इलाहाबाद । सपा व बसपा की पूर्ववर्ती सरकारों ने ढिंढोरा पीटा था कि उन्होंने प्रदेश में सबसे अधिक विकास कराया है। लेकिन, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में हजारों करोड़ रुपये से हुए कार्यों की पोल प्रधान महालेखाकार की ऑडिट रिपोर्ट ने खोल दी है। लेखा परीक्षकों की पड़ताल में कहा गया कि इन दोनों ही सरकारों के कार्यकाल में जनता के धन को लूटा गया। पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों ने विकास कार्यों के बेसिक रिकार्ड ही व्यवस्थित नहीं रखे। कार्यों का टेंडर आंख मूंदकर बांटा गया। अधिकांश धनराशि सड़क निर्माण और उसकी मरम्मत पर खर्च की गई।
मंगलवार को प्रधान महालेखाकार पीके कटारिया ने 2004-05 से 2015-16 की वार्षिक तकनीकी रिपोर्ट राज्य विधान मंडल के पटल पर रखी गई। साथ ही मीडिया को भी अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसमें कहा गया कि शहरी स्थानीय निकायों का ऑडिट पहली बार किया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि 2011-16 की अवधि में पंचायती राज संस्थाओं के कुल संसाधनों 30696.07 करोड़ रुपये की तुलना में निजी राजस्व स्रोतों से कुल 898.74 करोड़ रुपये ही वसूल किए गए। यह कुल राजस्व का तीन प्रतिशत है जिसे नगण्य माना गया। यानी पंचायती राज संस्थाएं वित्त पोषण के लिए शासकीय अनुदान पर ही अधिक निर्भर रही हैं।
जिससे उनके क्रियाकलाप की कलई खुल गई है। पंचायती राज संस्थाओं को 2011-12 में ही 332.68 करोड़ रुपये के संसाधनों की हानि हुई, क्योंकि 31 मार्च 2012 तक कोषागारों से बजट ही नहीं निकाला गया। भारत सरकार की ओर से 2015-16 में दिए गए 1931.30 करोड़ रुपये अनुदान को ग्राम पंचायतों को चार दिन विलंब से दिया गया। इसके चलते प्रदेश शासन को 1.64 करोड़ रुपये का अनावश्यक रूप से ब्याज देना पड़ा। इसके अलावा केंद्र सरकार से 2015-16 में मिले एक और अनुदान 1909.18 करोड़ रुपये राज्य सरकार ने ग्राम पंचायतों को 19 दिन विलंब से दिया। इस पर ग्राम पंचायतों को 6.08 करोड़ रुपये ब्याज का भुगतान भी नहीं किया गया।
ऐसे समय में जब प्रदेश में एक दूसरे के धुर विरोधी दल सपा व बसपा ने हाथ मिला लिया है। ठीक इसी दरम्यान प्रधान महालेखाकार उप्र की पंचायती राज व्यवस्था के तहत आई ऑडिट रिपोर्ट वर्तमान भाजपा सरकार को सियासी लाभ दे सकती है। रिपोर्ट में 2004-05 से 2015-16 तक ग्राम पंचायतों और शहरी स्थानीय निकाय में विकास कार्यों पर बजट के अनाप-शनाप खर्च को दर्शाया गया है। चूंकि इस दौरान प्रदेश में सपा और बसपा की ही सरकार रही इसलिए विधान मंडल के पटल पर रखी गई ऑडिट रिपोर्ट पर सियासी हलचल मचने की संभावना है।
पिछली सपा सरकार से पहले के वर्षों यानी 2004-05 से 2010 तक की ऑडिट रिपोर्ट भी विधान मंडल के पटल पर रखी गई है। जिसमें बताया गया है कि 2004-05 में आगरा, गोरखपुर और बरेली नगर निगम के कर्मचारियों/अधिकारियों को दिए गए अग्रिम 14.56 करोड़ रुपये की वसूली नहीं की गई। बीएसएनएल के विरुद्ध 3.81 करोड़ रुपये के रोड कटिंग प्रभार की वसूली नहीं की गई, जिससे नगर निगम गाजियाबाद और बरेली को राजस्व की हानि हुई।
2005-06 में सफाई कर्मियों को अनुबंध पर रखने के लिए 16.73 करोड़ का अनियमित व्यय वहन किया गया। 2006-07 में नगर पालिका संभल, मुरादाबाद की ओर से सीसी रोड पर लोक निर्माण विभाग से दरों का सत्यापन कराए बिना ठेकेदारों को 34.72 लाख का अधिक भुगतान कर दिया गया। नगर निगम लखनऊ की ओर से 2007-08 में शासनादेशों का अनुपालन सुनिश्चित करने में निष्क्रियता बरती गई, जिसके चलते पांच करोड़ से अधिक का व्यय निष्फल रहा।
2008-09 में नगर निगम बरेली में लेखा संहिता और वित्तीय नियमों का अनुपालन नहीं किया गया जिससे 93.93 लाख रुपये अग्रिम भुगतान का समायोजन नहीं किया गया। 2009-10 में लेखा संहिता और वित्तीय नियमों के प्रावधानों का अनुपालन नहीं किया गया जिससे साढ़े नौ करोड़ रुपये के अग्रिम भुगतान का समायोजन नहीं किया गया।
जनसुविधाओं के नाम पर करोड़ों का अनियमित भुगतान
इलाहाबाद : प्रदेश में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में जनता को मूलभूत सुविधाएं देने के लिए 2011-16 के बीच अनुदान तो खूब मिला, लेकिन सरकार उसका पूरा उपभोग नहीं कर सकी। कुछ जिलों में अनावश्यक खर्च हुआ, कहीं-कहीं कार्यदायी संस्थाओं को किए गए करोड़ों रुपये के भुगतान का कोई लाभ नहीं मिल सका। प्रधान महालेखाकार ने अपनी रिपोर्ट में इसका बिंदुवार जिक्र करते हुए कुछ बड़े जिलों की आख्या प्रस्तुत की है।
निधियों का उपभोग नहीं कर सके
पंचायती राज संस्थाओं को भारत सरकार से 2011-16 के बीच 12765.39 करोड़ रुपये और राज्य सरकार की ओर से 17031.94 करोड़ रुपये का कुल अनुदान मिला था। जिसे विभिन्न कार्यों पर उपभोग किया जाना था, लेकिन लेखा परीक्षकों की ओर से किए गए 202 पंचायती राज संस्थाओं (10 जिला पंचायत, 26 क्षेत्र पंचायत, 166 ग्राम पंचायत) की ऑडिट में पता चला है कि मार्च 2016 के अंत तक इस अनुदान में 172.82 करोड़ रुपये का उपभोग नहीं किया गया।
उपभोग प्रमाण पत्र ही नहीं दिया
तत्कालीन सपा सरकार ने केंद्र सरकार को केवल शहरी स्थानीय निकाय के लिए मिले अनुदान का उपभोग प्रमाण पत्र दिया, जबकि पंचायती राज के विकास कार्यों पर खर्च हुई अनुदान राशि का उपभोग प्रमाण पत्र नहीं दिया गया।
नगरीय ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में खामियां
राज्य की 636 में 604 शहरी स्थानीय निकायों में अपशिष्ट प्रसंस्करण की सुविधाएं स्वीकृत ही नहीं थीं। कुल शहरी स्थानीय निकायों की मात्र 1.4 प्रतिशत ही सुविधाएं क्रियाशील मिली।
स्वच्छ भारत मिशन के धन का उपयोग नहीं
स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत नगरीय ठोस अपशिष्ट प्रबंधन परियोजना निर्माण के लिए भारत सरकार की ओर से अवमुक्त 37.56 करोड़ और राज्य की ओर से 30.9 करोड़ रुपये का उपयोग ही नहीं किया गया। यह राज्य की ओर से बाधित रही।
नगर निगम लखनऊ और नगर निगम कानपुर में कंटेनर भरने की फीस के रूप में 18.10 करोड़ और 19.87 करोड़ रुपये का अनियमित भुगतान किया गया। रॉ वाटर पंपिंग स्टेशन वाराणसी में बिना शुष्क पंप की स्थापना और इसके क्रियाशील होने के परिणाम स्वरूप 2.02 करोड़ रुपये का अनुपयोगी व्यय किया गया। ऐसे ही विश्लेषण किए बिना नगर निगम इलाहाबाद की ओर से डिटेक्शन सिस्टम के क्रय और इसके संचालन के लिए प्रशिक्षण पर एक करोड़ 30 लाख रुपये का व्यय हुआ, जिसका कोई लाभ नहीं मिला।