अंतर न कर उसको शक्ति और सुकून देने वाली ताक़त के रूप मे एहसास करे तो शायद आरती और नमाज़ का अंतर कभी भी महसूस नही होगा ।
सुबह का 5 बजने के क़रीब है, आँखो मे नींद सी भी भर आयी है । चार ख़ूबसूरत पंक्तिया दिल से निकल आयी है…
“ बड़े अनमोल है यह रिश्ते,
इनके बीच दीवार न खड़ी कर…
मैं हिंदू हूँ – तू मुसलमान है,
ऐसा एहसास मत कर…
न यक़ीन हो तुझे मेरे दोस्त,
तो एहसास ले एक बार राख मे बदल कर..
तेरी नफ़रते भी गले मिलेंगी हवा मे,
किसी हिंदू या मुसलमान की राख मे मिल कर… !! ”