नई दिल्ली : सरकार द्वारा संसद में पेश ब्यौरों के अनुसार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अप्रैल 2015 में 58 हजार करोड़ रुपये के राफेल लड़ाकू विमान सौदे की घोषणा करने के करीब 16 माह बाद कैबिनेट की सुरक्षा मामलों की समिति (सीसीएस) ने इसको मंजूरी दी थी.
रक्षा राज्य मंत्री सुभाष भामरे ने एक सवाल के लिखित जवाब में यह जानकारी दी. उन्होंने कहा कि प्रत्येक राफेल विमान की कीमत करीब 670 करोड़ रूपये है किन्तु उन्होंने इससे जुड़े उपकरणों, हथियारों एवं सेवाओं की जानकारी नहीं दी. सरकार की ओर से नवंबर 2016 में भी एक प्रश्न के जवाब में इसी प्रकार का उत्तर दिया गया था. उन्होंने कहा, ‘‘36 राफेल विमानों के लिए फ्रांसीसी सरकार के साथ अंतर सरकारी समझौते को सीसीएस ने 24 अगस्त 2016 में अनुमति दी थी तथा इस पर 23 दिसंबर 2016 को हस्ताक्षर किये गये. ’’
भामरे ने कांग्रेस सदस्य विवेक तनखा के प्रश्न के उत्तर में यह जानकारी दी जिन्होंने स्पष्ट तौर पर पूछा था कि क्या फ्रांस में सौदे की घोषणा के समय सीसीएस की मंजूरी मांगी गयी थी. सरकार ने सोमवार को उच्च सदन को बताया कि 36 राफेल विमानों के लिए अंतर-सरकारी समझौते में संबंधित उपकरणों सहित उड़ान के लिए तैयार विमानों की आपूर्ति की परिकल्पना की गयी है. उन्होंने कहा कि 126 विमानों की खरीद के लिए पहले के प्रस्ताव में केवल विनिर्माण लाइसेंस शामिल था और उसमें प्रौद्योगिकी स्थानांतरण शामिल नहीं था. उस प्रस्ताव को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका.
उन्होंने बताया कि नवंबर 2016 की मौजूदा मुद्रा विनिमय दर पर प्रत्येक राफेल विमान की लागत करीब 670 करोड़ रूपए थी जिसमें संबंधित उपकरण, हथियार, भारत में विशिष्ट संवर्धन, रखरखाव सहायता और सेवाएं शामिल नहीं थीं. उन्होंने एक अन्य सवाल के जवाब में कहा कि यह कहना सही नहीं होगा कि मूल्य अधिक हो गया है क्योंकि मूल्य को अंतिम रूप नहीं दिया गया था.
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस इस सौदे को लेकर केन्द्र की राजग सरकार को घेरती रही है. उसका दावा है कि संप्रग के शासनकाल में राफेल विमान खरीदने के लिए जो सौदा किया गया था, उसमें विमान के दाम मोदी सरकार द्वारा विमान खरीद मूल्य की तुलना में बहुत कम थे. पार्टी का यह भी आरोप है कि इस विमान की खरीद में नियमों का उल्लंघन भी किया गया जिसमें सीसीएस की पूर्व मंजूरी नहीं शामिल है.