चुनाव आयोग की सिफ़ारिश पर राष्ट्रपति ने इन 20 विधायकों को अयोग्य ठहराते हुए इनकी सदस्यता रद्द करने का आदेश दिया था.
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली हाई कोर्ट में इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील की थी.
शुक्रवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के बाद कहा कि चुनाव आयोग को आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को अपनी बात कहने का मौक़ा देना चाहिए था.
हाई कोर्ट ने ये भी कहा कि चुनाव आयोग ने मौखिक सुनवाई के नियमों का ख़्याल नहीं रखा.
‘दिल्ली के लोगों की जीत’
हाई कोर्ट के इस फ़ैसले पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया है, “सत्य की जीत हुई. दिल्ली के लोगों द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों को ग़लत तरीक़े से बर्ख़ास्त किया गया था. दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली के लोगों को न्याय दिया है. दिल्ली के लोगों की बड़ी जीत. दिल्ली के लोगों को बधाई.”
आम आदमी पार्टी के विधायक सौरभ भारद्वाज ने कहा है, “आप विधायकों को अपना पक्ष रखने का मौक़ा ही नहीं दिया गया था. कोर्ट ने कहा है कि कम से कम उनकी सुनी तो जाए. अब चुनाव आयोग को फिर से सुनवाई करनी होगी.”
क्या है पूरा मामला?
ये मामला मार्च 2015 से चल रहा है जब अरविंद केजरीवाल ने अपने 21 विधायकों को संसदीय सचिव के पद पर नियुक्त किया था. इसके अनुसार दिल्ली में संसदीय सचिव को घर, गाड़ी और दफ़्तर जैसी सुविधाएं मिल सकती हैं.
चुनाव आयोग ने 19 जनवरी 2018 को संसदीय सचिव के पद को “लाभ का पद” करार देते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से 20 विधायकों की सदस्यता को रद्द करने की सिफारिश की थी.
चुनाव आयोग का मानना था कि ये विधायक 13 मार्च, 2015 से 8 सितंबर, 2016 के बीच ‘लाभ के पद’ के मामले में अयोग्य घोषित किए जाने चाहिए.
इसके बाद 21 जनवरी को केंद्र सरकार ने इस बारे में अधिसूचना जारी की. इसके बाद ही ये 20 विधायक इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ हाई कोर्ट पहुंचे थे.
इस मामले में है इन विधायकों का नाम
1. जरनैल सिंह, तिलक नगर
2. नरेश यादव, महरौली
3. अल्का लांबा, चांदनी चौक
4. प्रवीण कुमार, जंगपुरा
5. राजेश ऋषि, जनकपुरी
6. राजेश गुप्ता, वज़ीरपुर
7. मदन लाल, कस्तूरबा नगर
8. विजेंद्र गर्ग, राजिंदर नगर
9. अवतार सिंह, कालकाजी
10. शरद चौहान, नरेला
11. सरिता सिंह, रोहताश नगर
12. संजीव झा, बुराड़ी
13. सोम दत्त, सदर बाज़ार
14. शिव चरण गोयल, मोती नगर
15. अनिल कुमार बाजपेई, गांधी नगर
16. मनोज कुमार, कोंडली
17. नितिन त्यागी, लक्ष्मी नगर
18. सुखबीर दलाल, मुंडका
19. कैलाश गहलोत, नजफ़गढ़
20. आदर्श शास्त्री, द्वारका
क्या होता है लाभ का पद?
‘लाभ के पद’ का मतलब उस पद से है जिस पर रहते हुए कोई व्यक्ति सरकार की ओर से किसी भी तरह की सुविधा ले रहा हो.
अगर इसके सिद्धांत और इतिहास की बात करें तो इसकी शुरुआत ब्रिटिश क़ानून ‘एक्ट्स ऑफ़ यूनियन, 1701’ में देखी जा सकती है.
इस क़ानून में कहा गया है कि अगर कोई भी व्यक्ति राजा के अधीन किसी पद पर कार्यरत रहते हुए कोई सेवा ले रहा है या पेंशनभोगी है तो वह व्यक्ति हाउस ऑफ़ कामंस का सदस्य नहीं रह सकता.
भारतीय संविधान की बात करें तो संविधान के अनुछेद 191(1)(ए) के मुताबिक़, अगर कोई विधायक किसी लाभ के पद पर पाया जाता है तो विधानसभा में उसकी सदस्यता अयोग्य क़रार दी जा सकती है.
विशेषज्ञों के मुताबिक़, संविधान में ये धारा रखने का उद्देश्य विधानसभा को किसी भी तरह के सरकारी दबाव से मुक्त रखना था. क्योंकि अगर लाभ के पदों पर नियुक्त व्यक्ति विधानसभा का भी सदस्य होगा तो इससे प्रभाव डालने की कोशिश हो सकती है.
जया बच्चन को देना पड़ा था इस्तीफ़ा
उत्तर प्रदेश सरकार में लाभ के एक पद पर बने रहने के कारण साल 2006 में जया बच्चन को अपनी राज्यसभा सदस्यता छोड़नी पड़ी थी.
लेकिन इसके बाद बच्चन ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी बात रखी थी कि उन्होंने किसी तरह की सुविधा नहीं ली.
इसके बाद सु्प्रीम कोर्ट ने उनकी अर्जी ख़ारिज करते हुए कहा था कि इस मुद्दे पर क़ानूनी स्थिति साफ़ है जिसके मुताबिक़, इससे फर्क नहीं पड़ता कि लाभ के पद पर रहते हुए कोई सुविधा ली गई अथवा नहीं, बल्कि इससे फ़र्क पड़ता है कि वो पद लाभ का पद है या नहीं.