
तहलका टुडे टीम
लखनवी सरज़मी का सितारा आज ग़ुरूब हो गया,डॉ। योगेश प्रवीण अवध के इतिहास और संस्कृति, विशेष रूप से लखनऊ के एक भारतीय लेखक और विशेषज्ञ थे। वह मेरठ विश्वविद्यालय से साहित्य में डॉक्टरेट के अलावा हिंदी और संस्कृत में परास्नातक थे। वह साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में अपने काम के लिए भारत के अत्यधिक प्रतिष्ठित पुरस्कार पद्म श्री 2020 के प्राप्तकर्ता थे।
लखनऊ और अवध पर अब तक ढेरों किताबें लिख चुके योगेश प्रवीन को पुरस्कार तो इसके पहले भी तमाम मिले, पर पद्मश्री सम्मान उनके लिये बाइसे इज़्ज़त था,सिग्नेचर शेर ‘लखनऊ है तो महज गुंबद-ओ-मीनार नहीं, सिर्फ एक शहर नहीं, कूचा-ए-बाजार नहीं, इसके आंचल में मुहब्बत के फूल खिलते हैं, इसकी गलियों में फरिश्तों के पते मिलते हैं…’ से कहा कि इस शहर से मेरी मोहब्बत किसी से छुपी नहीं है
‘मेरा कोई भी काम, शोध सिर्फ लखनऊ के लिए ही होता है’
इतिहासकार डॉ. योगेश प्रवीन बहूत याद आएंगे
उन्होंने कहा कि मेरा कोई भी काम, शोध सिर्फ लखनऊ के लिए ही होता है। कहानी, उपन्यास, नाटक, कविता समेत तमाम विधाओं में लिखने वाले डॉ. योगेश प्रवीन विद्यांत हिन्दू डिग्री कॉलेज से बतौर प्रवक्ता वर्ष 2002 में सेवानिवृत्त हुए। पिछले चार दशक से पुस्तक लेखन के अलावा समाचार पत्र-पत्रिकाओं में लेखन किया।
अवध और लखनऊ का इतिहास खंगालती कई महत्वपूर्ण किताबों के लिए उन्हें कई पुरस्कार व सम्मान भी मिल चुके हैं। उनकी अब तक 30 से अधिक किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं, जो अवध की संस्कृति और लखनऊ की सांस्कृतिक विरासत पर आधारित हैं।
रामकथा महाकाव्य अपराजिता, उर्दू में कृष्ण पर आधारित विरह बांसुरी के अलावा दास्ताने अवध, ताजेदार अवध, गुलिस्ताने अवध, लखनऊ मॉन्युमेंट्स, लक्ष्मणपुर की आत्मकथा, हिस्ट्री ऑफ लखनऊ कैंट, पत्थर के स्वप्न, अंक विलास, लखनऊनामा, दास्ताने लखनऊ, लखनऊ के मोहल्ले और उन की शान, किताबों के माध्यम से गुजरे लखनऊ के नजारों से रूबरू किताबें खासी चर्चित हैं।
मंच पर बातचीत में छोटी सी छोटी चीज को भी बड़ी औकात का दर्जा देना लखनऊ का मिजाज है, यहां लखौरियों से महल बन जाता है। कच्चे सूत का कमाल है चिकन, जादू सरसों पे पढ़े जाते हैं तरबूज पर नहीं.. बोलते सुनाई देने वाले योगेश प्रवीन को पद्म अवार्ड से सम्मानित किया गया था।
शिया धर्मगुरु आफताबे शरीयत मौलाना कल्बे जवाद नक़वी ने योगेश प्रवीण के निधन पर दुख का इज़हार किया है।