तहलका टुडे टीम
लखनऊ,हुज्जातुल इस्लाम मौलाना अली अब्बास ख़ान साहब की नयाबत में होने वाले रमजान के प्रोग्राम ला रहे हैं समाज में बेदारी,
ऐनुल हयात ट्रस्ट द्वारा ‘‘दीन और हम’’ के नाम से आयोजित होने वाली ‘‘लेवल-1़,2,3‘‘ कक्षाओं में परम्परागत रूप से 10 रमज़ान को हज़रत ख़दीजा जिनको इस्लाम में उम्मुल मोमेनीन कहा जाता है, उनके वफ़़ात (स्वर्गवास) की पूर्व संध्या पर उनके व्यक्तित्व एवं जीवन पर प्रकाश डाल कर समाज में सब्र जब्त का पैगाम हुए एक मजलिस का आयोजन किया गया।
जिसमें तिलावते क़ुरान के बाद अहसन नासिर, वसी अहमद काज़मी, आले हुसैन, मोहम्मद अब्बास एवं मुर्तुज़ा द्वारा हज़रत ख़दीजा की याद में अश्आर प्रस्तुत किये गये जिसके बाद सरफराजगंज स्थित नर्जिस मंजिल में मौलाना अदील असगर काजमी, अलमास मैरिज हाॅल’’ नेपियर रोड में मौलाना हसनैन बाकरी एवं मौलाना अक़ील अब्बास मारूफ़ी, सरफराजगंज स्थित नर्जिस मंजिल में मौलाना अदील असगर काजमी तथा इमामबाड़ा अफसर जहाँ’’ विक्टोरिया स्ट्रीट में मौलाना अली अब्बास ख़ान ने व्याख्यान देते हुए बताया कि हज़रत ख़दीजा जो पैग़म्बरे ख़ुदा हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स0) की अतिसम्मानित पत्नी थीं। उन्हें मलीकतुल अरब (अरब की मलिका) भी कहा जाता है।
हज़रत ख़दीजा का व्यवसाय अरब से बाहर तक फैला हुआ था जिसके कारण उनके पास अकूत धन-दौलत थी, परन्तु उन्होंने अपनी सारी सम्पत्ति हज़रत मोहम्मद साहब को इस्लाम के नाम पर दे दी और इस सम्पत्ति से ग़रीबों, बेसहाराओं, अनाथों तथा विधवाओं को सहारा दिया जाता, ग़ुलामों को ख़रीद कर आज़ाद किया जाता था और ज़रूरतमन्दों की मदद की जाती थी।
उन्होंने बताया कि इस्लाम पर हज़रत ख़दीजा का भी बहुत एहसान है। हज़रत ख़दीजा समय-समय पर इल्मी मुबाहिसों में भाग लिया करती थीं। वह अति धनवान, सम्मानित, ज्ञानी तथा सर्वमान्य, सरल स्वभाव की तथा ईश्वर की सेवा में तत्पर रहने वाली महिला थीं। उनका चरित्र जहां औरतों के लिये आदर्श है वहीं उनकी तरबीयत, उनकी वफ़ा, उनके बाद उनकी बेटी हज़रत फ़ातिमा (स0) जिन्होंने स्वयं और उनके बच्चों ने आगे चलकर इस्लाम एवं इन्सानियत को बचाने के लिये अपने प्राणों एवं परिवार का बलिदान दिया, में देखने को मिली। हज़रत ख़दीजा को अरब की अज्ञानता के वातावरण में ज्ञान के प्रकाश फैलाने के लिये साथ देने के कारण बहुत कठिनाईयों का सामना करना पड़ा, एक समय अरब की औरतों ने उनका बहिष्कार तक कर दिया परन्तु वे सदैव ईश्वर की सच्ची सेवा के लिये समर्पित रहीं तथा अकूत सम्पत्ति के ईश्वर की राज में दे दिये जाने के बाद सादगी के साथ सत्य तथा दीन के मार्ग पर चलती रहीं एवं सभी मुश्किलों का सामना करते हुए लगभग 25 वर्ष तक हज़रत मोहम्मद के साथ वैवाहिक जीवन व्यतीत करने के बाद 10 रमज़ान को इस दुनिया से रूख़सत हो गईं। कक्षाओं में दिये जा रहे व्याख्यान ने जहां विद्यार्थियों को प्रभावित किया वहीं हज़रत ख़दीजा तथा उनके परिवार पर किये गये अत्याचार को सुनकर सब शोकाकुल हो गए एवं आखें आंसुओं से भर गईं।