
तहलका टुडे टीम
बाराबंकी के हैदरगढ़ से एक बार निर्दलीय और दो बार भाजपा से विधायक रहे गरीबों के हमदर्द सुंदरलाल दीक्षित नही रहे।
सुबह औशनेश्वर घाट जाते थे ,सुबह पेपर देने गया तो जीने से गिरे पड़े थे,सर में चोट आने से हैदरगढ़ के हॉस्पिटल ले जाया गया जहां से लखनऊ राम मनोहर लोहिया हॉस्पिटल रेफर कर दिया गया,जहा उनके पुत्र पंकज दीक्षित ने बताया भैय्या नही रहे आपके दादा हम लोग हैदरगढ़ वापस जा रहे है।

भाजपा के संस्थापक सदस्य अक्खड़,फक्खड़ और अपने में मस्त रहने वाले पूर्व विधायक
सुंदर लाल दीक्षित एक दमदार छवि के नेता थे,अपराधियों दुराचारियों की ऐसी की तैसी किए रहते थे ,भीड़ उनके पीछे दौड़ती थी,उनका मानना था पैसा आज भी बहुत मायने नहीं रखता। बशर्ते राजनीति पूरी ईमानदारी और सेवाभाव से की जाए। 1977 में जब पहला चुनाव लड़ा तो उनके पास सिर्फ 300 रुपये थे। लोगों ने मदद की। चुनाव जीतने के बाद भी उनकी जेब में 480 रुपये बचे हुए थे।
राजनीति में आने की दासता कुछ अजब है,युवावस्था में गरीबों के लिए संघर्ष करते थे। यही जिंदगी का उन्होंने मकसद बना रक्खा था। उसी दौरान जॉर्ज फर्नांडीज से प्रभावित हुआ और राजनीति में आ गए आपातकाल के बाद निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर हैदरगढ़ से नामांकन दाखिल कर दिया।
उसके सामने कांग्रेस के दिग्गज नेता श्यामलाल वाजपेयी और जनता पार्टी के जंगबहादुर वर्मा थे,जनता पार्टी का गठन कांग्रेस के विरोधी कई दलों को मिलाकर हुआ था। दोनों लोग धन एवं समीकरणों में काफी मजबूत थे। यकीन नहीं होगा कि लेकिन खुद उन्होंने बताया इस समय मेरे पास महज 300 रुपये ही थे। फिर भी चुनाव मैदान में उतर गए।
चुनाव के दौरान ही एक अजीब वाकया हुआ था,दीक्षित को धमकाया जाने लगा। कुछ लोग थे जो यह धमकी दे रहे थे। दीक्षित जी सीधे उसी गांव पहुंच गए जहां के दबंग व्यक्ति की तरफ से धमकी मिली थी। गांव के लोगों से कहा, ‘भैया हमारी क्या खता है, जो हमें मारने की धमकी दी जा रही है।’
गांव वाले के साथ उस व्यक्ति के घर पहुंचे। उनसे पूछा, ‘भैया हमारी क्या गलती है जो मारने की बात कह रहे हो।कोई गलती हो तो मैं खुद आ गया हूं।
सजा दे लो।’ यह सुनकर वे काफी शर्मिंदा हुए। तख्त पर बैठाया। माफी मांगी और उन्होंने वादा किया कि वह ही नहीं उनका पूरा गांव पूरी ताकत से साथ आपका साथ देगा।
पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी बाजपेई से कहा, जब आप पार्टी बनाएंगे तो आ जाऊंगा
उस चुनाव में लोगों ने इनकी खूब मदद की। ये जहां पहुंचते थे वहां लोग रुपये देत थे, जिनके पास रुपये नहीं थे, वे गेहूं-चावल दे देते। जहां रात हो जाती वहीं मैं रुक जाते। सुबह होने पर दूसरे गांव के लिए चल देते थे 1977 का चुनाव जीत गए, जिस गांव से धमकी मिली थी, वहां की पोलिंग पर भी जीते। मजेदार बात यह रही कि 300 रुपये जेब में लेकर चुनाव लड़ने चले थे, नतीजा आया तब भी 480 रुपये जेब में बचे थे।
- लखनऊ पहुंचे तो अटल बिहारी वाजपेयी ने बुलाया। वह बोले, ‘दीक्षित जी हमारे साथ आ जाओ।’ दीक्षित जी उनके चरण छुए और बोले, जनता पार्टी नहीं चलेगी। इसलिए इसमें नहीं आ सकता। जब आप इससे अलग होंगे तब जरूर आपके पास आ जाऊंगा।’
- जनता पार्टी टूटने के बाद जब भारतीय जनता पार्टी बनी तो दीक्षित जी तुरंत अटल जी के पास पहुंच गए, उनसे बोला, ‘आपके आदेश का पालन करने के लिए हाजिर हूं।’ वह दिन है और आज का दिन, भाजपा में ही थे।
बहु नगर पंचायत हैदरगढ़ की चेयरमैन है,बेटा पंकज दीक्षित पिता की विरासत संभालने के लिए सियासत में है।
हैदरगढ़ में मातम है ,वरिष्ट पत्रकार कृष्ण कुमार दिवेदी आंसुओ के साथ रुंधे गले से कहते है कि हमारे सरपरस्त और बेहद मोहब्बत करने वाले थे हमेशा सम्मान देते थे एक नेक देवता हमसे विदा हो गए।