- तहलका टुडे टीम
बाराबंकी- २फरवरी शनिवार को GIC ग्राउंड में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के लिए आयोजित की गई किसान नवजवान स्वाभिमान रैली उस वक़्त चर्चा का विषय बन गयी जब विश्व प्रसिद्ध बैडमिंटन खिलाड़ी सैयद मोदी के हत्यारे के रूप में मशहूर हो चुका व्यक्ति स्टेज पर आकर अवाम का नेताओ के साथ अभिवादन करने लगा।अवाम में नफरत का करेंट दौड़ा और हज़ारो से भरा मैदान सैकड़ो में सिमट गया।आयोजक तनुज पुनिया बेचैन थे लेकिन भीड़ ने खामोशी से इस हत्यारे का विरोध कर चर्चा का विषय बना दिया।
बाराबंकी की सरज़मी के चहेते सैयद मोदी के हत्यारे को देख कर पी एल पुनिया और तनुज पुनिया की मेहनत पर पानी फिर गया।
लोगो और खासकर मुसलमानो में इस बात की चर्चा होने लगी की फखरे हिंदुस्तान और मुसलमान सैयद मोदी के हत्यारे को कांग्रेस पार्टी ने क्यों बुलाया और क्या मैसज देना चाहती हैं आज भी चाय के होटलों मदरसों और मुस्लिम बस्तियो में बहस का विषय बन गया।
वैसे पी एल पुनिया और तनुज पुनिया की नेकी चर्चा में रहती हैं बाराबंकी की अवाम उनसे बेहद मोहब्बत भी करती हैं लेकिन सैयद मोदी के हत्यारे को बुलाना सम्मान देना ना मुसलमानो के गले से उतर रहा है ना ही गैरतमंद ठाकुर बिरादरी के।इसका मैसेज समाज और कांग्रेस की आबोहवा में ज़हर की तरह फैल रहा है.
मालूम हो 28 जुलाई 1988 को लखनऊ के केडी सिंह बाबू स्टेडियम के बाहर बैडमिंटन खिलाड़ी सैयद मोदी की गोलीमार कर हत्या कर दी गई थी. इस वारदात के वक्त सैयद मोदी स्टेडियम से प्रैक्टिस करके निकल रहे थे. अभी वे सड़क पर पहुंचे ही थे कि वहां पहले से घात लगाए हत्यारों ने उनपर ताबड़तोड़ 8 गोलियां दाग दी. उस समय सैयद मोदी महज 26 साल के थे, और वे देश के टॉप बैडमिंटन खिलाड़ी थे और आठ बार राष्ट्रीय बैडमिंटन चैंपियन रह चुके थे. उन्होंने प्रकाश पादुकोण जैसे इंटरनेशनल खिलाड़ी को हराकर अपना स्थान बनाया था. अपने खेल नायक को इस तरह खोने के बाद पूरा देश हिल उठा. बाद में साजिश की परतें जैसे जैसे उघड़ने लगीं, सब कुछ साफ होता गया. मामले में उनकी पत्नी अमिता मोदी और उस समय राजनीति में रसूख रखने वाले संजय सिंह का नाम सामने आया.
28 जुलाई 1988 की वो मनहूस शाम:
स्पोर्ट्स कोटा की वजह से 18 साल की उम्र में ही मोदी को रेलवे में नौकरी मिल गई थी. बैडमिंटन प्रैक्टिस की बेहतर सुविधाओं के लिए उन्होंने अपने घर गोरखपुर को छोड़कर लखनऊ में पोस्टिंग ली थी. 28 जुलाई 1988 की शाम थी. वो केडी सिंह बाबू स्टेडियम से प्रैक्टिस कर लौट रहे थे. शाम के 7.30 बजे थे. मोदी स्टेडियम के बाहर बने स्नैक बार से रोज कोल्ड ड्रिंक पीते थे. रोजाना की तरह वे कोल्ड ड्रिंक पीकर अपने स्कूटर से निकल रहे थे. तभी अचानक 2 बाइक सवारों ने उनका रास्ता रोका. मोदी कुछ समझ पाते उससे पहले ही हमलावरों ने 0.38 रिवॉल्वर से उनके सीने में लगातार 8 गोलियां उतार दीं. गोलियां इतनी पास से चलाई गईं थीं कि मोदी को इलाज का वक्त भी नहीं मिला. उनकी मौके पर ही मौत हो गई. मर्डर के समय उनकी बेटी महज 2 महीने की थी. राइजिंग स्पोर्ट्स स्टार रहे सैयद मोदी के मर्डर ने पुलिस के होश उड़ा दिए. केस सीबीआई को सौंपा गया. सीबीआई ने मोदी के घर रेड मारकर उस डायरी को हासिल किया जिसमें अमिता ने अफेयर की डिटेल्स लिखी थीं. उस डायरी की वजह से मोदी के मर्डर के पीछे उनकी वाइफ और संजय सिंह का हाथ होने का शक पैदा हुआ.
सैयद मोदी ने परिवार के खिलाफ जाकर दूसरे धर्म की अमिता से शादी की थी. 1984 में यह शादी हाशिये पर आ गई थी. उसी साल अमिता की मुलाकात अमेठी के राजा संजय सिंह से हुई थी. मोदी और अमिता दोनों ही बैडमिंटन के स्टार प्लेयर थे. दोनों की शादी को काफी वक्त बीत चुका था, लेकिन करियर बनाने के चक्कर में अमिता ने मां बनने से इनकार कर दिया था. संजय सिंह से मुलाकात के बाद सैयद मोदी को यह शक होने लगा कि उसका अमिता के साथ अफेयर चल रहा है. अपने पति को और जलाने के लिए अमिता एक डायरी में संजय सिंह के साथ रोमांस की डिटेल्स लिखा करती थी. जब वो घर से बाहर होती, तो मोदी चुपके से उसकी डायरी पढ़ते और दुखी होते. 1987 में अमिता ने सैयद मोदी को बताया कि वो मां बनने वाली है.सैयद मोदी को शक था कि अमिता उनसे नहीं, बल्कि संजय सिंह से प्रेग्नेंट है.
चैंपियन खिलाड़ी थे सैयद मोदी:
1976 में महज 14 साल की उम्र में सैयद मोदी जूनियर नेशनल बैडमिंटन चैंपियन बने. फिर 1980 में जब वे 18 साल के हुए और सीनियर बैडमिंटन चैंपियनशिप में खेलने के लिए योग्यता हासिल की, तो उन्होंने सीनियर नेशनल बैडमिंटन चैंपियनशिप भी जीत लिया. भारत सरकार ने उन्हें स्पोर्ट्स कोटा से रेलवे में वेलफेयर ऑफिसर की नौकरी दी. शुरुआत में उनकी पोस्टिंग घर के करीब, गोरखपुर में थी. फिर बेहतर ट्रेनिंग के लिए वे लखनऊ आ गए. मोदी ने 1980 से 1987 तक लगातार आठ बार नेशनल चैंपियनशिप जीती. 1981 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 1982 के कामनवेल्थ गेम्स में उन्होंने बैडमिंटन स्पर्धा का स्वर्ण पदक जीता और उसी साल 1982 के एशियाई गेम्स में ब्रोंज़ हासिल किया. पारिवारिक तनाव के चलते 1987-88 में उनका ध्यान अपने खेल से भटका और उन्होंने नेशनल चैंपियन का खिताब गवा दिया. फिर कुछ महीनों बाद उनकी ह्त्या कर दी गयी.
ऐसे मिले बैडमिंटन खिलाड़ी सैयद मोदी और अमीता कुलकर्णी:
1978 में 16 वर्षीय मोदी बीजिंग में होने वाले एक इंटरनेशनल टूर्नामेंट के लिए चुने गए, उसी समय महिला टीम में अमीता कुलकर्णी नामक खिलाड़ी भी थी. दोनों में उसी समय एक दुसरे के लिए प्रेम प्रस्फुटित हुआ. मोदी जहाँ उत्तर प्रदेश के एक बेहद गरीब और कम शिक्षित मुस्लिम परिवार से थे, वही अमीता कुलकर्णी महाराष्ट्र के सम्पन्न, उच्च वर्गीय, अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त परिवार से आती थी. दोनों के परिवार वाले दोनों की शादी के सख्त खिलाफ थे. पर दोनों ने परिवार की परवाह न करते हुए रजिस्टर्ड मैरिज कर ली.
शादी होने के तुरंत बाद ही दोनों के दाम्पत्य जीवन में कडवाहट घुलने लगी. जहाँ एक तरफ पति का करियर ऊँचाइयों को छू रहा था, वही पत्नी का करियर ठहर सा गया था. जीवन में असंतोष भर रहा था. ऐसे में अमीता मोदी की जिंदगी में एक बेहद धनवान इंसान, संजय सिंह का प्रवेश हुआ. संजय सिंह राजनीतिक रसूख वाले इंसान थे, राजीव गांधी के मित्र थे और साथ ही अमेठी के राजघराने से थे. ऐसे में मोदी को शक होने लगा कि संजय सिंह और उनकी पत्नी के बीच सम्बन्ध हैं. अमीता मोदी ने भी इन शंकाओं को दूर करने के बजाय डायरी में संजय सिंह के साथ अपने अफेयर के बारे में लिख रही थीं. उन्हें मालुम था कि सैयद मोदी उनकी डायरी पढ़ते हैं. समस्या और बढ़ गयी, जब अमिता मोदी प्रेग्नेंट हुईं. सैयद मोदी को शक हुआ कि बच्चा उनका नहीं, बल्कि संजय सिंह का है. मई 1988 में बच्ची का जन्म हुआ, जिसका नाम आकांक्षा रखा गया. मोदी की ह्त्या के समय बेटी महज दो महीने की थी.
सीबीआई ने चार्जशीट फाइल की:
नवंबर 1988 में सीबीआई ने इस केस में चार्जशीट दाखिल की थी जिसमें कुल सात लोगों को आरोपी बनाया गया था. आरोपियों में संजय सिंह, अमिता मोदी, जितेंद्र सिंह, भगवती सिंह, अखिलेश सिंह, अमर बहादुर सिंह और बलई सिंह शामिल थे. सीबीआई का आरोप था कि संजय सिंह, अमिता मोदी और अखिलेश सिंह ने सैयद मोदी के मर्डर की साजिश रची थी और बाकी के 4 लोगों ने इस हत्याकांड को अंजाम तक पहुंचाया था. सीबीआई की थ्योरी के मुताबिक के डी सिंह बाबू स्टेडियम के पास मारुति कार में से जब भगवती सिंह ने सैयद मोदी पर रिवाल्वर से फायरिंग कि तो दूसरे आरोपी जितेंद्र सिंह ने उसका साथ दिया था.
सीबीआई ने अमिता मोदी को हिरासत में लेकर उनसे कड़ी पूछताछ भी की थी. सीबीआई का कहना था कि संजय सिंह ने ही सैयद मोदी की हत्या के लिए अपने साथी अखिलेश सिंह की मदद ली और उन्हें मारने के लिए भाड़े के हत्यारे भेजे थे. अदालत में संजय सिंह की तरफ से दिग्गज वकील रामजेठमलानी ने मोर्चा संभाला था. इसके बाद राजनीति, खेल और रिश्तों में उलझी हुई एक कानूनी जंग छिड़ गई थी.
बरी हो गए संजय और अमिता
सैयद मोदी मर्डर केस की जांच जब पूरी हुई तो कोर्ट में सीबीआई के तमाम दावों की धज्जियां उड़ गई थी. सीबीआई को पहला झटका उस वक्त लगा जब संजय सिंह और अमिता मोदी ने चार्जशीट को ही अदालत में चुनौती दी और फिर इन दोनों के खिलाफ पुख्ता सबूत न होने की वजह से सेशंस कोर्ट ने सितंबर 1990 में संजय सिंह और अमिता मोदी का नाम इस केस से ही अलग कर दिया. दूसरा झटका 1996 में लगा जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक और अहम आरोपी अखिलेश सिंह को इस मामले से बरी कर दिया.
केस से बरी होने के बाद अमीता मोदी और संजय सिंह ने शादी कर ली. इसने दुनिया भर की मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचा. शादी और इससे पहले मर्डर केस में नाम आने के चलते संजय सिंह की काफी फजीहत हुई. उन्होंने काफी सालों के लिए राजनीति से संन्यास ले लिए और एकांतवास में चले गए.
आरोपी जितेंद्र सिंह भी इस मामले से बेनेफिट ऑफ डाउट देकर रिहा कर दिया गया. इस केस के 7 में से चार आरोपी तो पहले ही रिहा हो गए और बाकी बचे अमर बहादुर सिंह का संदिग्ध हालत में मर्डर कर दिया गया और एक और आरोपी बलई सिंह की मौत हो गई. सैयद मोदी मर्डर के आखिरी आरोपी भगवती सिंह को लखनऊ के सेशन कोर्ट ने दोषी करार दिया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. 22 अगस्त 2009 को अदालत ने सीबीआई की फांसी की सजा की मांग को खारिज कर दिया था.
लंबे समय बाद 22 अगस्त 2009 को भगौती सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. जबकि जितेंद्र सिंह को बरी कर दिया गया. 2014 में अनंत ने सीबीआई जांच की मांग करके इस विवाद को नया मोड़ दे दिया है. संजय सिंह के पुत्र अनंत विक्रम सिंह ने 26 साल पहले हुई सैयद मोदी की हत्या के मामले में संजय सिंह व अमीता को क्लीन चिट देने पर सवाल उठाया है. इतना ही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि साक्ष्य न होने के आधार पर किसी के दोष को नकारा नहीं जा सकता.
बैडमिंटन के इतिहास में सैयद मोदी का नाम अमर है:
मोदी का नाम बैडमिंटन के इतिहास में बना हुआ है. लखनऊ में हर साल आल इंडिया सैयद मोदी बैडमिंटन चैंपियनशिप आयोजित किया जाता है, 2004 में इसका नाम बदल कर सैयद मोदी इंटरनेशनल चैलेंज कर दिया गया और 2009 से इसका नाम एक बार फिर बदल कर सैयद मोदी ग्रैंड प्रिक्स कर दिया गया है. इसमें देश और विदेश के शीर्ष बैडमिंटन खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं. रेलवे ने भी उनके जम्न्स्थान गोरखपुर में सैयद मोदी रेलवे स्टेडियम बनाया और साथ ही एक ऑडिटोरियम भी.देव आनंद ने उन पर एक थ्रिलर मूवी सौ करोड़ बनाया, जो 1991 में रिलीज़ हुई.