नई दिल्ली: होली का पर्व नज़दीक है और पूरे देश ने पर्व मनाने के लिए तैयारियां शुरू कर दी है. लेकिन दिल्ली के एमसीडी के शिक्षकों को पाई-पाई के लिए तरसना पड़ रहा है. 4 महीनों में उनको 1 महीने का वेतन मिला है. लेकिन बच्चों की फीस, लोन सहित घर खर्च इत्यादि के लिए लिए गए उधार ने ही चंद घंटे में ही खाली हांथ कर दिया है. कुछ टीचर्स तो बीमारी की हालत में इलाज करा पाने असमर्थ है. वहीं, कुछ के अपने इसलिए उनको नज़रअंदाज़ करने लगे हैं, क्योकि उनको लगने लगा है कि वो कहीं उधार ना मांग लें. देश बनाने में गुरु की भूमिका अदा करने वाले खुद दिल्ली के तीन नगर निगम में लगभग 15 हज़ार शिक्षकों के घर में अंधेरा छाया हुआ है. एमसीडी वर्सेज़ दिल्ली सरकार की लड़ाई का असर यहां तक है कि मौजूदा शिक्षकों को कई कई महीनों से तनखाह नहीं मिल पा रहा है. वही, सेवानिवृत हो चुके शिक्षकों को अपनी पेंशन पाने के लिए 4 महीने से दरबदर भटकना पड़ रहा है. जिसके कारण उनके हालात बद से बदतर हो गए हैं. इस पूरी खबर की एनडीटीवी ने तह तक पड़ताल की.
रीता जैन पूर्वी दिल्ली नगर निगम बालिका विद्यालय के घरोली गांव में अध्यापिका के पद पर लगभग 5 साल से कार्यरत हैं. साथ ही और उनके पति मदन लाल मयूर विहार फेस-3 के पॉकेट बी के नगर निगम स्कूल में कार्यरत हैं. इनके दोनों बच्चे एक प्राइवेट स्कूल में 12वीं कक्षा के विद्यार्थी हैं. लगभग 3 महीने से तनख्वाह न मिलने के कारण बच्चों की फीस नहीं भर पा रहे हैं. घर चलाने और बच्चों की फीस जमा करने के लिए लोगों से लगातार मदद मांगते रहने के कारण अब लोग उन्हें नज़रअंदाज़ करने लगे हैं. उनको लगता है की वक्त से इनको तनखाह नहीं मिलती तो वो बकाया कैसे चुकाएंगे. रीता जैन बात करते करते भावुक होकर कहती हैं, “”उधार ली गयी रकम वक्त से चुकता ना कर पाने और बच्चों की ज़रुरतें पूरी ना कर पाने से लोगों के साथ परिवार में खुद से शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है. शिक्षक का मर्तबा तो बहुत है, लेकिन शिक्षा देने वाले हम लोग ज़िन्दगी के उस मुक़ाम पर पहुंच गए हैं कि करो या मारो की स्थित बन गयी है. पूरा परिवार मानसिक दौर से गुज़र रहा है नौकरी करने के बाद खाली हाथ है.”
वो कहती हैं कि मज़दूर भी हम लोगों से बेहतर ज़िन्दगी गुज़र रहे हैं, क्योकि उसको मालूम है कि सुबह से शाम काम करने के बाद दिहाड़ी मिलने पर अपने परिवार के लिए खाने का जुगाड़ तो कर लेगा, लेकिन हम कभी-कभी एक दूसरे का मुंह ताकते-ताकते सो जाते है , मुकेश कुमार गांधी नगर ईस्ट नगर निगम के स्कूल में पढ़ते हैं. इनके 2 बेटे हैं. एक बेटा 9वीं कक्षा में और दूसरा बीबीए का छात्र है. 4 महीने से वेतन ना मिल पाने के कारण घर का खर्च, बच्चों की फीस के साथ किराये के मकान की अदायगी भारी पड़ रही है. यही वजह है कि बच्चों की मकान में पंखे लगाने की जिद पूरी नहीं कर पा रहे हैं. बच्चों की पंखा लगाने की जिद पर हर बार दिलासा देते हैं कि तनख्वाह आने के बाद इस बार पंखे लगवा देंगे. लेकिन वो दिलासा ही रह जाता है. शर्मिंदगी से सिर झुकाना पड़ता है. हालत बद से बदतर होते जा रहे हैं. मुकेश बात करते-करते रोने लगते हैं उनका कहना है कि बच्चों को लगता है की पापा झूठ बोल रहे हैं. स्वाभिमान कहीं का नहीं बचा. बच्चों के लिए कपड़े तक बना पाने में असमर्थ हो गया हूं.
राजनैतिक दलों से नाराज़ मुकेश कहते हैं कि सब एक थाली के चट्टे बट्टे हैं. हमारे हालात भिखारियों से बदतर हो रहे हैं. कम से कम भिखारी दूसरों के आगे हाथ फैला लेते हैं, लेकिन हम किसी के सामने खुलेआम हांथ नहीं फैला सकते. हम तो पढ़े लिखे होकर भी भिखारियों से बदतर हो गए. उनकी पत्नी गीता वर्मा कहती हैं कि कई दिनों से बुखार में तप रही हूं, लेकिन घर में पैसा न होने की वजह से डॉक्टर के पास तक नहीं जा पा रही हूं. उनका कहना है कि अगर डॉक्टर को दिखा भी दें, तो दवाई कहां से आएगी, लेकिन 4 महीने में से 1 महीने की तनख्वाह मिली है. जिसको उधार वालों को चुकता करने के बाद फिर खाली हांथ हो गए.
अंजना छाबड़ा मयूर विहार फेस-1 के स्कूल में पढ़ाती हैं. उनका कहना है कि अपने बच्चों को छोड़कर जब हम भी अपने रोज़ी-रोटी के लिए ही स्कूल जाते हैं, लेकिन जब तनख्वाह नहीं मिलती है, तो परेशानियां सिर चढ़ कर बोलती हैं. वो कहती हैं कि परेशानी उन लोगों के लिए सब से ज़्यादा है, जो पति और पत्नी दोनों ही एमसीडी के विद्यादलों में नौकरी करते हैं. उनके लिए कोई रास्ता ही नहीं है. अंजना एमसीडी अधिकारियों के उस आदेश से नाराज़ हैं, जिसमे अधिकारी फ़ोन पर आदेश देते हैं और सूचना मांगते है. जबकि टीचर्स के लिए स्कूल में मोबाइल का इस्तेमाल नियमानुसार वर्जित है. सारी रिपोर्ट फ़ोन पर हम लोगों से ली जाती है. जबकि फ़ोन विद्यालय द्वारा नहीं दिया जाता. जब किसी टीचर्स को बीएलओ बना दिया जाता है तो उनका फ़ोन नंबर बिना उसकी अनुमति और सूचना दिए बिना नेट पर डाल दिया जाता है. जिसका गलत इस्तेमाल होने का अंदेशा भी लगातार बना रहता है. लेकिन अधिकारी इसे गंभीरता से नहीं लेते.
विभा सिंह गांधी नगर महिला कॉलोनी में टीचर के साथ-साथ टीचर्स के हक की लड़ाई नगर निगम शिक्षक संघ में वरिष्ठ उपाध्यक्ष पद पर रहते हुए एक लम्बे अरसे से लड़ती आ रही हैं. उनका कहना है जब 4 महीने से घर में तनख्वाह ना आये तो उनका दर्द कोई नहीं समझ सकता. हम ही समाज बनाते हैं और हम ही भूखमरी के शिकार हो रहे हैं. हम अपने घर को संजोये रखने के लिए कई बार तनख्वाह के बल पर ईएमआई के ज़रिये मकान, शिक्षा, लोन के अलावा बहुत सी चीज़ें खरीदते हैं. वक्त पर तनख्वाह नहीं जाने पर दिया गया चेक बाउंस होने से दोहरी मार पड़ती है. विभा का कहना है कि एमसीडी के ज़्यादातर टीचर को बैंक ने डिफाल्टर लिस्ट में डाल दिया गया है. जिसकी वजह नियमित रूप से वेतन का न होना बताया जाता है. इस कारण अन्य एमसीडी टीचर्स को भी बैंक लोन देने में आनाकानी करते है. बीमार होने के बाद उत्तर और पूर्वी नगर निगम के टीचर्स को एमसीडी पैनल के रूप में प्राइवेट अस्पताल इलाज करने से मना कर देते हैं. उनका कहना है कि सरकारी अस्पताल में लाइन देख कर ही लोग घबराते है. उनका कहना है कि जब शिक्षा देने वाले गुरु ही रात में भूखा सोयेगा तो देश में नई सुबह की किरण आखिर कैसे अपनी रौशनी फैलाएगी