जेनेवा : तपेदिक यानी ट्यूबर क्लॉसिस आज भी दुनिया का सबसे खतरनाक संक्रामक रोग बना हुआ है। लेकिन हाल के सालों में एक उपलब्धि जरूर हासिल की गई है। वर्ष 2000 के बाद पूरी दुनिया में किए गए प्रयासों की वजह से टीबी से होने वाली लगभग 5.4 करोड़ मौतें टालने में सफलता मिली है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 2018 की वैश्विक टीबी रिपोर्ट में इस बात पर नाखुशी जताई कि दुनिया के विभिन्न देशों ने 2030 तक इस महामारी को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए कुछ ज्यादा नहीं किया है। डब्ल्यूएचओ ने देश व सरकार के उन 50 प्रमुखों से इस संबंध में निर्णायक फैसला करने का आग्रह किया,
जो टीबी पर संयुक्त राष्ट्र के पहली उच्च स्तरीय बैठक में संभवत: अगले सप्ताह हिस्सा लेंगे। रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले सालों में टीबी से मरने वालों की संख्या में कुछ कमी आई है। 2017 में एक अनुमान के मुताबिक 1 करोड़ लोगों को टीबी हुई और इससे 16 लाख मौतें हुईं, जिसमें 3 लाख एचआईवी पॉजिटिव लोग भी शामिल हैं।
टीबी के नए मामले में 2 प्रतिशत की कमी आई है। हालांकि टीबी मामले में बिना रिपोर्ट किए और बिना रोग-निदान के मामले एक बड़ी चुनौती बने हुए हैं। 2017 में जिन 1 करोड़ लोगों को टीबी हुई, उसमें केवल 64 लाख मामले ही आधिकारिक रूप से नेशनल रिपोर्टिंग सिस्टम में दर्ज कराए गए,
जिसमें से 36 लाख लोगों का या तो इलाज नहीं हुआ या रोग की पहचान हुई, लेकिन इसकी रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई। रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक टीबी समाप्त करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए 2025 तक ट्रीटमेंट कवरेज को बढ़ाकर 64 प्रतिशत से 90 प्रतिशत तक करना होगा।
