 
        काठमांडू । नेपाल के साथ भारत के रिश्ते एक बार फिर पटरी पर लौटते दिखाई दे रहे हैं। नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली की चीन में अब उतनी दिलचस्पी नहीं रह गई है, जैसी पहले हुआ करती थी। सन 2016 में चीन के दौरे के दौरान प्रधानमंत्री ओली ने जितने समझौते किए थे, उनके क्रियान्वयन की गति काफी धीमी रही है। दो साल पहले जिन समझौतों को ऐतिहासिक बताया गया था, ओली के दूसरे चीन दौरे में उन पर बात आगे नहीं बढ़ सकी है।
इस दौरान चीन और नेपाल के बीच कुछ नए समझौते जरूर हुए, जिनका उद्देश्य नेपाल में चीनी निवेश लाना है। पुराने समझौतों को लागू करने में प्रगति न के बराबर हुई है। नेपाल के नए संविधान को लेकर भारत ने विरोध किया था। 2015-16 में भारत-नेपाल सीमा पर हुए ब्लॉकेड की प्रतिक्रिया में नेपाल प्रमुख ओली ने चीन के साथ ट्रांजिट और ट्रांसपोर्ट समझौते पर हस्ताक्षर किए। नेपाल के इस कदम के सैद्धान्तिक मायने महत्वपूर्ण थे। इसका मतलब था कि नेपाल की आपूर्ति व्यवस्था पर भारत के एकाधिकार की समाप्ति। बॉर्डर पर हुए ब्लॉकेड से नेपालियों की दैनिक जरूरतों की चीजों की आपूर्ति का संकट पैदा हो गया था जिससे वहां का आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया था।
नेपाल की सरकार पर यह दबाव बढ़ा कि भारत पर पूरी तरह से देश की आपूर्ति व्यवस्था की निर्भरता कम की जाए और अन्य देशों के साथ रिश्ते मजबूत किए जाएं। चीन से नेपाल की करीबी बढ़ाने के लिए ओली को हर तरह से समर्थन मिला। जब वह ऑफिस से बाहर हुए थे तो उन्होंने अपने बाद आने वाले प्रधानमंत्रियों पुष्प दहल और शेर बहादुर देउबा की यह कहकर आलोचना की कि उनके कार्यकाल में चीन के साथ हुए समझौतों को वे लागू नहीं कर पाए। ओली खुद ही इन समझौतों को लागू करने की दिशा में बहुत आगे नहीं बढ़ पाए हैं।
उदाहरण के तौर पर, 2016 में नेपाली अधिकारियों ने चीन से पेट्रोलियम आयात करने के लिए कई दौर की वार्ताएं कीं। दोनों देशों ने पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति को अंतिम रूप देने के लिए अपने प्रतिनिधि अधिकारियों को निर्देशित करने पर भी सहमति जताई। चीन से तेल आयात करने के लिए डील हो चुकी है, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि नेपाल और भारत क्रॉस बॉर्डर पेट्रोलियम पाइपलाइन के निर्माण पर पहले ही काम शुरू कर चुका है।
नेपाल और चीन ने 2016 में हिमालय में रेलवे नेटवर्क बनाने पर सहमति जताई थी। इससे संबंधित सहमति पत्र पर हस्ताक्षर भी किए गए थे, लेकिन इसमें स्पष्टता और जानकारी का पूरी तरह अभाव रहा। पिछले माह एक चीनी टीम दोनों देशों के बीच रेलवे नेटवर्क की व्यावाहारिकता की जांच करने के लिए आई थी, लेकिन टीम ने अब तक अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपी है। इसके अलावा अनेक योजनाएं हैं, जो फिलहाल पूरी होती नहीं दिखाई देती हैं।

 
         
        