तहलका टुडे टीम
बुलंदशहर प्रकरण मे एडीजी जोन प्रशांत कुमार का कहना सही है कि इस घटना में क्षेत्र का माहौल बिगाड़ने की साजिश की गई है। इसकी अलग से जांच करायी जा रही है। माहौल बिगाड़ने के लिये जो भी लोग जिम्मेदार होंगे उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। बताते चले कि पिछले लगभग दो साल में कई बार जोन में गंभीर घटनाओं को अंजाम देने के प्रयास हुए। लेकिन एडीजी जोन श्री प्रशांत कुमार द्वारा समय से सरकार को ऐसी घटनाओं को संभावनाओं की सूचना देकर करायी गई व्यवस्थाओं के चलते हिंसा तो हुई मगर उस पर काबू पा लिया गया। इस बार भी अगर जिला पुलिस और प्रशासन के अधिकारी चाक चैबंद होते तो हिंसा फैलाने के जो प्रयास बुलंदशहर में हुए और इंस्पेक्टर की जांन गई वो शायद नहीं जाती।
गोकशी को लेकर यह कोई नया बवाल नहीं है। आये दिन कहीं ना कहीं इससे संबंध हिंसा की घटनाएं पढ़ने और सुनने को मिल ही जाती है। लेकिन सही बात कहने को कोई तेयार इस संदर्भ में नहीं है। जनता और पुलिस इन्ही वजह से ज्यादातर मौकों पर पिटती और ऐसी घटनाओं को लेकर मरते रहें और अंत में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई किये जाने की बजाए हमारे कुछ राजनीतिक नेता सरकार ओर प्रशासन को दोष देने के नाम पर अपनी राजनीति की दुकान चलाने लगते हैं। कुछ वर्ष पूर्व अमेरिका में वहां की सबसे मजबूत और महत्वपूर्ण इमारत में धमाका हुआ था जितनी बडी वो घटना थी उस नेे पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था। लेकिन जहां तक मुझे याद आता है वहां तक सरकार की आलोचना करने के बजाए दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिये सरकार को भरपूर समर्थन वहां के विपक्ष व नागरिकों द्वारा दिया था। मगर अपने यहां ऐसे मसलों पर सत्ताधारी दल को घेरने और राजनीतिक रोटियां सेकने का सिलसिला जो शुरू होता है वो चलता रहता है चाहे सरकार या सत्ता किसी की भी हों।
मैं यह तो नहीं कहता कि इस मामले में कहीं कोई कोताही नहीं हुई। क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो बुलंदशहर में जहां इतना बड़ा इज्तमा हो रहा था जिसमे कई लाख लोगों ने भाग लिया। उसको ध्यान में रखते हुए वहां के डीएम व एसएसपी को सतर्कता दिखाते हुए अपने उच्चाधिकारियों के माध्यम से या सरकार से भारी संख्या में फोर्स मंगवाकर ओर जिले के हर संवेदनशील क्षेत्र को सुरक्षित करना चाहिये था तथा हर थाने में रिजर्व फोर्स होनी चाहिये थी जो शायद नहीं थी। क्योंकि अगर होती तो इतना बड़ा बवाल गोकशी को लेकर नहीं हो पाता
स्याना कोतवाली के गांव महाव में हुई गोकशी की घटना से गुस्साई भीड़ हाईवे को नहीं घेर पाती। और न हीं इंस्पेक्टर को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता। क्योंकि रिजर्व फोर्स मौके पर पहुंचने में इतनी देर नहीं लगती की कुछ गिनती के लोग पुलिस को पीटते रहे और फिर बचकर भाग भी जाते।
एक तरफ गोकशी को लेकर मचा बवाल और दूसरी तरफ ट्रेन की इलेक्ट्रिक पावर ट्रिप हो जाने के बाद जो हंगामा बुलंदशहर से लौट रहे इज्तमा में शामिल लोगों द्वारा ट्रैन का इंजन फूंकने की कोशिश करने के साथ साथ किया गया वो यह सोचने को मजबूर करता है की अगर जनता उग्र हो जाती तो क्या होता रात 1.42 बजे बुलंदशहर से रवाना हुई स्पेशल के ट्रेन के लोको पायलेट को पीटे जाने और फिर इंजन फूंकने की कोशिश अगर स्थानीय जिला प्रशासन की चक्रव्यहू रचना मजबूत होती तो शायद इतनी बड़ी घटना नहीं हो पाती।
बुलंदशहर जनपद के इनामी गोकश पुलिस की गिरफत से हमेशा बाहर रह जाते बताये जाते है पुलिस यहां गोकशी की घटना रोकने में नाकाम नजर आती है।
बताते चले कि 20 अप्रैल 2017 को सहारनपुर व मुजफ्फरनगर में हुई हिंसा की घटना के बाद कुछ लोगों द्वारा छोटे मोटे किस्से ऐसे किये जाते रहे हैं जिनसे माहौल बिगड़ता हों मगर दो अप्रैल 2018 की भारत बंद की घटना से भी हमारे राजनेता ने शायद सबक नहीं लिया क्योकि अगर वो चाक चौबंद ना होते तो इस प्रकार से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उन्हे माहौल बिगाड़ने की कोशिश अधिकारियों के सफल प्रयासों के चलते नहीं हो पाती।
चर्चा है कि एटा जिला के परगवा निवासी सुबोध कुमार सिंह शहीद इंस्पेक्टर के पिता रामप्रकाश सिंह राठौर जब बरेली में सब इंस्पेक्टर तैनात थे तो मुठभेड़ में ही शहीद हुए थे। उस समय मृतक आश्रित के रूप में 1998 में सुबोध कुमार सिंह की नियुक्ति हुई और वो मेरठ के फलावदा, मवाना, थाने में भी तैनात रहे थे तो 2001 में एक मुठभेड़ में उन पर गोली चलाई गई थी।
विपक्ष द्वारा इसे सुनियोजित षडयंत्र का नतीजा बताया जा रहा है। प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री द्वारा एडीजी इंटेलिजेंस को पूरे प्रकरण की जांच कर रिपोर्ट देने को कहा हैं तथा मृतक इंस्पेक्टर के परिजनों को 50 लाख की नकद आर्थिक सहायता व परिवार में एक सदस्य को नौकरी देने की घोषणा की गई है।
इसे भगवान का आशीर्वाद और मंडल मुख्यालय पर बैठे एडीजी जोन प्रशांत कुमार ,आईजी राम कुमार और कमिश्नर आदि द्वारा जनता से सीधे संपर्क को परिणाम ही कह सकते हैं कि सुबह करीब 11 बजे चिंगरावठी पुलिस चौकी के सामने शुरू हुए बवाल के बाद सीओ स्याना और अन्य पुलिसकर्मियों ने चैकी में बंद होकर जान बचाई तो बराबर में स्थित दिलावरी देवी कन्या पीजी कालेज में बवाली नहीं घुस पाए और यहां मौजूद छात्राएं किसी अनहोनी घटना से बच गई वरना हालात जैसे बताए जाते हैं कि यहां कोई बड़ी घटना भी हो सकती थी। क्योंकि चार घंटे का बवाल कुछ भी करा सकता था क्वा
बवाली सीओ को जिंदा जलाने के लिये प्रयासरत थे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इंस्पेक्टर की मौत पर दुख जताया। कांग्रेस ने हाईकोर्ट के मौजूदा जज से जांच कराने की मांग उठायी है तो पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सीधे सरकार पर निशाना साधा। पुलिस विभाग इस घटना को लेकर सदमें में हैं। मगर जैसा की हमेशा होता है कि इस मामले में भी खबरों के अनुसार इंसपेक्टर के हमराह उसे अकेला छोड़कर भाग गए। अगर वो डटे रहते थे शायद इंसपेक्टर की जान बच जाती।
इस घटना को लेकर समाचार पत्रों में छप रही खबरों व मिल रही सूचनाओं को दृष्टिगत रखकर सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि बुलंदहशर में आयोजित तीन दिवसीय इज्तमा में जुटी लगभग 60 लाख की भीड़ की मौजूदगी के बावजूद गौकशी को लेकर हुई हिंसा फैल नहीं पायी वरना यह कहने में कोई हर्ज नहीं नजर आता कि एडीजी प्रशांत कुमार आदि अधिकारियों द्वारा शायद अपने अनुभव के आधार पर जो व्यवस्थाएं सूझबूझ कर वहां करायी गई और तत्वरित निर्णय घटना होने के बाद लेते हुए मौके पर पहुंचकर स्थिति को नियत्रंण में किया गया।
उससे शायद आजाद भारत में हुई हिंसा की बड़ी घटना में शामिल होने से या प्रकरण बच गया। और जैसा की नागरिकों द्वारा संभावनाएं व्यक्त की जा रही है अगर उपर वाले की मेहरबानी नहीं होती और एडीजी तुरंत निर्णय नहीं लेते तो जैसा की बताया जा रहा है कि 60 लाख लोगों के धार्मिक कार्यक्रम के दौरान यहां कुछ भी हो सकता था। इंस्पेक्टर शहीद हुए हर व्यक्ति को अफसोस है और उनके परिवार के सदस्यों की सभी की संवेदनाएं जुटी है मगर यह सोचकर रूह कांपने लगती है कि अगर हर प्रकार के दबाव से मुक्त पुलिस के एडीजी प्रशांत कुमार के आला अफसर समय से निर्णय नहीं लेते तो तीन दिन के धार्मिक कार्यक्रम के आखिरी दिन जो हुआ वो काफी हृदय विदारक हो सकता था। कुछ लोगों का कहना है कि यह सोची समझी साजिश थी।
क्योंकि कुछ का कहना यह भी बताया जा रहा है कि यह घटना बदला लेने के क्रम में हो सकती है क्योंकि शहीद इंस्पेक्टर कई अन्य विवादित मामलों की जांच भी करने में संलग्न रहें हैं।
एडीजी के नेतृत्व में घटना स्थल पुलिस छावनी बना हुआ है। और सबसे अच्छी बात यह है कि इतने बडे प्रकरण के बावजूद घटनास्थल के आसपास के जिलों के लोगों में व्यवस्था और सुरक्षा के प्रति विश्वास बना हुआ है।
यही कहा जा सकता है कि मृतक पुलिस इंस्पेक्टर और युवक सुमित चैधरी के परिवार के साथ न्याय हों। ओर उन्हे यह मलाल तो हमेशा रहेगा कि दिल से जुड़ा अपना चला गया लेकिन यह अफसोस न हो की उनके साथ न्याय नहीं हुआ।
प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ जी डीजीपी ओपी सिंह और एडीजी मेरठ जोन प्रशांत कुमार, एडीजी कानून व्यवस्था आनंद सिंह आदि को ऐसे प्रकरणों से सीख लेकर वो व्यवस्था जरूर करनी चाहिये कि भविष्य में ऐसी घटनाएं ना हो पाए। जिन 27 व्यक्तियों पर इस प्रकरण में दोषी मानकर मुकदमा दर्ज किया है जांच कराकर उनके खिलाफ कार्रवाई सख्त जरूर होनी चाहिये जिससे भविष्य में किसी मां का लाल किसी की दबंगई के चलते उससे दूर ना हो पाए। बुलंदशहर में जो हुआ वो ठीक नहीं था लेकिन जो नहीं हुआ वो बहुत अच्छा है। और हमारे विपक्षी दलों के नेताओं को सिर्फ आलोचना करने के बजाए सरकार और उच्च पुलिस अधिकारयिों अधिकारियों को प्रोत्साहित करना चाहिये कि वो भविश्य में ऐसी घटनाओं को पुनरावर्ति न होने दें। लेकिन यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि अगर एडीजी जोन जो पिछले कुछ समय में ऐसी घटनाओं को रोकने में काफी सफल रहे हैं अगर वो सक्रिय नहीं होते और अपने अपने सहयोगी अधिकारियों के साथ सक्रियता नहीं दिखाते तो जो होता उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।
जो हुआ वो ठीक नहीं रहा मगर इंस्पेक्टर की कुर्बानी बेकार न जाए इस बात का ध्यान रखते हुए सरकार कुछ ऐसा करे कि भविष्य में इस प्रकार की घटनाएं न हों। और जो गोहत्या जैसे संवेदनशील मुददे होते हैं उन पर देश व जनहित में किसी को भी राजनीति करने का मौका नहीं दिया जाना चाहिये दोषी हिंदू हो या मुस्लिम वो सिर्फ अपराधी होता है। जनता किसी के कर्म का खामियाजा क्यों भुगते? इस बात का अब सरकार प्रशासन व पुलिस के अफसरो को रखना होगा।