तहलका टुडे टीम
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) :आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि हमें किसी का धर्म परिवर्तन नहीं करना है बल्कि जीना सिखाना है। हम पूरी दुनिया को ऐसा सबक देने के लिए भारत भूमि में पैदा हुए हैं।
हमारा संप्रदाय किसी की पूजा प्रणाली को बदले बिना अच्छा इंसान बनाता है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने ये बात शुक्रवार को छत्तीसगढ़ में एक घोष शिविर में कही है।
मालूम हो यूपी में वक़्फ़ खोरी कर बड़ा घोटाला करने वाला टॉमी वसीम रिज़वी ने जेल में जाने से बचने के लिए अराजकता फैलाने और खुराफ़ात करने के बयान के साथ क़ुरआन पाक और पैग़म्बरे इस्लाम स. अ पर कमेंट बाज़ी और किताब लिखकर देश के मान सम्मान को इज़राइल और अमेरिका की ख़ुफ़िया एजेंसियो और आतंकी संघठनो के इशारे पर देश का माहौल खराब करने की साज़िश कुछ हिंदूवादी तथा कथित छुट भय्या संघठनो से मिलकर चल रही हरकतों से भारत की छवि को धूमिल करने के प्रयास कर रहे है।
देश के हालात को देखते हुए और अपना नजरिया साफ करते हुए
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने आगे कहा है कि विश्व गुरु भारत के निर्माण के लिए हम सभी को मिलकर साथ चलना होगा. भागवत ने छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले के मदकू द्वीप में आयोजित 16 नवंबर से 19 नवंबर तक
घोष शिविर के समापन समारोह में कहा, ‘सत्यमेव जयते नानृतम्. सत्य की ही जीत होती है, असत्य की नहीं. झूठ कितनी भी कोशिश कर लेकिन झूठ कभी विजयी नहीं होता है.”
श्री भागवत ने आगे कहा, ‘‘यहां विविधता में एकता है और एकता में विविधता है. भारत ने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा. पूर्व में हमारे पूर्वज यहां से पूरी दुनिया में गए और उन्होंने वहां के देशों को अपना धर्म (सत्य) दिया. लेकिन हमने कभी किसी को बदला नहीं, जो जिसके पास था उसे उसके पास ही रहने दिया. हमने उन्हें ज्ञान दिया, विज्ञान दिया, गणित और आयुर्वेद दिया तथा उन्हें सभ्यता सिखाई. इसलिए हमारे साथ लड़ने वाले चीन के लोग भी यह कहते हुए नहीं सकुचाते कि भारत ने 2000 वर्ष पूर्व ही चीन पर अपनी संस्कृति का प्रभाव जमाया था, क्योंकि उस प्रभाव की याद ही सुखद है दुखद नहीं है.”
उन्होंने कहा कि दुनिया उसी को पीटती है जो दुर्बल है. स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि दुर्बलता ही पाप है. बलशाली का मतलब है संगठित होना. अकेला व्यक्ति बलशाली नहीं हो सकता है. कलयुग में संगठन ही शक्ति मानी जाती है. हम सभी को साथ लेकर चलेंगे, हमें किसी को बदलने की आवश्यकता नहीं है.
श्री भागवत ने आगे कहा‘‘हम सभी को अपने पूर्वजों के उपदेशों को स्मरण करना है. हमारे पूर्वजों के पुण्य का स्मरण करा देने वाले इस क्षेत्र में संकल्प लेना है कि संपूर्ण विश्व को शांति सुख प्रदान करा देने वाला विश्वगुरु भारत गढ़ने के लिए हम सुर में सुर मिलाकर एक ताल में कदम से कदम मिलाकर सौहार्द और समन्वय के साथ आगे बढ़ेंगे.”
उन्होंने घोष प्रदर्शन को लेकर कहा, ‘‘आपने अभी देखा होगा कि इस शिविर में सभी अलग-अलग वाद्य यंत्र बजा रहे थे. वाद्य यंत्र बजाने वाले लोग भी अलग थे लेकिन सभी का सुर मिल रहा था. इस सुर ने हमें बांधकर रखा है. इसी तरह हम अलग-अलग भाषा, अलग-अलग प्रांत से हैं, लेकिन हमारा मूल एक ही है. यह हमारे देश का सुर है और यह हमारी ताकत भी है. और यदि कोई उस सुर को बिगाड़ने का प्रयास करे तो देश का एक ताल है, वह ताल उसको ठीक कर देता है.”