“किंतूर से निकली इंसानियत की मशाल: इमाम खुमैनी और हाजी वारिस अली शाह के खानदान का ऐतिहासिक योगदान”
सैयद रिजवान मुस्तफा
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले का किंतूर गांव एक बार फिर दुनिया भर में सुर्खियों में आ गया है। इस छोटे से गांव की मिट्टी, हवा, और पानी ने न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया को इंसानियत, न्याय, और सेवा का संदेश देने वाले दो महान शख्सियतों का संबंध है। एक तरफ हैं इमाम खुमैनी, जिन्होंने ईरान में क्रांति का नेतृत्व किया और दुनिया को इंसानियत, न्याय और समानता का पाठ पढ़ाया, तो दूसरी तरफ हाजी वारिस अली शाह, जिन्होंने “जो रब है वही राम है” के संदेश के साथ मानवता और भाईचारे की अलख जगाई। यह दोनों शख्सियतें एक ही परिवार से ताल्लुक रखती हैं और दोनों का योगदान आज भी प्रेरणादायक बना हुआ है।
इमाम खुमैनी की भारतीय जड़ें
इमाम खुमैनी का जन्म 1902 में ईरान के खुमैन शहर में हुआ था, लेकिन उनके पूर्वज भारत के बाराबंकी जिले के किंतूर गांव से थे। उनके दादा सैय्यद अहमद मूसवी हिंदी का जन्म 1790 में बाराबंकी के सिलौरी गौसपुर तहसील के किंतूर में हुआ था। भारत को आजाद कराने के लिए स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिए थे,ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचारों से त्रस्त थे, सैय्यद अहमद मूसवी हिंदी ने नवाब अवध के साथ इराक के नजफ जियारत करने गए,वहा अंग्रेजो के बॉर्डर पर अजिज करने से कुछ दिन इराक में बाद में फिर ईरान के खुमैन शहर में रहने लगे और यही बसने का निर्णय लिया। यहीं से उनका वंश बढ़ा, लेकिन भारतीय जड़ों को न भूलते हुए उन्होंने अपने नाम के साथ ‘हिंदी’ जोड़ना जारी रखा। उनके बेटे आयतुल्लाह मुस्तफा हिंदी भी इस्लामी धर्मशास्त्र के बड़े विद्वान बने, और तीसरी पीढ़ी में सैय्यद रूहुल्ला खुमैनी, जिन्हें पूरी दुनिया इमाम खुमैनी के नाम से जानती है, ने अपने जीवन का उद्देश्य दुनिया को इंसानियत, न्याय, और समानता का संदेश देना बनाया।
इमाम खुमैनी का जीवन और योगदान
ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक, इमाम खुमैनी ने शाह के तानाशाही शासन के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। उनके नेतृत्व ने न केवल ईरान को एक नई पहचान दी, बल्कि दुनिया भर में उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने का एक नया दृष्टिकोण दिया। खुमैनी का सिद्धांत था कि समाज में न्याय और समानता होनी चाहिए और वह इस्लामी सिद्धांतों पर आधारित हो।
उन्होंने कहा कि “अगर कोई एक आदमी की गुलामी करता है, तो वह पूरी इंसानियत का गुलाम है।” उनका मानना था कि धर्म और राजनीति को एक साथ जोड़ा जाना चाहिए ताकि समाज में न्याय और शांति की स्थापना हो सके। खुमैनी ने हमेशा कमजोरों, गरीबों, और शोषितों के हक में आवाज उठाई और दुनिया के हर कोने में होने वाले अन्याय के खिलाफ खड़े हुए। उन्होंने ईरान को सिर्फ एक देश नहीं बल्कि एक विचारधारा के रूप में स्थापित किया, जो इंसानियत और न्याय की रक्षा के लिए खड़ा है।
हाजी वारिस अली शाह का जीवन और पैगाम
हाजी वारिस अली शाह का जन्म 1819 में उत्तर प्रदेश के देवां शरीफ में हुआ था। उनका जीवन भी एक प्रेरणादायक उदाहरण है। उनके विचारों में धार्मिक सहिष्णुता, एकता, और इंसानियत का संदेश था। उन्होंने कहा, “जो रब है वही राम है,” जो धर्मों के बीच एकता और शांति का प्रतीक बना। हाजी वारिस अली शाह ने हमेशा धार्मिक भेदभाव को समाप्त करने और इंसानियत को सबसे ऊपर रखने की शिक्षा दी। उनके आशीर्वाद से देवां शरीफ में उनकी दरगाह आज भी एकता और भाईचारे का प्रतीक है, जहां हर धर्म और समुदाय के लोग आते हैं और शांति प्राप्त करते हैं।
किंतूर गांव की ऐतिहासिक भूमिका
इमाम खुमैनी के दादा, सैय्यद अहमद मूसवी हिंदी, के परिवार के चचा जात भाई मुफ्ती मोहम्मद अली कुली भी किंतूर गांव में रहते थे। उनके बेटे सिराज हुसैन के तीन बेटे थे: इनायत हुसैन, करामत हुसैन, और रियायत हुसैन। करामत हुसैन ने इतिहास में अपनी अलग पहचान बनाई। वे ब्रिटिश सरकार के पहले मुस्लिम जज बने और भारत में मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा के लिए पहला मुस्लिम गर्ल्स कॉलेज, ‘करामत हुसैन गर्ल्स कॉलेज’, लखनऊ के निशातगंज में स्थापित किया। इस कॉलेज का एक उद्देश्य था कि किंतूर और अन्य इलाकों की लड़कियों को मुफ्त शिक्षा मिले। हालांकि, वर्तमान में शिक्षा माफियाओं ने इस संस्थान पर कब्जा कर लिया है, लेकिन इसका उद्देश्य और महत्व आज भी कायम है।
सैयद शुजाअत हुसैन और उनके वंशज
करामत हुसैन के भाई रियायत हुसैन के वंश में सैयद शुजाअत हुसैन और फिरासत हुसैन जैसे लोग हुए। फिरासत हुसैन के बेटे निहाल काजमी आज भी किंतूर में रहते हैं और अपने पूर्वजों की परंपरा को जीवित रखे हुए हैं। उनका परिवार आज भी मानवता की सेवा में जुटा हुआ है। निहाल काजमी के बेटे राहिल काजमी, असद काजमी, और आदिल काजमी हर साल सर्दियों में कंबल बांटने, बाढ़ पीड़ितों को राहत सामग्री पहुंचाने और जरूरतमंदों की मदद करने का काम करते हैं। यह परिवार ईरान के धार्मिक और सामाजिक आदर्शों को आगे बढ़ाते हुए भारतीय समाज में इंसानियत की सेवा करता आ रहा है।
विकार मेहदी किंतूरी और ज़ीनत काजमी की कोशिशें
इस परिवार के नानिहाल और दाधिहाल से ताल्लुक रखने वाले विकार मेहदी किंतूरी और ज़ीनत काजमी भी अपने पूर्वजों के मानवता के मिशन को आगे बढ़ा रहे हैं। भारत और ईरान सरकार के सहयोग से ये लोग किंतूर गांव में इमाम खुमैनी के नाम पर एक रिफाइनरी, स्कूल, और कॉलेज स्थापित करने की कोशिशों में लगे हुए हैं। यह प्रयास न केवल शिक्षा और विकास के क्षेत्र में एक बड़ी पहल होगी, बल्कि यह इस इलाके के लोगों के लिए रोजगार और बेहतर जीवनस्तर के अवसर भी प्रदान करेगा। इस प्रोजेक्ट पर सरकारी स्तर पर चर्चाएं भी चल रही हैं, जिससे इस ऐतिहासिक गांव की तरक्की के रास्ते खुलने की उम्मीद है।
डॉक्टर रेहान काजमी का योगदान
किंतूर गांव के रिश्तेदारों में डॉक्टर फाजिल का भी एक महत्वपूर्ण योगदान है, जिनकी बहन निहाल काजमी की वालिदा थीं। डॉक्टर फाजिल के बेटे डॉक्टर रेहान काजमी हर हफ्ते एक दिन “इमाम खुमैनी” और “हाजी वारिस अली शाह” के नाम से मुफ्त चिकित्सा शिविर का आयोजन करते हैं। इस कैंप में जरूरतमंदों को मुफ्त चिकित्सा सुविधा दी जाती है, जिससे हजारों लोग लाभान्वित हो रहे हैं। यह इस परिवार की समाज सेवा और मानवता की दिशा में की गई बड़ी पहल है, जो उनके पूर्वजों की शिक्षा और सेवा की परंपरा को आगे बढ़ा रही है।
मौजूदा दौर में आयतुल्लाह खामेनई की भूमिका
इमाम खुमैनी के बाद उनके उत्तराधिकारी आयतुल्लाह अली खामेनई आज ईरान में इंसानियत, न्याय, और समानता के सबसे बड़े पैरोकार माने जाते हैं। उन्होंने अपने गुरु इमाम खुमैनी के बताए रास्ते पर चलते हुए दुनिया भर में मानवता, न्याय, और शांति के संदेश को फैलाने का काम किया है। ईरान के मौजूदा रहनुमा आयतुल्लाह खामेनई ने भी अपने गुरु की तरह ही इंसानियत को सबसे बड़ा धर्म मानते हुए, वैश्विक स्तर पर शांति और समानता के सिद्धांतों को बढ़ावा दिया है।
हाजी वारिस अली शाह और इमाम खुमैनी का पैगाम
हाजी वारिस अली शाह का पैगाम और इमाम खुमैनी की शिक्षाएं आज भी प्रेरणादायक हैं। दोनों ने इंसानियत, सेवा, और न्याय को सबसे ऊपर रखा। जहां हाजी वारिस अली शाह ने धार्मिक एकता का संदेश दिया, वहीं इमाम खुमैनी ने समाज में न्याय और समानता की स्थापना की। दोनों के विचार आज भी दुनिया भर के लोगों को प्रेरित कर रहे हैं और यही पैगाम है कि “सबसे बड़ा धर्म इंसानियत है।”
किंतूर गांव की यह कहानी न केवल एक परिवार की है, बल्कि यह मानवता, न्याय, और सेवा की उस मशाल की है जिसे इमाम खुमैनी और हाजी वारिस अली शाह ने जलाया। यह परिवार हमेशा से इंसानियत, शिक्षा, और समाज सेवा के आदर्शों को जीवित रखे हुए है। चाहे वह करामत हुसैन की शैक्षिक क्रांति हो