हफ़ीज़ किदवई
आज विश्व शांति दिवस है तो आज ही मीर तक़ी मीर के गुज़रने का दिन भी । मेरे लिए इन दोनों वजहों से आजका दिन हमेशा क़रीब रहा ।
मीर ने लखनऊ की चौखट पर आखरी सांस ली और लखनऊ ने उनके ऊपर सैकड़ो ट्रेन दौड़ाकर हमेशा के लिए शांति छीन ली । अब यह नही पता कि मीर को सुक़ून है भी या नही,क्योंकि सिटी स्टेशन पर दौड़ती रेलगाड़ी और उसके पीछे भागते ज़िन्दगी के सफर पर निकले लोग,मीर के दिल को चीरते होंगे या सुक़ून पहुचाते होंगे,क्या मालूम ।
ख़ैर मीर की कब्र न सही,निशान ए मीर ही सही । हमने उन्हें बेहद सुक़ून की जगह तो सौंप ही दी है । मैं अक्सर सोचता हूँ कि अगर मान लो मीर की कब्र न मिटती तो क्या होता,फिर मान लेता हूँ कि कुछ भी नही होता,क्योंकि एक से एक लोग तो मिट्टी में दफन हैं, किसे उनकी फ़िक्र, जब जिसकी ज़रूरत लगी तो उसपर बाल्टियों मोहब्बत उड़ेल दी,ज़रूरत नही तो उनका ज़िक्र ही नही रहा ।
मीर का आज इंतेक़ाल हुआ,तो इतने लंबे अरसे बाद आजका दिन विश्व शांति दिवस की पहचान पाया । हालांकि दोनों का एक दूसरे से कोई ताल्लुक नही,फिर भी मैं सोचता हूँ कि एक शायर,खासकर बेचैन शायर के मौत ही तो शांति है । फिर रही बात दुनिया के सबसे बड़ी जमात के शायरों में से एक मीर की मौत तो तक़ी मीर के लिए शांति ही होगी । इसलिए यह दिन बहुत हद तक जुड़े भी हैं ।
मैं इतना घुमा फिराकर जानते हैं क्यों कहा रहा हूँ,क्योंकि शांति पर मुझसे नही लिखा जा रहा है । मै कश्मीर देखता हूँ और शांति मुझे सालों से कुएँ में पड़ी एक फूली हुई लाश नज़र आती है । मैं असम की एनआरसी देखता हूँ,लाखों लोगों के होंटो से जनगणमन छीन लिया जाता देखकर,शांति की तरफ मुँह करता हूँ,वह मुझपर थूककर निकल जाती है ।
मैं मीर का दामन पकड़ कर रोते हुए खुद से छिप जाना चाहता हूँ । बताओ उन लड़कियों से कैसे कहें कि आज शांति दिवस है, जिनका बलात्कार होता है, जिनसे नँगे बदन धर्मरक्षक तेल लगवाते हैं, जिनके कपड़े के साथ जिस्म नोचे जाते हैं और जिनके साथ कोई खड़ा नही होना चाहता । बताओ इन्हें विश्व शांति दिवस की मुबारकबाद दूँ ।
एक मज़हब का नशा इतना चढ़ता है कि वह सैकड़ो लोगों के बीच बम बांधकर फट जाता है । सैकड़ों ज़िन्दा लोग लाश बन जाते हैं । उन लोगों को शांति दिवस कैसे समझाऊँ । बताओ उस भीड़ को बताऊँ की शांति क्या है जो गाय, बच्चा चोर जैसे कथित शोर पर और अपने खिलाफ की हर सोच को इकट्ठे होकर मार डालती है । राक्षस बनती इस भीड़ को खुद के खून से सने हुए हाथों और इंसान के गोश्त नोचते दांतों पर गर्व होता है, इन्हें बताऊं विश्व शांति दिवस । दंगो में इंसान से वहशी बनते लोगों और जीते जागते बदन से लाश बनते हुए लोगों को शांति का ताबीज़ कैसे दूँ ।
मैं मीर के पैतियाने बैठकर,खुद को इस भरम में रखना चाहता हूँ कि यहाँ सब शांति शांति है । मुझे बदसूरत तस्वीरें नही पसन्द,इसलिए मुँह मोड़कर मीर का फातिहा पढ़ना ही बेहतर है । वैसे भी मुर्दों पर क्या ही फ़र्क़ पड़ता है हालात का,मीर पर से रेलगाड़ी गुज़ारो, या मुझपर से यह नफरत भरे हालात,कोई फर्क नही पड़ता ।
चलो मीर का याद करें और विश्व शांति दिवस में शांति खोजें,न मिले तो लेकर आएँ । क्योंकि आज नही तो कल, शांति ही लाई जाएगी । क्योंकि शांति ही संसार को चलाएगी और कोई इस पहिये को वक़्ती रोक सकता है मगर सिर्फ वक़्ती क्योंकि संसार नही रुकता है….