लखनऊ । कभी बेहद कट्टर दुश्मन माने जाने वाले दल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की बढ़ती नजदीकियों को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी भी इसकी काट खोजने में लगी है। माना जा रहा है कि भाजपा लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस (वीआईपी गेस्ट हाउस) कांड को अतीत के पन्नों से बाहर निकालने के बाद अब इसी के माध्यम से इन दोनों पर हमलावर होगी। चुनावी नजरिए से नजदीक आए दोनों दलों के रिश्ते की यह बेहद कमजोर नब्ज है और भाजपा इसे हवा देकर बसपाई स्वाभिमान को चुनौती देने से नहीं चूकेगी। हालांकि, बसपा इसे बहुत तूल देने के मूड में नहीं है, जबकि सपा इस मामले पर चुप ही रहना चाहती है।
लखनऊ में करीब बाईस वर्ष पहले दो जून 1995 को हुए गेस्ट हाउस कांड के बाद ही समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में घोर राजनीतिक दुश्मनी की शुरुआत हुई थी। बसपा ने घटना को दलितों के अपमान के रूप में पेश किया था और बाद में इसका राजनीतिक असर निचले स्तर तक देखा गया था। इसी कारण जब हाल में हुए फूलपुर और गोरखपुर संसदीय सीट के उपचुनाव में बसपा कार्यकर्ताओं ने सपा उम्मीदवारों के लिए बूथों के बाहर बस्ते लगाए तो यह संकेत था कि खुद मायावती पार्टी के राजनीतिक वजूद के लिए अतीत की इस घटना पर परदा डालने के लिए तैयार हैं। यह प्रदेश की राजनीति में आंधी की तरह छायी भाजपा के मुकाबले का एकमात्र हथियार भी था कि दोनों एक-दूसरे के साथ आएं। इसके बाद ही दोनों उपचुनाव जीतकर इन दलों ने अपनी ताकत का अहसास भी कराया।
भाजपा भले ही इस बात से इंकार करे लेकिन पार्टी नेता इस बात को महसूस करते हैं कि दोनों दलों का मिलना उनके लिए बड़ी चुनौती हो सकती है। इसी कारण उन्होंने आक्रामक ढंग से गेस्ट हाउस कांड को उभारा है। आने वाले दिनों में इस घटना को लेकर और बसपा प्रमुख मायावती पर और भी हमले हो सकते हैं। सपा के मुखिया अखिलेश यादव ने कहा था कि आगे बढऩे के लिए पुरानी बातें भूलनी पड़ती हैैं। दूसरी ओर बसपा भी फिलहाल इससे विचलित नहीं नजर आती। इसीलिए मायावती इस घटना के संदर्भ में अखिलेश यादव के बचाव को खुद उतरीं और डीजीपी के रूप में ओपी सिंह की नियुक्ति को लेकर भाजपा की मंशा पर सवाल भी उठाए।
गौरतलब है कि गेस्ट हाउस कांड के समय ओपी सिंह ही राजधानी के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक थे और उनकी भूमिका पर तब भी बसपा ने सवाल खड़े किए थे। यहां तक कि बाद में जब बसपा की सरकार बनी तो ओपी सिंह को निलंबित भी कर दिया गया था।
क्या था गेस्ट हाउस कांड
गेस्ट हाउस कांड को प्रदेश की राजनीति में काले अध्याय के रूप में देखा जाता है। इसकी पृष्ठभूमि में सपा और बसपा का गठबंधन ही था। अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाए जाने के बाद भाजपा को रोकने के लिए 1993 में कांशीराम और मुलायम सिंह ने मिलकर चुनाव लड़ा था। सपा 256 और बसपा 164 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। सपा 109 सीटें जीतने में कामयाब रही थी, जबकि बसपा को 67 सीटें मिली थीं। बसपा के सहयोग से मुलायम सिंह यादव ने सरकार बनाई लेकिन, यह अधिक दिन तक चल न सकी। इस बीच बसपा की नजदीकियां भाजपा की ओर बढ़ीं। दो जून 1995 को एक रैली में मायावती ने सपा से गठबंधन वापस लेने की घोषणा कर दी। अचानक से हुए इस समर्थन वापसी की घोषणा से मुलायम सरकार अल्पमत में आ गई।
यह लगभग तय था कि बसपा अब भाजपा के सहयोग से सरकार बनाएगी। मायावती ने इसी के मद्देनजर मीराबाई मार्ग स्थित गेस्ट हाउस में अपने विधायकों की बैठक बुला रखी थी। यह खबर किसी तरह से सपाइयों को मिल गई और उन्होंने गेस्ट हाउस पर धावा बोल दिया। सपा नेताओं ने वहां मौजूद विधायकों से मारपीट शुरू कर दी। उनके आक्रामक तेवर देखकर मायावती ने खुद को कमरे में बंद कर लिया। सपाइयों की भीड़ उन्हें गालियां दे रही थी। बसपा विधायक भी भाग गए थे। प्रत्यक्षदर्शी रहे लोग बताते हैं कि आधी रात गेस्ट हाउस पहुंचे भाजपा नेता ब्रह्मïदत्त द्विवेदी ने कमरे का दरवाजा तोड़कर मायावती को बचाया था। मायावती ने बाद में कहा था कि सपाइयों ने उनकी हत्या की साजिश रची थी।