सैयद रिज़वान मुस्तफा
बाराबंकी -मरके भी जिंदा है अब तक कर्बला वाले खुमार,ज़िन्दगी हैरत ज़दा है मौत भी चक्कर मे है जैसे कलाम कह कर मोहर्रम में अपनी शहीदाने कर्बला को खिराजे अकीदत पेश कर दुनिया में बाराबंकी का नाम रौशन करने वाले खुमार बाराबंकवी का आज जन्म दिवस है। इनसे मोहब्बत रखने वाले इनके शहीदाने कर्बला पर कहे गये नव्हॉ और सलाम को पढ़कर कर्बला सिविल लाइन में मौजूद क़ब्र पर फतेह पड़कर फूल डाल कर खिराजे अक़ीदत पेश कर उनको इसाले सवाब पहुँचा रहे है।
केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी का खुमार साहब के शेर का स्टेटस था
तरो ताज़ा है ज़माने में वफाये अब्बास
नामें अब्बास भी ख़ुशबुये वफ़ा देता है
ग़मे शब्बीर में जो अश्क टपकता है खुमार
गुलशने दीं में नए फूल खिला देता है।
खुमार मेमोरियल अकादमी के चैयरमैन अमीर हैदर एडवोकेट जो इनके साथी भी थे और आज भी बेहद मोहब्बत करते है उनके सलाम को कुछ ऐसे पेश किया।
ज़िक्रे शब्बीर इबादत का मज़ा देता है
सर अकीदत से हर इंसान झुका देता है
तूने इस्लाम को इस्लाम बनाकर छोड़ा
इब्ने हैदर तुझे इस्लाम दुआ देता है
जब भी होता है हुसैन इब्ने अली का मातम
दीन आवाज़ में आवाज़ मिला देता है
तरो ताज़ा है दुनिया मे वफाये अब्बास
नामें अब्बास भी खुशबुएँ वफ़ा देता है
सब्रे अय्यूब की जो बात किया करते है
सब्रे सरवर उन्हें आयना दिखा देता है।
ग़मे शब्बीर को अल्लाह सलामत रक्खे
ये वो ग़म है जो मसर्रत का मज़ा देता है
ग़मे शब्बीर में जो अश्क टपकता है खुमार
गुलशने दीं में नये फूल खिला देता है
खुमार अकादमी के सदस्य और वरिष्ठ पत्रकार हशमतुल्लाह साहब उनके सलाम को पढ़ते हुए कुछ इस अंदाज में पेश करते है
हक़ व बातिल में कही जंग अगर होती है
कर्बला वालो पे दुनिया की नज़र होती है
खुद को पाता हूँ बहूत आले मोहम्मद के करीब
ज़िन्दगी जब मेरी फाक़ो में बसर होती है
खुमार अकादमी के कोषाध्यक्ष पूर्व चैयरमैन राजीव चौधरी साहब बेहद
लगाव खुमार साहब से रखते है उनका कलाम सुनाते है
हुर शबे आशूर शामिल थे यज़ीदी फौज में
थी खबर किसको सवेरे क्या से क्या हो जायेगा
सीनियर एडवोकेट चौधरी मेराजुद्दीन जो खुमार अकादमी के वरिष्ठ सदस्य है खुमार साहब का नव्हा सुनाकर आंसुओ से नज़राना पेश करते है।
तेरी शहादत की बरकतें है जो दीन रंगीन और जवाँ है
हुसैन इस्लाम की रगों में तेरा मुकद्दस लहू रवां है
हुसैन इब्ने अली संभल के बड़ी दिलेरी का इम्तेहा है
ये कोई खैबर का दर नही है ये लाशें फ़र्ज़नदे नवजवां है।
अर्क अर्क है जबीने फितरत रूखे मशीयत धुंआ धुंआ है
हुसैन मसरुफे शुक्रे हक़ है,गुलुये असग़र से खूँ रवा है।
लगी है अकबर के दिल पर बरछी तड़प रही है जनाबे लैला
अजीब रिश्ता है ममता का कहा खटक है कहा सना है।
खड़े है शब्बीर सर झुकाए जवाब बनता नही बनाये
मुतालबा कर रही है बानो, बताओ बच्चा मेरा कहा है
हुसैन को कत्ल करने वाले बहूत ही खुश थे खुमार लेकिन
यज़ीदियत कब की मिट चुकी है हुसैनियत आज भी जवाँ है।
गांधी विचारक पंडित राजनाथ शर्मा खुमार साहब के मोहर्रम पे कहे कलाम को सुनाते है।
जब हुसैनी कारनामो का पता हो जायेगा
आदमी हंसते हुए हक़ पर फिदा हो जायेगा।
खुमार साहब से बेहद मोहब्बत करने वाले सेव वक़्फ़ इंडिया के प्रेसिडेंट अल्हाज उमैर किदवई ने एक शेर पढ़कर कहा
इक नवासे का ये एहसान है नाना पर
मस्जिदों में जो अज़ा शामो सहर होती है
सेव वक़्फ़ इंडिया के सेक्रेट्री हाजी शहाब खालिद एडवोकेट खुमार साहब का कलाम पढ़ते हुए कहते है
तेरे महबूब का हबीब हूँ मैं
खैर या रब तेरा रकीब हूँ मैं
ज़िन्दगी कट रही है फाक़ो में
अपने आक़ा से अब करीब हूँ मैं
15 सितम्बर वर्ष 1919 को जन्मे इस इंसान का नाम यूँ तो “मोहम्मद हैदर खान” था लेकिन शायद ही कोई उनके इस नाम से वाकिफ हो, वो तो मशहूर थे खुमार बाराबंकवी या खुमार साहब के नाम से | बाराबंकी जिले को अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर पहचान दिलाने वाले अजीम शायर खुमार बाराबंकवी को प्यार से बेहद करीबी लोग ‘दुल्लन’ भी बुलाते थे |
“खुमार” ने शहर के सिटी इंटर कालेज से आठवीं तक शिक्षा ग्रहण की । इसके पश्चात वह राजकीय इंटर कालेज बाराबंकी जिसकी मान्यता उस समय हाईस्कूल तक ही थी वहां से कक्षा 10 की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके पश्चात लखनऊ के जुबली इंटर कालेज में उन्होंने दाखिला लिया लेकिन उनका मन पढ़ाई में नहीं लगा।
वर्ष 1938 से ही उन्होंने मुशायरों में भाग लेना शुरू कर दिया। खुमार ने अपना पहला मुशायरा बरेली में पढ़ा। उनका प्रथम शेर ‘वाकिफ नहीं तुम अपनी निगाहों के असर से, इस राज को पूछो किसी बरबाद नजर से’ था । ढाई वर्ष के अंतराल में ही वे पूरे मुल्क में प्रसिद्ध हो गये। उस दौर में जिगर मुरादाबादी उच्च कोटि के शायर माने जाते थे चूंकि खुमार ने ‘तरन्नुम’ से ही शुरूआत की, इसलिये शीघ्र ही वे जिगर मुरादाबादी के समकक्ष पहुंच गये। मुशायरों में अगर मजरूह सुलतानपुरी साहब के बाद अगर किसी को तवज्जो दी जाती थी तो वो “खुमार साहब” ही थे |
महान शायर और गीतकार मजरूह सुलतानपुरी आपके अज़ीज़ दोस्त थे| जितना बड़ा क़द विनम्रता की उतनी ही बड़ी मूरत, कभी-कभी तो मुशायरों में आपको घंटों तक ग़ज़ल पढ़नी पड़ती थी, लोग उठने ही नहीं देते थे | हर मिसरे के बाद “आदाब” कहने की इनकी अदा इन्हें बाकियों से मुख्तलिफ़ करती है । आपका अंदाजे बयां भी औरों से अलग था जो इनकी ख़ूबसूरत ग़ज़लों में और भी चार-चाँद लगाता था |
वैसे तो खुमार साहब मुशायरों को ही तवज्जो देते थे , लेकिन फिर भी उन्होंने कुछ फ़िल्मों के गीत भी लिखे, जो उनकी ग़ज़लों की तरह ही उम्दा हैं |
हर दिल अजीज ‘खुमार बाराबंकवी’ को वर्ष 1942-43 में प्रख्यात फिल्म निर्देशक एआर अख्तर ने मुम्बई बुला लिया। यहाँ से शुरू हुआ उनका फ़िल्मी सफ़र और वे फ़िल्मी दुनिया में एक सफल गीतकार के रूप में जुड़ गए।
आपने 1955 में फिल्म “रुख़साना” के लिये “शकील बदायूँनी” के साथ गाने लिखे थे। उससे पहले 1946 में फ़िल्म “शहंशाह ” के एक गीत “चाह बरबाद करेगी” को “खुमार” साहब ने हीं लिखा था, जिसे संगीत से सजाया था “नौशाद” ने और अपनी आवाज़ दी थी गायकी के बेताज बादशाह “के०एल०सहगल” साहब ने |
फ़िल्म ‘बारादरी’ के लिये लिखा गया उनका यह गीत ‘तस्वीर बनाता हूँ, तस्वीर नहीं बनती’ आज भी लोगों के दिलों में बसा है। उन्होंने तमाम फ़िल्मों के लिये ‘अपने किये पे कोई परेशान हो गया’, ‘एक दिल और तलबगार है बहुत’, ‘दिल की महफ़िल सजी है चले आइए’, ‘साज हो तुम आवाज़ हूँ मैं’,’भुला नहीं देना’, ‘दर्द भरा दिल भर-भर आए’, ‘आग लग जाए इस ज़िन्दगी को, मोहब्बत की बस इतनी दास्ताँ है’, ‘आई बैरन बयार, कियो सोलह सिंगार’, जैसे गीत लिखे जो खासे लोकप्रिय हए।
खुमार के ये गीत आज भी हमारी ज़िन्दगी में रस घोल देते हैं।
खुमार साहब ने चार पुस्तकें भी लिखीं ये पुस्तकें शब-ए-ताब, हदीस-ए-दीगर,आतिश-ए-तर और रख्स-ए-मचा है।
खुमार की पुस्तकें कई विश्वविद्यालयों के पाठयक्रम में शामिल की गई। उन्हें उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी, जिगर मुरादाबादी, उर्दू अवार्ड, उर्दू सेंटर कीनिया और अकादमी नवाये मीर उस्मानिया विश्वविद्यालय हैदराबाद, मल्टी कल्चरल सेंटर ओसो कनाडा, अदबी संगम न्यूयार्क, दीन दयाल जालान सम्मान वाराणसी, कमर जलालवी एलाइड्स कालेज पाकिस्तान आदि ने सम्मानित किया।
वर्ष 1992 में दुबई में खुमार की प्रसिद्धि और कामयाबी के लिये जश्न मनाया गया। 25 सितम्बर 1993 को बाराबंकी जिले में जश्न-ए-खुमार का आयोजन किया गया। जिसमें तत्कालीन गवर्नर मोतीलाल वोरा ने एक लाख की धनराशि व प्रशस्ति पत्र उन्हें देकर सम्मानित किया।
खुमार का अंतिम समय काफी कष्टप्रद रहा। मृत्यु के एक वर्ष पूर्व से ही उन्होंने खाना पीना छोड़ दिया था। 13 फरवरी 99 को उनकी हालत गंभीर हो गई। उन्हें बाराबंकी जिला हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। जहाँ 20 फरवरी को उन्होंने आखिरी साँस ली थी।