
FILE - This Monday, July 2, 2018, file photo provided by Tham Luang Rescue Operation Center shows a group of Thai youth soccer players and their coach as they were found in a partially flooded cave in Mae Sai, Chiang Rai province, northern Thailand. For the boys and their coach, we have only a hint of what it might have been like. But for the rest of us, watching from afar as the worlds journalists beamed us live shots and the unknowable became known drip by captivating drip, we knew only one thing: It was hard to look away. (Tham Luang Rescue Operation Center via AP, File)
बैंकाक । थाइलैंड की अंडर-16 टीम का 14 वर्षीय सदस्य एडुल सेम उन 12 खिलाड़ियों में से एक हैं, जो अपने कोच के साथ 23 जून को उत्तरी थाईलैंड की टैम लूंग गुफा में फंस गए थे। गुफा में अचानक पानी भरने के बाद खिलाड़ियों और उनके कोच की जिंदगी दांव पर लग गई थी, लेकिन 8 देशों के 90 गोताखोरों के हौसले की बदौलत उन्हें नवजीवन मिल सका।
किशोर एडुल सेम के लिए जिंदगी दांव पर लगना कोई नई बात नहीं है। जब एडुल महज 6 साल का था तब उसका परिवार म्यांमार के एक हिंसाग्रस्त क्षेत्र से भागकर थाईलैंड आया था। अदुल के माता-पिता चाहते थे कि उनके बेटे को अच्छी शिक्षा मिले और उसका भविष्य उज्ज्वल हो इसलिए बचकर थाईलैंड आ गए। एडुल के लिए मंगलवार का दिन जिंदगी की सबसे बड़ी जीत का दिन रहा।
एडुल और उसके साथी 23 जून को गुफा में फंस गए थे। 2 जुलाई को जब ब्रिटिश गोताखोर उनतक पहुंचा तो वहीं एकमात्र ऐसा खिलाड़ी था जो अंग्रेजी में बात कर सकता था। उसने ही ब्रिटिश गोताखोर से बात की, दिन पूछा, खाने और पानी की जरूरत बताई। यानी टीम के साथ एडुल नहीं होता तो शायद उसे और तकलीफ का सामना करना पड़ता। एडुल अंग्रेजी के अलावा थाई, बर्मी और चीनी भी बोल लेता है। वह सात साल की उम्र से ही स्कूल कैम्पस में रहता है।
एडुल मे साई नाम के बॉर्डर वाले इलाके में रहता है, जिसे थाईलैंड में गर्व से नहीं देखा जाता। यह इलाका थाईलैंड, म्यांमार और लाओस के तिकोने पर स्थिति है, इसलिए इसे ग्लोडन ट्राएंगल भी कहा जाता है। ग्लोडन ट्राएंगल में ऐसे लोग बहुतायत में हैं जो म्यांमार में स्वायत्तता के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
कोच इकापोल चांथावोंग के अलावा फुटबॉल टीम के तीन और खिलाड़ी ऐसे हैं, जो नागरिकता विहीन अल्पसंख्यक हैं। ये सभी शाम को म्यांमार चले जाते हैं और सुबह फुटबॉल खेलने थाईलैंड चले आते हैं। फिलहाल इन फुटबॉल खिलाड़ियों ने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी जंग तो जीत ली है, लेकिन आगे उन्हें फिर वहीं संघर्ष करना पड़ेगा, जिनसे वे 23 जून से पहले दो-चार हो रहे थे।