
सुनकर आपको जरूर हैरानी होगी. लेकिन चौंकिए मत, ऐसा हकीकत में है।
तहलका टुडे टीम
भारत में जिंदा इंसान की कद्र नहीं है मरने के बाद उसकी कद्र होती है,इंसान गुरबत और भूख प्यास से किस तरह तड़प रहे है मर रहे है ये रोज देखा जा रहा है,यही हाल जानवरों का है भूखी प्यासी गौवंश किस तरह तड़प कर मर रही है अपनी विभिन्न सांस्कृतिक व धार्मिक विरासत के लिए जाना जाता है. यह आस्था का देश है, जहां लाखों की संख्या में मंदिर और अन्य पूजास्थल हैं. यहां पूजा पद्धति भी अलग-अलग है. कोई पेड़-पौधों की पूजा करता है तो किसी की आस्था पशुओं में है. यूपी के झांसी में तो एक मंदिर ऐसा है जिसमें कुतिया की मूर्ति स्थापित है.और उसकी पूजा होती है।

यूपी के झांसी में ये एक छोटा-सा मंदिर है जिस पर लिखा हुआ है ‘जय कुतिया महारानी मां’. इस मंदिर पर लोग जाते हैं और मत्था टेकते हैं. मंदिर का ये नाम क्यों पड़ा इसके पीछे भी एक विचित्र कहानी है. देखिए इस मंदिर की तस्वीरें

यह मंदिर झांसी जिले के मऊरानीपुर तहसील में है. मऊरानीपुर के गांव रेवन और ककवारा की सीमा पर कुतिया महारानी का ये मंदिर है. ये एक छोटा-सा मंदिर है, जो सड़क किनारे बना है.
सड़क किनारे एक सफेद चबूतरे पर काले रंग की कुतिया की मूर्ति स्थापित की गई है. लोग इस मंदिर में आते हैं, पूजा करते हैं, मत्था टेकते हैं.

यहां के लोगों का कहना है कि एक कुतिया इन दोनों गांवों में रहती थी, जो किसी भी आयोजन में खाने पहुंच जाती थी. एक बार रेवन गांव में भोजन का कार्यक्रम था. रमतूला की आवाज सुनते ही कुतिया खाना खाने के लिए रेवन गांव में पहुंच गई. लेकिन, वहां खाना खत्म हो चुका था. इसके बाद वह ककवारा गांव पहुंची, वहां भी खाना नहीं मिला और इस तरह वह भूख से मर गई.

इलाके के ही रहने वाले इतिहास के जानकार हरगोविंद कुशवाहा का कहना है कि कुतिया की मौत से दोनों गांव के लोगों को बहुत दुख हुआ था, जिसके बाद उन्होंने कुतिया को दोनों गांव की सीमा पर गाड़ दिया और कुछ वक्त बाद वहां एक मंदिर बना दिया. अब परंपरा ये है कि अगर आसपास के गांव में कोई आयोजन होता है तो लोग इस मंदिर पर जाकर भोजन चढ़ाते हैं.

जेहालत देखिए आज भी उसी बुदेलखंड में जानवर भूखे मर रहे है लेकिन उनको खाना खिलाकर बचाने के बजाय मरी कुतिया की कहानी बनाकर उसकी कब्र पर खाना चढ़ा रहे है।