नई दिल्ली । दिल्ली सीलिंग के मामले में दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के नक्षत्र सुप्रीम कोर्ट में अच्छे नहीं चल रहे हैं। कन्वर्जन चार्ज घटाकर 25 फीसद कर दिये जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने डीडीए को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि डीडीए को दिल्ली के आम लोगों की फिक्र नहीं है। उसके लिए सिर्फ व्यापारी ही मायने रखते हैं जबकि अथॉरिटी को दोनों के बीच संतुलन बनाना चाहिए।
न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर की अध्यक्षता वाली पीठ ने ये टिप्पणियां कन्वर्जन चार्ज 89094 रुपये प्रति वर्गमीटर से घटा कर 22274 रुपये प्रति वर्गमीटर किये जाने को सही ठहराने वाले डीडीए के हलफनामे को देख कर कीं।
डीडीए की ओर से कोर्ट में इसका कारण बताते हुए कहा गया है कि 2012 में तय किये गये 89094 रुपये प्रति वर्गमीटर की दर के कन्वर्जन चार्ज के खिलाफ व्यापारियों का ज्ञापन आया था, जिसमें कहा गया कि एक बार दिया जाने वाला यह कन्वर्जन चार्ज बहुत ज्यादा है।
इससे काफी लोग प्रभावित हो रहें और इसे कम किया जाना चाहिए। इसके बाद डीडीए ने मामले पर विचार किया और कानून के मुताबिक केंद्र सरकार की इजाजत के बाद रिहायशी से व्यवसायिक संपत्ति के कन्वर्जन के लिए तय 100 फीसद की दर को घटा कर 25 फीसद किया।
ऐसा करते समय एनडीएमसी कन्वर्जन दर पर भी ध्यान दिया गया जो कि काफी कम है। इसके बाद डीडीए ने कन्वर्जन चार्ज 89094 रुपये प्रति वर्गमीटर से घटा कर 22274 रुपये प्रति वर्गमीटर कर दिया और इसके बारे में 29 दिसंबर 2017 को अधिसूचना भी जारी हुई।
कोर्ट ने कन्वर्जन चार्ज घटाने के डीडीए द्वारा दिये गए कारणों पर नाराजगी जताते हुए कहा कि डीडीए के लिए सिर्फ व्यापारी महत्वपूर्ण हैं, आम जनता उसके लिए महत्व नहीं रखती। कोर्ट ने आगे कहा कि अगर कोई हाथ में झंडा उठाए प्रदर्शन नहीं करता तो वह आपको नजर नहीं आता। आपकी नजर में उसका कोई मतलब नहीं है।
पीठ ने कहा कि डीडीए को आम जनता और व्यापारियों के बीच संतुलन बनाना चाहिए लेकिन वो ऐसा नहीं कर रहा है। पहले आम आदमी के हित के बारे में कदम उठाना चाहिए। हालांकि डीडीए की ओर से पेश वकील ने कहा कि वो दोनों के बीच संतुलन बना कर ही काम कर रहा है।
उधर दूसरी ओर मानीटरिंग कमेटी ने डीडीए के हलफनामे का जवाब दाखिल करने के लिए कोर्ट से दो सप्ताह का समय मांग लिया। कोर्ट ने मामले की सुनवाई दो सप्ताह के लिए टाल दी।