
8 मार्च, 1921 को हुआ था जन्म
अमृता प्रीतम से करते थे प्यार
बॉलीवुड के मशहूर गीतकार रहे हैं
नई दिल्ली: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस आज है और मशहूर शायर साहिर लुधियानवी का जन्म भी आज ही के दिन 1921 में लुधियाना में हुआ था. साहिर ने ‘साधना (1958)’ फिल्म में ‘औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाजार दिया’ गाना लिखा था, और यह गाना काफी पॉपुलर भी हुआ था. इस गाने को लता मंगेशकर ने गाया था, और महिलाओं के साथ होने वाले व्यवहार को उन्होंने इस गाने में बखूबी बयान किया है. International Women’s Day 8 मार्च को मनाया जाता है, और दुनिया भर में कई तरह के आयोजन हो रहे हैं.
महिला दिवस का पहली बार आयोजन 28 फरवरी, 1909 को न्यूयॉर्क में हुआ था. लेकिन 1910 में महिला दिवस के लिए 8 मार्च की तारीख तय की गई. यूनाइटेड नेंशंस ने 1975 में इसे मान्यता दी. International Women’s Day 2018 का थीम “टाइम इज नॉउः रूरल एंड अर्बन एक्टिविस्ट्स ट्रांसफॉर्मिंग विमेंस लाइव्ज” है. महिला दिवस के दिन ही साहिर का जन्मदिन भी आता है. पेश हैं उनकी कुछ पंक्तियांः
‘औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाजार दिया
जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा धुत्कार दिया
तुलती है कहीं दीनारों में बिकती है कहीं बाज़ारों में
नंगी नचवाई जाती है अय्याशों के दरबारों में’
तू हिन्दू बनेगा ना मुसलमान बनेगा
इन्सान की औलाद है इन्सान बनेग
कुदरत ने तो बनाई थी एक ही दुनिया
हमने उसे हिन्दू और मुसलमान बनाया
तू सबके लिये अमन का पैगाम बनेगा
इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा
ये दिन ये ईमान धरम बेचने वाले
धन-दौलत के भूखे वतन बेचने वाले
तू इनके लिये मौत का ऐलान बनेगा
इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा
आइए साहिर लुधियानी के बारे में जानते हैं
साहिर लुधियानवी का असली नाम अब्दुल हयी साहिर था. साहिर बहुत रईस खानदान से थे. लेकिन मां के पिता से अलग रहने की वजह से उन्हें दिन मुफलिसी में काटने पड़े.
साहिर लुधियानवी 1939 में गवर्नमेंट थे और कहा जाता है कि उन्हें अमृता प्रीतम से प्रेम हो गया था. मशहूर लेखिका अमृता उनकी शायरी की कायल थीं. लेकिन अमृता के घरवालों को ये पसंद नहीं आया, और कहा जाता है कि उनके कहने पर साहिर को कॉलेज से निकाल दिया गया था.
कॉलेज से निकाले जाने के बाद उन्होंने जीविका के लिए कई तरह की छोटी-मोटी नौकरियां की, और इस बीच वे शायरी भी करते रहे. साहिर 1943 में लाहौर आ गए थे और यहां उनकी शायरी की पहली किताब ‘तल्खियां’ प्रकाशित हुई.
लाहौर से वे दिल्ली चले आए और कुछ समय यहां गुजारने के बाद वे मुंबई चले गए. ‘आजादी की राह पर (1949)’ के लिए उन्होंने पहली बार गीत लिखे. लेकिन उन्हें पहचान ‘नौजवान’ फिल्म के गीतों ने दिलाई.
सन् 1943 में साहिर लाहौर आ गये और उसी वर्ष उन्होंने अपनी पहली कविता संग्रह तल्खियाँ छपवायी। ‘तल्खियाँ’ के प्रकाशन के बाद से ही उन्हें ख्याति प्राप्त होने लग गई। सन् 1945 में वे प्रसिद्ध उर्दू पत्र अदब-ए-लतीफ़ और शाहकार (लाहौर) के सम्पादक बने। बाद में वे द्वैमासिक पत्रिका सवेरा के भी सम्पादक बने और इस पत्रिका में उनकी किसी रचना को सरकार के विरुद्ध समझे जाने के कारण पाकिस्तान सरकार ने उनके खिलाफ वारण्ट जारी कर
नके विचार साम्यवादी थे । सन् 1949 में वे दिल्ली आ गये। कुछ दिनों दिल्ली में रहकर वे बंबई (वर्तमान मुंबई) आ गये जहाँ पर व उर्दू पत्रिका शाहराह और प्रीतलड़ी के सम्पादक बने।
साहिर ने गुरुदत्त की ‘प्यासा’ के लिए गीत लिखे और ये गीत खूब हिट रहे. यही नहीं, उनकी कलम का जादू ‘साधनी’, ‘बाजी’ और ‘फिर सुबह होगी’ जैसी फिल्मों में भी देखने को मिली. जिंदगी के अनुभवों को शायरी में उतारने वाले इस शायर का 25 अक्टूबर, 1980 को निधन हो गया.
उनका बहुत मशहूर कलाम था –
मैं पल दो पल का शायर हूँ, पल दो पल मेरी कहानी है
पल दो पल मेरी हस्ती है, पल दो पल मेरी जवानी है
मुझसे पहले कितने शायर, आए और आकर चले गए,
कुछ आहें भरकर लौट गए, कुछ नग़मे गाकर चले गए
वो भी एक पल का किस्सा थे, मै भी एक पल का किस्सा हूँ
कल तुमसे जुदा हो जाऊँगा, जो आज तुम्हारा हिस्सा हूँ”