नाराये हैदरी या अली या अली मौला अली अली !की गूंजी सदाये-मुसलमानो के पहले इमाम और चौथे खलीफा हज़रत अली अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस की पूर्व संध्या पर ज़िले में मस्जिदों करबलाओ दरगाहों में चिरागा नज़रो नियाज़ और महफ़िल का आयोजन किया गया। इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी,कैबिनेट मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी,गवर्नर राम नाईक ,up के मुख्यमंत्री योगी,मंत्री मोहसिन रज़ा ने दी मुबारकबाद दिया
Yमालूम हो हज़रत अली इब्ने अबू तालिब उर्फ़ हज़रत अली का शुमार विश्व इतिहास की कुछ महानतम शख्सियतों में किया जाता है। इस्लाम के लगभग डेढ़ हज़ार साल के इतिहास में वे ऐसे शख्स हैं जो अपनी सादगी, करुणा, प्रेम, मानवीयता और न्यायप्रियता के कारण सबसे अलग खड़े दिखते हैं। शांति और अमन के इस दूत ने आस्था के आधार पर इस्लाम में कत्ल, भेदभाव और नफरत को कभी जायज़ नहीं माना। उनकी नज़र में अत्याचार करने वाला ही नहीं, उसमें सहायता करने वाला और अत्याचार से खुश होने वाला भी अत्याचारी ही है। मक्का के काबा शरीफ में जन्मे हज़रत अली पैगम्बर मुहम्मद के चचाजाद भाई और दामाद थे जो कालांतर में मुसलमानों के खलीफा बने। इसके अतिरिक्त उन्हें पहला मुस्लिम वैज्ञानिक भी माना जाता है जिन्होंने वैज्ञानिक जानकारियों को आम भाषा में और रोचक तरीके से आम लोगों तक पहुंचाया था। उनके प्रति लोगों में श्रद्धा इतनी थी कि उन्हें ‘शेर-ए-खुदा’ और ‘मुश्किल कुशा’ जैसी उपाधियां दी गईं। पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद ने उन्हें ‘अबू-तुराब’ की संज्ञा देते हुए उनके बारे में कहा था -‘मैं इल्म का शहर हूं, अली उसके दरवाज़े हैं’ और ‘मैं जिसका मौला हूं, अली भी उसके मौला हैं। (तिरमीज़ी शरीफ़)।
हज़रत अली ने 656 से 661 तक राशदीन ख़िलाफ़त के चौथे ख़लीफ़ा के रूप में शासन किया। शासक के तौर पर उनकी सादगी ऐसी थी कि खलीफा बनने के बाद उन्होंने सरकारी खज़ाने से अपने या अपने रिश्तेदारों के लिए कभी कुछ नहीं लिया। वे वही जौ की रोटी और नमक खाते थे जो खिलाफत के बहुसंख्यक लोगों का नसीब था। वे सुन्नी समुदाय के आखिरी राशदीन और शिया समुदाय के पहले इमाम थे। खलीफा के तौर पर अपने छोटे-से कार्यकाल में उन्होंने शासन के जिन आदर्शों का प्रतिपादन किया, उसकी मिसाल दुनिया की किसी राजनीतिक विचारधारा मेँ नहीं मिलती। आधुनिक लोकतंत्र और मार्क्सवादी शासन व्यवस्था में भी नहीं। दुर्भाग्य से उन्हें अपने विचारों को अमली जामा पहनाने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिला। नमाज़ के दौरान कट्टरपंथियों द्वारा उनकी हत्या कर दी गई।
उनके बाद दुनिया के किसी भी मुल्क, यहां तक कि किसी इस्लामी मुल्क ने भी शासन में उनके विचारों को कभी तवज्जो नहीं दी।
उनके कुछ विचार आप ख़ुद पढ़कर देखें ! अगर कोई शासक इन्हें अमली जामा पहनाए तो क्या हमारी दुनिया स्वर्ग नहीं बन जाएगी ?
‘अगर कोई शख्स भूख मिटाने के लिए चोरी करता पाया जाय तो हाथ चोर के नहीं, बल्कि बादशाह के काटे जाय।
राज्य का खजाना और सुविधाएं मेरे और मेरे परिवार के उपभोग के लिए नहीं हैं। मै बस इनका रखवाला हूं।’
‘तलवार ज़ुल्म करने के लिए नहीं. मज़लूमों की जान की हिफ़ाज़त के लिए उठनी चाहिये !’
‘अगर दुनिया फ़तेह करना चाहते हो, तो अपनी आवाज़ मे नरम लहजा पैदा करो। इसका असर तलवार से ज़्यादा होता है।’
‘तीन चीज़ों को हमेशा साथ रखो – सचाई, इमान और नेकी। तीन चीज़ों के लिए लड़ो – वतन, इज्ज़त और हक़।’
‘अच्छे के साथ अच्छा रहो, लेकिन बुरे के साथ बुरा मत रहो। तुम पानी से खून साफ़ कर सकते हो, खून से खून नहीं।’
‘जब मैं दस्तरख्वान पर दो रंग के खाने देखता हूं तो लरज़ जाता हूं कि आज फिर किसी का हक़ मारा गया है।’
‘किसी की आंख तुम्हारी वजह से नम न हो क्योंकि तुम्हे उसके हर इक आंसू का क़र्ज़ चुकाना होगा।’.
बाराबंकी की कर्बला सिविल लाइन्स मे चिरागा और महफ़िल का आयोजन किया गया मुतावल्ली मज़ाहिर हुसैन की मौजूदगी में मोहम्मद हैदर ने तिलावते कलामे पाक और हदीस किसा पड़ी,आरिज़ जरगनवी समेत कई लोगो ने कलाम पेश कर खिराजे अकीदत पेश की महफ़िल को अली मिया ने खिताब किया बाद में नज़रे मौला का भी आयोजन किया गया।