तहलका टुडे
हिंद के माथे पर सुशोभित जो बिंदी है, वही हमारी मात्रभाषा हिंदी है। इसीलिए भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने हिंदी को निजभाषा की संज्ञा दी।
” निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को शूल।। ”
अंग्रेजी के बढ़ते चलन और हिंदी भाषा की अनदेखी को रोकने के लिए प्रत्येक 14 सितंबर को देशभर में हिंदी दिवस मनाया जाता है।आजादी के दो वर्ष बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में एक मत से हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया था और इसके बाद से प्रत्येक 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।देश की आजादी के बाद हिन्दी को राष्ट्रभाषा का गौरव दिलाने के लिये काका कालेलकर, मैथिलीशरण गुप्त, हजारीप्रसाद द्विवेदी, महादेवी वर्मा आदि साहित्यकारों ने अथक प्रयास किए।
26 जनवरी 1950 को देश का संविधान लागू होने के साथ साथ राजभाषा नीति भी लागू हुई। जिसमें स्पष्ट किया गया है कि भारत की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी है।इसके अंतर्गत यह भी व्यवस्था की गई है कि संविधान के लागू होने के समय से 15 वर्ष की अवधि तक, अर्थात वर्ष 1965 तक संघ के सभी सरकारी कार्यों के लिए पहले की भांति अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग होता रहेगा और इस बीच यह भी व्यवस्था की गयी थी कि हिंदी न जानने वाले हिंदी सीख लेंगे। उसके बाद हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दे दिया जाएगा। लेकिन बिडंबना है कि आज भी हिंदी को वह सम्मान न मिल सका जिसकी वह हकदार है।हिंदी के सम्मान के लिये अनेक संस्थाएं निरन्तर आवाज बुलंद करती आ रही है।हर वर्ष हिंदी दिवस पर हमारे नीति नियंताओं द्वारा हिंदी के उत्थान के लिये मंचों से बड़े बड़े भाषण दिये जाते है।अनेक योजनाएं बनाई जाती हैं।लेकिन हिंदी उत्थान के लिये बनने वाली योजनाएं सिर्फ बैनर, पोस्टर और मंचीय भाषणों तक ही सिमटकर रह जाती है।धरातल पर आज भी हिंदी के साथ उपेक्षित व्यवहार जारी है।
वर्तमान समय के परिप्रेक्ष्य में यदि हम हिंदी भाषा की उपयोगिता व अनुप्रयोग पर बात करें तो लगता है कि हिंदी भाषा को हम पीछे छोड़ते चले जा रहे हैं।अंग्रेजी का प्रचलन विगत वर्षों में तेजी से बढ़ा है।आज हिंदी कालांतर की भाषा मानी जा रही है।फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने व लिखने वालों का महत्व दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। हमारे नीति नियंताओं ने भी हिंदी को पीछे धकेलने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भारत की सबसे बड़ी प्रशासनिक सेवाएं आई.ए.एस. और आई.पी.एस. आदि में अंग्रेजी को इतना महत्व दिया गया किसी सी-सैट के कारण हिंदी विशेषज्ञों का चयन आसानी से नहीं हो पाता, हलांकि उन्हें कम आंकना उचित नहीं है।अंग्रेजी भाषा के मिथ्या आकर्षक के कारण वह पीछे होते जा रहे हैं। हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी हिंदी को यू.एन.सहित विश्व की भाषा बनाने का सपना देख रहे हैं,जबकि भारत में ही हिंदी भाषा कार्यालयी भाषा नहीं रह गई। उच्चतम न्यायालय में तो हिंदी का कोई स्थान ही नहीं नजर आता है। उच्च न्यायालयों में भी समस्त निर्णय अंग्रेजी में लिखे जाते हैं।आज के डिजिटल इंडिया और संचार तकनीक में अंग्रेजी का ही बोलबाला है। इसी कारण बोर्ड परीक्षाओं चाहे, यू.पी. बोर्ड हो, सी.बी.एस.ई. बोर्ड या आई. सी. एस. ई. सभी में अधिकतर बच्चे हिंदी में अनुत्तीर्ण हो रहे हैं। क्योकि हिंदी भाषा का अनुप्रयोग ही सीमित होता जा रहा है, जबकि भारतवर्ष की उन्नति का मूल हिंदी भाषा ही है। हिंदी माध्यम के विद्यालय भी न्यून होते जा रहे हैं। अतः समाज व सरकार को हिंदी की महत्ता को अक्षुण्ण बनाए रखने हेतु सकारात्मक व सार्थक प्रयास करने होंगे अन्यथा हिंदी दिवस एक आडंबर व दिखावा ही रह जाएगा।
” हिंदी है माथे की बिंदी, इसको भूल न जाना।
अगर कहीं से चूक गए, तो फिर है पछताना।। “