ये वक्फ के रिकॉर्ड के खसरा नंबर 1462 और सिटी सर्वे नंबर 21511 पर दर्ज है। साढ़े तीन एकड़ में फौजियान कब्रिस्तान था। पहले यहां जहांगीराबाद थाना बना। फिर सीएसपी जहांगीराबाद व डीएसपी ट्रैफिक का ऑफिस बना। अब ट्रैफिक थाना भी।
कौम की और वक्फ बोर्ड की खामोशी और मुतावल्लियो और वक्फ खोरों की मिलीभगत से कब्रिस्तान की जमीनों पर तो कब्जा हुआ मुर्दो को हड्डियां भी नोच ले गए वक्फ खोर
वक्फ एक्ट के तहत राज्य सरकारें कोई काम नही कर रही है बल्कि एक्ट के खिलाफ सरकार और जिला हुक्काम काम करके देश के संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए कब्रिस्तान और करबला की जमीनों को खुर्द बुर्द करने के लिए भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारी और कर्मचारी वक्फ खोरों माफियाओं की पुश्त पनाही कर रहे है।
(रिज़वान मुस्तफा ,वाइस प्रेसिडेंट सेव वक्फ इंडिया)
सोच लो पुख्ता कबरें गर तुम बनाओगे,
तो आने वाली नस्लों को कल कहां पर दफनाओगे?
ओल्ड सैफिया कॉलेज रोड पर बने कब्रिस्तान की दीवारों पर लिखी यह लाइनें वर्तमान में शहर के कब्रिस्तानों के हालात पर सटीक बैठती हैं। भोपाल के कब्रिस्तानों में शवों को दफनाना बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। कहीं मिट्टी कम है तो कहीं कब्र खोदने के लिए जगह ही नहीं बची। मजबूरी में पुरानी कब्रों को हटाकर पक्की बनाई जा रही हैं। इसके चलते कई बार विवाद होते हैं तो अब पक्की कब्रें नहीं बनाने की अपील की जाने लगी है।
ये स्थिति बनी क्यों
इसका जवाब तलाशने के लिए 15 दिनों में भोपाल के हर कब्रिस्तान का हाल जाना गया। पता चला कि कभी शहर में 6,819 एकड़ में 125 कब्रिस्तान थे, जो अब 24 तक सिमट गए हैं। अभी शव इन्हीं में दफनाए जा रहे हैं। बाकी 101 की 5 हजार एकड़ से ज्यादा जमीन पर बिल्डिंगें, दुकानें, पुलिस कंट्रोल रूम, ट्रैफिक थाना, होम गार्ड ऑफिस और पुलिस मेस बन गया। बड़ी बात ये है कि ये सारे कब्रिस्तान वक्फ बोर्ड और मुतवल्ली कमेटी के पास हैं, लेकिन मप्र वक्फ बोर्ड के सीईओ सैयद शाकिर अली जाफरी कहते हैं कि किन कब्रिस्तानों पर कब्जे हैं, इसकी जानकारी नहीं है। हालांकि, बोर्ड के पूर्व चेयरमैन ने कई जगह कब्जों की बात स्वीकारी है।
दफन होतीं कब्रगाहें
6819 एकड़ में 125 कब्रिस्तान थे। अब सिर्फ 24 ही बचे।
5000 एकड़ कब्रिस्तान की जमीन पर बने दुकान-मकान-ऑफिस
मंत्री व कमिश्नर बोले- जानकारी नहीं; मसाजिद कमेटी ने कहा- नोटिफिकेशन देखें
अरब में तो एक ही कब्र में 3-4 लोगों को दफनाने का भी रिवाज है। इस्लाम में सिर्फ कच्ची कब्रों को जायज माना गया है। नगर निगम या पुलिस विभाग कहता है कि कब्रिस्तान पर उनका कब्जा नहीं है तो वो गजट नोटिफिकेशन देख लें।
- यासिर अराफत, सचिव, मसाजिद कमेटी
अतिक्रमण का मामला संज्ञान में नहीं है। वैसे वक्फ बोर्ड के चुनाव ही इसलिए करवाए हैं कि वे ही सारे अधिकार के साथ मुखिया बनें। वह खुद ही देख लेंगे कि कहां क्या करना है? कैसे कब्जे हटवाने हैं।
- राम खिलावन पटेल, अल्पसंख्यक मंत्री, मप्र
जो जमीन हमारे रिकॉर्ड में होती है, उस पर हम बिल्डिंग बना देते हैं। सभी अनुमतियां एवं पेपरवर्क कम्प्लीट होने पर ही हाउसिंग प्रोजेक्ट पर काम होता है। कब्रिस्तान की जमीन कहां है, इसकी जानकारी हमें नहीं है।
– उपेंद्र जैन, एडीजी, पुलिस हाउसिंग
नूरबाग के कब्रिस्तान पर पुलिस कंट्रोल रूम और पीएचक्यू बना है। 38 साल से केस चल रहा है। वफ्फ बोर्ड केस जीता तो वे हाईकोर्ट चले गए। कई बार कब्रिस्तानों से कब्जे हटाने के आदेश हुए, लेकिन अमल नहीं हुआ।
- शौकत मोहम्मद, पूर्व चेयरमैन वक्फ बोर्ड, मप्र