सरवर अली रिज़वी
बाराबंकी: भारत अपनी विविधता में एकता और गंगा-जमुनी तहज़ीब के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। यह तहज़ीब हमारे समाज में भाईचारे, समानता, और इंसानियत की भावना को प्रबल करती है। उत्तर प्रदेश में अयोध्या के निकट देवा और महादेवा की भूमि इस अनूठी संस्कृति का जीता-जागता उदाहरण है। यहाँ धार्मिक सहिष्णुता, सांस्कृतिक एकता, और सेवा के प्रति समर्पण हर कदम पर देखने को मिलता है। हाल ही में करबला सिविल लाइंस में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम ने इस तहज़ीब को और अधिक सशक्त किया।
करबला में मजलिस और श्रद्धांजलि: गंगा-जमुनी तहज़ीब की मिसाल
इस ऐतिहासिक कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण था दुनिया के प्रख्यात धर्मगुरु हुज्जतुल इस्लाम मौलाना नजीबुल हसन जैदी का खिताब। मौलाना ने करबला के शहीदों की कुर्बानी को इंसानियत के आदर्शों की सबसे बड़ी मिसाल बताते हुए कहा कि करबला का संदेश आज भी प्रासंगिक है। यह हमें अत्याचार, अन्याय, और भेदभाव के खिलाफ खड़े होने की प्रेरणा देता है। उन्होंने करबला को केवल एक धार्मिक घटना नहीं, बल्कि मानवता और न्याय का शाश्वत प्रतीक बताया।
कार्यक्रम में श्री राम वन कुटीर आश्रम, हड़ियाकोल के सेवादार मनीष मेहरोत्रा ने करबला के शहीदों को श्रद्धांजलि स्वरूप नव्हा और सलाम पेश किया। यह भावनात्मक और प्रेरणादायक क्षण था जिसने यह संदेश दिया कि सच्ची श्रद्धांजलि सेवा और समर्पण के रूप में होती है।
श्री राम वन कुटीर आश्रम: सेवा और समर्पण का आदर्श
हड़ियाकोल में स्थित श्री राम वन कुटीर आश्रम हर साल बिना किसी धर्म या जाति के भेदभाव के 5 से 6 हजार गरीबों के मुफ्त ऑपरेशन करता है। यह आश्रम न केवल चिकित्सा सेवा प्रदान करता है, बल्कि समाज को एकता और मानवता का पाठ भी पढ़ाता है। आश्रम के सेवादार मनीष मेहरोत्रा इस सेवा कार्य की रीढ़ हैं। उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण ने इस प्रयास को हर वर्ष सफल बनाया है।
मनीष मेहरोत्रा की सेवाएँ केवल आश्रम तक सीमित नहीं हैं। वे बाराबंकी के ठाकुर द्वारा मंदिर की कीमती जमीन को बचाने के संघर्ष में भी वर्षों से सक्रिय हैं। उन्होंने मंदिर की संपत्ति को अवैध कब्जे से मुक्त कराने और इसे समाज के हित में बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनका यह संघर्ष दर्शाता है कि सच्ची भक्ति ईश्वर के प्रति समर्पण और समाज की भलाई में है।
देवा शरीफ देश में एकता की पहचान
देवा शरीफ की दरगाह, जो हाजी वारिस अली शाह (वारिस पाक) की यादगार है, गंगा-जमुनी तहज़ीब का एक अद्भुत प्रतीक है। वारिस पाक ने हमेशा मानवता, भाईचारे और सहिष्णुता का संदेश दिया। उनकी शिक्षाओं ने देवा को सांप्रदायिक सौहार्द्र और धार्मिक एकता का केंद्र बना दिया है।
इस कार्यक्रम में अलहाज सैयद शुजाअत हुसैन रिजवी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए करबला के शहीदों की याद में नव्हा और सलाम पेश किया गया। यह आयोजन इस बात का प्रतीक था कि इंसानियत का धर्म हर जाति और धर्म से ऊपर है।
महादेवा और देवा: सांप्रदायिक सौहार्द्र का संगम
महादेवा का प्राचीन शिव मंदिर और देवा शरीफ की दरगाह इस क्षेत्र की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता का प्रतीक हैं। यहाँ हिंदू और मुसलमान दोनों समुदाय मिलकर त्योहार मनाते हैं। महाशिवरात्रि हो या उर्स, इन आयोजनों में सभी धर्मों के लोग उत्साह के साथ भाग लेते हैं।
यह क्षेत्र न केवल सांप्रदायिक एकता का आदर्श है, बल्कि यह दिखाता है कि विविधता में एकता कैसे संभव है। देवा-महादेवा की इस भूमि पर गंगा-जमुनी तहज़ीब की जड़ें इतनी गहरी हैं कि यह क्षेत्र भारत की सांस्कृतिक विरासत का नायाब उदाहरण बन गया है।
मौलाना नजीबुल हसन जैदी: समाज को प्रेरणा देने वाले विचार
मौलाना नजीबुल हसन जैदी का करबला की घटना पर आधारित भाषण हर किसी को गहराई से प्रभावित कर गया। उन्होंने कहा, “करबला केवल एक घटना नहीं, बल्कि यह अन्याय और अत्याचार के खिलाफ इंसानियत का सबसे बड़ा आंदोलन है।” उन्होंने समाज को यह संदेश दिया कि धार्मिक सहिष्णुता और इंसानियत की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है।
उनके विचार ने हर वर्ग और समुदाय के लोगों को प्रेरित किया और यह दिखाया कि करबला का संदेश केवल मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए है।
समाज को एकता और सेवा का संदेश
इस कार्यक्रम ने यह संदेश दिया कि समाज में बदलाव केवल तभी संभव है जब हम इंसानियत को सबसे ऊपर रखें। मनीष मेहरोत्रा जैसे लोग और मौलाना नजीबुल हसन जैदी जैसे धर्मगुरु इस बदलाव के उदाहरण हैं।
यह आयोजन न केवल श्रद्धांजलि का अवसर था, बल्कि यह भी दिखाया कि कैसे गंगा-जमुनी तहज़ीब को बनाए रखते हुए समाज को एक नई दिशा दी जा सकती है।
एक नई प्रेरणा और उम्मीद
देवा-महादेवा की यह पवित्र भूमि भारतीय संस्कृति का जीता-जागता उदाहरण है। यहाँ धार्मिक सहिष्णुता, सांस्कृतिक एकता, और सेवा के प्रति समर्पण की अद्भुत मिसाल देखने को मिलती है।
करबला सिविल लाइंस में आयोजित यह कार्यक्रम न केवल करबला के शहीदों की कुर्बानी का सम्मान था, बल्कि गंगा-जमुनी तहज़ीब को संजोने और बढ़ावा देने का प्रयास भी था। यह आयोजन आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा है और यह संदेश देता है कि सच्ची श्रद्धांजलि इंसानियत और सेवा के रूप में होती है।
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