प्रैस क्लब ऑफ इंडिया नई दिल्ली में आयोजित मौलवी मोहम्मद बाक़र स्मृति व्याख्यान: वक्ताओं ने मीडिया पेशेवरों से 19वीं सदी के पत्रकार के पदचिन्हों पर चलने को कहा।
नई दिल्ली- 19वीं सदी के पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी मौलवी मोहम्मद बाक़र को उनकी 165वीं शहादत की वर्षगांठ पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, विभिन्न वक्ताओं ने युवा पत्रकार से मौलवी मोहम्मद बाक़र द्वारा प्रचलित साहसिक पत्रकारिता का पालन करने का दरख्वास्त किया। 16 सितंबर, 1857 को तोप से बांध कर मौलवी मोहम्मद बाक़र की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी।उसी दिन की याद में हर साल 16 सितंबर को दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया एवं देश के बहुत से संस्थानों में एक शाम सजाई जाती है।
स्वंतत्रता सैनानी मौलवी मोहम्मद बाक़र का जन्म 1780 में दिल्ली में हुआ था।उनके वालिद मौलवी मोहम्मद अकबर अली दिल्ली के एक रूहानी रहनुमा थे।उनके पूर्वज में मौलाना मोहम्मद शिकोह शाह आलम के शासनकाल के दौरान प्रसिद्ध शहर हमदान (ईरान)से भारत आये थे। शाह आलम के दरबार में उनकी गिनती गणमान्य व्यक्तियों में होती थी।उनके बेटे मोहम्मद अकबर के एकलौता बेटा मौलवी मोहम्मद बाक़र थे।मौलवी मोहम्मद बाक़र ने पहले अपने वालिद के सामने पढ़ाई लिखाई किया और बाद में दिल्ली के रहने वाले मियां अब्दुल रज़्ज़ाक साहब के शागिर्द बन गये।वे दिल्ली के जाने माने आलमेदिन थे।मौलवी मोहम्मद बाक़र ने 1825 में दिल्ली कॉलेज में दाखिला लिया था। उनकी योग्यता को देखते हुए उनकी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्हें उसी कॉलेज में उस्ताद के रूप में नियुक्त कर दिया गया था।जिस कारण उन्हें तहसीलदार और कलेकट्रेट में भी जगह मिल गई थी।1837 में एक साप्ताहिक उर्दू अखबार “दिल्ली उर्दू अखबार” के नाम से शुरू किया। दिल्ली उर्दू अखबार पहला ऐसा सार्वजनिक अखबार था जिस में दरबार ए शाही से लेकर कंपनी समाचार, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समाचार भी प्रकाशित हो रहे थे।”दिल्ली उर्दू अख़बार” के पहले पेज पर” हुज़ूरवाला” के शीर्षक के तहत मुगल सम्राटों और “साहिब कलां” शीर्षक के तहत ईस्ट इंडिया कंपनी की खबरें छपती थी। उन्होंने भारत में आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देने के महत्व पर भी जोर दिया था।उन्होंने अपना अखबार भारत की आज़ादी के लिए समर्पित कर दिया था।1857 के विद्रोह की शुरुआत के कुछ समय बाद “दिल्ली उर्दू अखबार”का नाम बदलकर “अखबार अल ज़फर”कर दिया गया था ताकि स्वंतंत्रता आंदोलन को बादशाह बहादुर शाह जफर और लाल किले के रूप में एक केंद्र मिल सके।
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया मे गत 16 सितंबर 2022 को आयोजित पहले मौलवी मोहम्मद बाक़र व्याख्यान के अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों के वक्ता बोल रहे थे। मौलवी मोहम्मद बाक़र भारत के पहले पत्रकार थे जो स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी भूमिका के लिए शहीद हुए थे।
मौलवी मोहम्मद बाक़र जिन्होंने दिल्ली से दिल्ली उर्दू अखबार प्रकाशित किया, ब्रिटिश नीतियों के अत्यधिक आलोचक थे और 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बारे में फील्ड कहानियां प्रकाशित करते थे, उन्हें अंततः दिल्ली गेट पर तोप से बांध कर और ब्रिटिश सेना द्वारा इस आरोप में स्मिथेरेन्स में उड़ा दिया गया था। उनके लेखन ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्थानीय लोगों को उकसाया था।
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष उमाकांत लखेरा ने कहा कि देश की आजादी के लिए अपनी कलम की शक्ति का इस्तेमाल करने के लिए मौलवी मोहम्मद बाक़र की हत्या कर दी गई थी। अब, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया देश में पत्रकारिता की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहा है। हमने मोहम्मद जुबैर के मामले लड़े। और अदालतों में सिद्दीकी कप्पन, उन्होंने शुरुआत की।
कप्पन का अपराध क्या था? जिसके लिए वह पिछले दो वर्षों से जेल में है? वह एक युवा दलित लड़की की कहानी को कवर करने के लिए हाथरस जा रहा था, जिसकी सामूहिक बलात्कार के बाद मृत्यु हो गई थी। उसके पास से कोई आतंकवादी साहित्य बरामद नहीं हुआ था। फिर भी, उस पर आतंक के आरोप लगाए गए थे। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दिए दस दिन से अधिक समय बीत चुका है, फिर भी उन्हें रिहा नहीं किया गया है।
वही यूपी में तहलका टुडे के एडिटर रिज़वान मुस्तफा को बगैर वारंट के 55दिनों तक यूपी की सुल्तानपुर जेल में एक उपभोक्ता फोरम के मामले में रक्खा गया,पत्रकार रिज़वान मुस्तफा ने भी जमानत पर रिहा होने से इंकार कर दिया कहा हमे फंसाया गया है, हाई कोर्ट ने संज्ञान में लेकर स्टेट कंज्यूमर फोरम को आदेश दिया मामले को रोज सुनकर इंसाफ करे,स्टेट फोरम ने रिहाई का आदेश दिया।
इस पूरे घटनाक्रम में जो खेल हुआ वो भी पत्रकारों पर किए जा रहे नौकरशाही की दास्तान बयां करते है।
लेकिन हमें इस तरह की लड़ाई को एकजुट रूप से लड़ना होगा।
वरिष्ठ पत्रकार एयू आसिफ ने कहा कि 1857 के विद्रोह के बारे में बहुत सी बातें लोगों और आने वाली पीढ़ियों तक नहीं पहुंच पातीं अगर मौलवी मोहम्मद बाक़र ने उन्हें अपने अखबार में रिपोर्ट नहीं किया होता। मौलवी मोहम्मद बाक़र ने उनके खिलाफ गंभीर बाधाओं के बावजूद अपना कर्तव्य निभाया। वर्तमान सरकार में समाचार बनाना, पत्रकारों के लिए कवरेज करना बहुत मुश्किल है, लेकिन हमें मौलवी मोहम्मद बाक़र के नक्शेकदम पर चलने की जरूरत है,ताकि हम अपने पत्रकारिता के कर्तव्यों को पूरा कर सकें और प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद विकास को कवर कर सकें।
इस अवसर पर बोलते हुए, जामिया मिलिया इस्लामिया के हिंदी के सेवानिवृत्त प्रोफेसर, प्रोफेसर सैयद असगर वजाहत ने मौलवी मोहम्मद बाक़र के बलिदान और पत्रकारिता के क्षेत्र में उनके अपार योगदान को लोकप्रिय बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। मौलवी मोहम्मद बाक़र एक प्रतिबद्ध पत्रकार थे, जिनके लेखन ने लोगों में गतिशीलता और जीवंतता पैदा की, उन्होंने वर्तमान पत्रकारों को मौलवी बकर्स जर्नलिस्टिक वर्क्स से पेशेवर पत्रकारिता मूल्यों को आत्मसात करने का आह्वान किया।