
तहलका टुडे टीम
लखनऊ:इस दौरे हाज़िर में जहां हर कोई नाम और शौहरत के लिए भूखा है, ऐसे में शब्बीर अहमद जैसे लोग न सिर्फ समाज के लिए नजीर बनते हैं, बल्कि इंसानियत के असल मायने भी सिखाते हैं। टांडा अयोध्या में जन्मे मंजूर हुसैन साहब के तीसरे बेटे शब्बीर अहमद ने शुरुआत से ही अपने अंदर एक जुझारू और खिदमतगुजार जज्बा पाला। उनकी जिंदगी का मकसद साफ था—अल्लाह से डरते हुए लोगों की खिदमत करना, किसी भी तरह की मक्खनबाजी से दूर रहना, और जरूरतमंदों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहना।
शब्बीर अहमद का सफर आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने कभी भी मुश्किलों से हार नहीं मानी। उनकी परवरिश एक ऐसे माहौल में हुई जहां इंसानियत और खिदमत की तालीम सबसे ऊपर थी। उनके वालिद मंजूर हुसैन साहब ने उन्हें सिखाया कि असल जिंदगी का मकसद दूसरों की मदद करना और अपने खुदा के आगे सिर झुकाना है। शब्बीर अहमद ने इस तालीम को अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लिया और एक खिदमतगार के तौर पर समाज में अपनी पहचान बनाई।
शादी के बाद जिंदगी और नेकियों में लगे चार चांद
नगराम से खानवादए सैयद वजाहत हुसैन रिजवी की पोती से शादी के बाद शब्बीर अहमद की जिंदगी में एक नया मोड़ आया। उनके जज्बात और खिदमत के जज्बे में चार चांद लग गए। नगराम का उनका रिश्ता सिर्फ एक शादी तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने इस कस्बे से एक गहरा लगाव पैदा कर लिया। उनकी ज़ौजा का साथ मिलने से उनकी जिंदगी और ज्यादा मुकम्मल हो गई। इस नए पड़ाव पर भी उन्होंने अपने उसूलों को नहीं छोड़ा, बल्कि उन्हें और मजबूत किया।
लखनऊ के सज्जाद बाग में अपने परिवार के साथ रहते हुए, शब्बीर अहमद ने अपने जज्बे और खिदमतगारी को और भी ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनका साफ-सुथरा अंदाज और इंसाफ के साथ जिंदगी गुजारने का तरीका लोगों के दिलों में एक खास जगह बना चुका है। वे न सिर्फ अपने मोहल्ले बल्कि पूरे शहर में अपनी नेकदिली और खिदमतगुजार होने के लिए जाने जाते हैं।
धार्मिक स्थलों की हिफाज़त और समाज सेवा
शब्बीर अहमद की जिंदगी का एक और अहम पहलू धार्मिक स्थलों की हिफाज़त करना है। वे हमेशा से इस बात के हिमायती रहे हैं कि धार्मिक स्थलों को सिर्फ इबादत के लिए ही नहीं, बल्कि समाज को जोड़ने के एक ज़रिया के तौर पर भी देखा जाए। उनकी कोशिश रहती है कि हर धर्म, हर संप्रदाय के लोग एकजुट होकर समाज की तरक्की में योगदान दें। उनके लिए धार्मिक स्थल सिर्फ इबादत की जगह नहीं, बल्कि इंसानियत की तालीम देने का अड्डा हैं।
उनकी इस सोच का नतीजा यह हुआ कि वे धार्मिक स्थलों की हिफाज़त के साथ-साथ वहां होने वाली खिदमत में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। चाहे वह यौमे सज्जाद का कार्यक्रम हो या किसी और धार्मिक आयोजन, शब्बीर अहमद हर वक्त अपने जज्बे के साथ मौजूद रहते हैं। उनके इस खिदमत के जज्बे ने उन्हें समाज में एक अलग मुकाम दिलाया है, जहां लोग उन्हें सिर्फ एक समाजसेवी ही नहीं, बल्कि एक रहनुमा के तौर पर भी देखते हैं।
यूपी जल निगम कॉन्ट्रेक्टर एसोसिएशन में नेतृत्व
शब्बीर अहमद का खिदमत का सफर सिर्फ समाज तक सीमित नहीं है। उन्होंने अपनी लीडरशिप क्वालिटी को भी साबित किया जब वे यूपी जल निगम कॉन्ट्रेक्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष बने। इस पद पर रहते हुए उन्होंने न सिर्फ एसोसिएशन के कामकाज को बेहतर तरीके से अंजाम दिया, बल्कि अपने साथियों के हक के लिए भी हमेशा खड़े रहे। उनकी लीडरशिप का अंदाज बिल्कुल अलग है—वे हर किसी की बात सुनते हैं और फिर एक संतुलित निर्णय लेते हैं। इस वजह से वे अपने साथियों के बीच भी बेहद लोकप्रिय हैं।
एसोसिएशन के अध्यक्ष के तौर पर उनका सबसे बड़ा योगदान यह रहा कि उन्होंने कॉन्ट्रेक्टर समुदाय की आवाज़ को बुलंद किया और उनकी समस्याओं को सुलझाने के लिए हमेशा तैयार रहे। उनका मकसद सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि पूरी कॉन्ट्रेक्टर बिरादरी के लिए खिदमत करना था। इस भूमिका में भी उन्होंने अपने उसी खिदमतगुजार जज्बे को कायम रखा, जो उनकी पहचान है।
नाम और शौहरत से परे एक सच्चा खिदमतगार
शब्बीर अहमद की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे नाम और शौहरत की परवाह नहीं करते। वे अपनी खिदमत को ही अपना असली मकसद मानते हैं। उनके लिए इज्जत और मोहब्बत उस वक्त मायने रखती है जब वह दिल से हासिल हो, न कि किसी मक्खनबाजी या दिखावे से। यही वजह है कि लोग उनकी बेहद इज्जत करते हैं और उन्हें दिल से चाहते हैं। वे कभी भी अपनी खिदमत को दिखावा नहीं बनाते, और यही बात उन्हें दूसरों से अलग करती है।
शब्बीर अहमद का मानना है कि अगर आप अपने दिल से खिदमत कर रहे हैं, तो नाम और शौहरत अपने आप आपके पीछे आएगी। लेकिन उन्होंने कभी भी इसे अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। उनकी जिंदगी का मकसद साफ है—लोगों की मदद करना, समाज की बेहतरी के लिए काम करना, और अल्लाह की राह पर चलते हुए इंसानियत की खिदमत करना।
यौमे सज्जाद कार्यक्रम के रूहे रवा
शब्बीर अहमद की खिदमतगुजारी का एक और अहम पहलू यौमे सज्जाद कार्यक्रम से जुड़ा हुआ है। यह कार्यक्रम समाज में एकजुटता और इंसानियत की तालीम देने का एक बेहतरीन मंच है। शब्बीर अहमद इस कार्यक्रम के रूहे रवा कहे जाते हैं, यानी वे इसके केंद्र बिंदु हैं। हर साल इस कार्यक्रम के आयोजन में उनकी भूमिका बेहद अहम होती है। वे न सिर्फ इसे सफल बनाते हैं, बल्कि इसके जरिए समाज में भाईचारा और मोहब्बत का पैगाम भी देते हैं।
यौमे सज्जाद के आयोजन में उनकी भूमिका सिर्फ एक आयोजक तक सीमित नहीं रहती, बल्कि वे इसे एक मिशन के तौर पर देखते हैं। उनका मानना है कि ऐसे कार्यक्रमों के जरिए समाज को जोड़ने और एक दूसरे की मदद करने की सीख दी जा सकती है। यही वजह है कि वे इस कार्यक्रम के साथ अपने पूरे दिल से जुड़े हुए हैं और इसे हर साल बेहतर से बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं।
समाज की बेहतरी के लिए निस्वार्थ योगदान
शब्बीर अहमद का जीवन समाज की खिदमत के लिए समर्पित है। उनका कोई भी काम दिखावे के लिए नहीं होता, बल्कि वे हर काम दिल से करते हैं। उनकी सोच है कि अगर आप दूसरों की मदद करते हैं तो यह खुदा की खिदमत के बराबर है। यही वजह है कि वे हर वक्त गरीबों, बेसहारा लोगों और जरूरतमंदों की मदद के लिए तैयार रहते हैं।
उनकी इस खिदमत का ही नतीजा है कि लोग उन्हें बेपनाह मोहब्बत करते हैं। वे समाज के हर तबके के लोगों से जुड़ते हैं, चाहे वह अमीर हो या गरीब, और उनके दिलों में अपनी जगह बना लेते हैं। उनके लिए इंसानियत सबसे बड़ा मजहब है, और इसी सोच के साथ वे अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं।
शब्बीर अहमद का जीवन हम सभी के लिए एक प्रेरणा है। उन्होंने बिना किसी दिखावे के, बिना किसी नाम और शौहरत की परवाह किए, सिर्फ खिदमत को अपना मकसद बनाया है। उनकी सोच, उनके उसूल, और उनकी खिदमतगुजारी हमें सिखाती है कि असल जिंदगी का मकसद दूसरों की मदद करना और समाज की बेहतरी के लिए काम करना है।