
तहलका टुडे टीम
बाराबंकी।कामयाब आलिम वही है जो सीखा उसे दूसरों को सिखाए अपना फ़र्ज निभाए । इल्म , अमल और इखलास के पैकर थे सना अब्बास । जिसे खौफ़े खुदा होता है वो किसी से भी खौफज़दा नहीं होता है ।
जो पैगामे परवर दिगार के मुताबिक ज़िन्दगी बसर करता है उसके आगे हुकूमतें सर झुकाती हैं । ये बात मौलाना सना अब्बास की याद में चेहल्लुम पर आयेजित मजलिस को कर्बला सिविल लाइन में खिताब करते हुए आली जनाब मौलाना काज़ी सैयद मोहम्मद अस्करी साहब दिल्ली ने कही।
मौलाना अस्करी साहब ने आगे कहा कि मुबल्लिगे पैगामे परवर दिगार किसी भी मुश्किल में राहे हक़ से नहीं होते फ़रार । मुबल्लिग की सबसे बड़ी फज़ीलत ये है कि उसकी तबलीग से किसी को राहे दीन मिल जाए ।
मौलाना सना अब्बास एक ऐसे मुबल्लिग थे जिसे खुदा के अलावा किसी और का खौफ़ नहीं था । उन्होने अपनी ज़िम्मेदारी को समझा और बाअमल होकर बखूबी निभाया।
उन्होने बिदअत से भी लोगों को रोकने का काम किया।जो दीन में हो उसे दीन न समझना और जो दीन में न हो उसे दीन समझना ही बिदअत है।
आखिर में करबला वालों के दर्दनाक मसायब पेश किये जिसे सुनकर अजादारों के आंखों से आंसू निकल आये।
मजलिस से पहले हैदराबाद से आये मौलाना रिज़वान हैदर रिज़वी ,मौलाना रज़ी मेहदवी, मौलाना जफ़र अली , मौलाना सै0 हसन नक़वी, मौलाना गुलज़ार जाफरी, मौलाना मेराज आज़मी ,अल्लामा ज़ीशान हैदर जवादी के बेटे मौलाना जवाद हैदर जूदी साहब के अलावा तमाम आलिमे दीनों ने शिरकत कर अपने तास्सुरात पेश किये ।
मौलाना साबिर अली इमरानी ने पढ़ा – मख्ज़ने इल्मों अदब में सूरते अल्मास थे,
और मजलूमों के दिल की वो उम्मीदो आस थे
बादे फुर्कत जो बढ़ा है तारे गम का सिलसिला ,
राज ये हं पर खुला अब क्या सना अब्बास थे ।
इसके अलावा डा रज़ा मौरान्वी , सईद ज़ैदपुरी , मुहिब रिज़वी ने भी नज़रानए अक़ीदत पेश किया । निज़ामत मौलाना हैदर अब्बास रिज़वी साहब ने किया।
मजलिस का आगाज तिलावते कलाम ए पाक से हुआ।
बानिये मज़लिस ज़ुहैर अब्बास, अयाज़ अब्बास आरिज़ अब्बास ने सभी का शुक्रिया अदा किया