
तहलका टुडे टीम/अली मुस्तफा
लखनऊ: इंसाफ और हक़ की राह पर चलने वाले जस्टिस ए.आर. मसूदी की अहलिया नाजिया मसूदी को रविवार को इमामबाड़ा गुफरानमाब में बड़े मजमे के बीच नम आंखों से सुपुर्द-ए-खाक किया गया। इस रूहानी और गमगीन माहौल में, इंसानियत, हक़ और इंसाफ़ बचाने वाले शहीदाने कर्बला की याद में बने इस पवित्र इमामबाड़े की ज़मीन पर मरहूमा की आखिरी आरामगाह बनी।

सबके जाने के बाद कब्र के पास, जस्टिस मसूदी साहब अपनी बेटी और परिवार के अन्य लोगों के साथ बैठे हुए थे। उनकी आंखों में ग़म और सब्र के आंसू थे, जो बेटी की तड़प और ज़ौजा के बिछड़ने के दर्द में ठहर गए थे। सब्र की तस्बीह को वे दिल से पढ़ते रहे, जैसे खुदा से इस भारी दुख को सहने की ताकत मांग रहे हों। धीरे-धीरे लोग कब्र से दूर हो रहे थे, लेकिन परिवार का दर्द और गम गहरा होता जा रहा था।

छुट्टी का दिन था, और लखनऊ का यह रूहानियत से भरा हुआ इमामबाड़ा गुफरानमाब, जज, वकील, नौकरशाह और समाजी शख्सियतों से भरा हुआ था। हाईकोर्ट और तमाम प्रमुख लोग इस दुख की घड़ी में जस्टिस मसूदी साहब के साथ खड़े थे। चीफ जस्टिस, हाईकोर्ट के जज, सेशन जज, मजिस्ट्रेट, चीफ सेक्रेटरी,कमिश्नर, और शासन प्रशासन के आला अधिकारी इस गम में शरीक हुए।

ईश्वर के एक सिफात के हामी, इंसाफ पसंद, और एखलाक बुलंद इंसान के परिवार की यह हस्ती नाजिया मसूदी अपनी मिलनसारी,उसूलों और हक़ परस्ती के कारण समाज में एक मिसाल थी। उनकी आखिरी आरामगाह भी उस पवित्र जमीन पर बनी, जहां शहीदों की यादें और इंसाफ की खुशबू हमेशा ताज़ा रहती है। मरहूमा की नमाज़-ए-जनाजा मशहूर आलिम-ए-दीन, आफताबे शरीयत मौलाना डॉ. सैयद कल्बे जवाद नकवी साहब ने पढ़ाई।इससे पहले उन्होंने मजलिस को खिताब करते हुए शहीदाने करबला के दर्दनाक मसायब पढ़कर मरहुमा के इसाले सवाब के लिए दुआ की।

तदफीन के वक्त, शहर के हर वर्ग, जाति, और धर्म से लोग, जिनमें समाजी और मजहबी शख्सियतें भी थीं, इस गम में शरीक हुए और जस्टिस मसूदी साहब के परिवार को पुरसा दिया। यह एक ऐसा वक्त था, जब लखनऊ की गंगा-जमुनी तहजीब और एकजुटता ने इस दुख को महसूस किया और एक परिवार की तकलीफ को बांटा।

सयूम की मजलिस का ऐलान
मरहूमा के ईसाले सवाब के लिए सयूम की मजलिस 15अक्टूबर मंगलवार की शाम 7 बजे इमामबाड़ा गुफरानमाब में आयोजित की जाएगी।
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