तहलका टुडे टीम
नई दिल्ली, 8 नवंबर: भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने अपने प्रभावशाली न्यायिक करियर का समापन किया, जिसमें उन्होंने संविधान के मूल सिद्धांतों की रक्षा और सामाजिक न्याय की भावना को बढ़ावा दिया। चंद्रचूड़ का कार्यकाल उनकी स्वतंत्र सोच, संवेदनशीलता और एक न्यायप्रिय समाज की दिशा में ऐतिहासिक फैसलों के लिए याद किया जाएगा। इस विदाई पर उन्होंने न्यायिक पद पर अपने अनुभव साझा किए और कहा, “अगर मैंने कभी अदालत में किसी को ठेस पहुंचाई है, तो कृपया मुझे उसके लिए माफ कर दें।” उनके कार्यकाल में ऐसे फैसले आए जिन्होंने न केवल देश के संविधान को मजबूती दी बल्कि समाज के दबे-कुचले वर्गों के हक की आवाज भी बुलंद की।
चंद्रचूड़ ने भारतीय न्यायिक व्यवस्था में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए और अपने निष्पक्ष व संवेदनशील फैसलों से इतिहास रचा। यहां उनके कुछ ऐतिहासिक निर्णयों की चर्चा की जा रही है, जो हमेशा उन्हें एक बेबाक और संवेदनशील मुख्य न्यायाधीश के रूप में याद रखे जाने का कारण बनेंगे:
- निजता का अधिकार: लोकतंत्र की नई परिभाषा
2017 में नौ न्यायाधीशों की पीठ ने एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए निजता को अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार घोषित किया। चंद्रचूड़ की अगुवाई में यह फैसला भारतीयों के लिए निजता के महत्व और उसकी स्वतंत्रता को एक नई ऊंचाई पर ले गया। इस निर्णय का असर डेटा सुरक्षा, आधार से जुड़ी बहसों पर पड़ा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को नए सिरे से परिभाषित किया।
- समलैंगिकता पर अधिकार: धारा 377 का अंत
2018 में चंद्रचूड़ ने धारा 377 को आंशिक रूप से समाप्त कर समलैंगिकता के संबंध में सहमति से बनाए गए संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया। उन्होंने तर्क दिया कि हर व्यक्ति के यौन अभिविन्यास का सम्मान होना चाहिए और इसे निजता का हिस्सा मानते हुए समाज में एक नई सोच का संचार किया।
- इलेक्टोरल बांड पर निर्णय: पारदर्शिता की ओर एक कदम
चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक बताते हुए चंद्रचूड़ की पीठ ने इसे रद्द कर दिया, जिससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता की नई दिशा तय हुई। यह फैसला अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत नागरिकों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को और सशक्त बनाता है।
- अयोध्या विवाद का निपटारा
चंद्रचूड़ के नेतृत्व में पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने अयोध्या में विवादित भूमि को राम मंदिर निर्माण के लिए दे दिया और मुस्लिम पक्ष को मस्जिद निर्माण के लिए वैकल्पिक भूमि प्रदान करने का आदेश दिया। इस फैसले ने एक ऐतिहासिक विवाद को शांतिपूर्ण समाधान की ओर अग्रसर किया और एक नाजुक मसले पर न्यायपालिका की निष्पक्षता की मिसाल कायम की।
- अविवाहित महिलाओं के गर्भपात का अधिकार
प्रजनन स्वायत्तता को सुरक्षित करने वाले इस फैसले में, चंद्रचूड़ ने अविवाहित महिलाओं को विवाहित महिलाओं की तरह 24 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति दी। उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी महिला की वैवाहिक स्थिति को उसकी प्रजनन स्वायत्तता को प्रभावित नहीं करना चाहिए, जिससे महिला अधिकारों की नई परिभाषा तय हुई।
डी. वाई. चंद्रचूड़ का योगदान भारतीय न्यायिक इतिहास का एक सुनहरा अध्याय बन गया है। उनके इन साहसी और संवेदनशील फैसलों ने भारतीय समाज को न केवल संवैधानिक बल्कि नैतिक मजबूती भी प्रदान की है, और यही कारण है कि उनकी यह विदाई एक युग के अंत का प्रतीक है।