नई दिल्ली, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी महत्वपूर्ण और संवेदनशील महकमे की जिम्मेदारी संभालने के साथ- साथ केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार के एकमात्र मुस्लिम कैबिनेट मंत्री भी हैं। अल्पसंख्यक मंत्रालय के कामकाज और देश के मुसलमानों से जुडे़ ज्वलंत मुद्दों पर हिन्दुस्तान के ब्यूरो चीफ मदन जैड़ा ने उनसे बातचीत की। पेश हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश-
मुसलमानों के विकास के लिए आपकी सरकार क्या कर रही है?
सरकार समावेशी विकास कर रही है। इसमें समाज के हर तबके और वर्ग का विकास समाहित है। इसमें मुस्लिम और बाकी दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भी शामिल हैं। मुस्लिमों में शैक्षिक पिछड़ापन आदि दूर करने के लिए अलग से योजनाएं भी आरंभ की गई हैं, जिनके नतीजे अच्छे निकले हैं। जब हम सत्ता में आए थे, तब मुस्लिम लड़कियों में ड्रॉप आउट रेट 75-76 फीसदी तक था। आज यह दर घटकर 40 फीसदी से नीचे आ गई है। हमारा लक्ष्य है कि अगले एक साल में इसे जीरो फीसदी तक ले आएं। पिछले चार वर्षों में करीब 3.5 करोड़ स्कॉलरशिप दी गई, जिनमें से 70 फीसदी मुस्लिम लड़कियों को मिली। दूसरे, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर यानी डीबीटी मॉडल से लाभार्थियों को सौ फीसदी लाभ मिला। पहले पैसा बिचौलियों की जेब में चला जाता था।
आपके मंत्रालय द्वारा शुरू की गई हुनर हाट योजना कितनी सफल रही?
अल्पसंख्यक समाज में हुनर के एक से एक उस्ताद हैं। लेकिन यह जो हमारी अपनी विरासत है, इसे लुप्त होने से बचाने की जरूरत थी। इसलिए हुनर हाट के जरिये इन प्रतिभाओं को बडे़-बडे़ शहरों में प्रदर्शित किया गया। दिल्ली, मुंबई समेत तमाम महत्वपूर्ण स्थानों पर हुनर हाट आयोजित किए गए। इनमें मुस्लिमों को अपने हुनर के उत्पादों को प्रदर्शित करने का मौका मिला। इन आयोजनों से फायदा यह हुआ कि उन्हें अपनी कला को प्रदर्शित करने का मौका मिला। अब तक 1.63 करोड़ शिल्पकारों को अपना हुनर प्रदर्शित करने का मौका मिला है।
तो क्या उन्हें अपने उत्पाद बाजार में लाने के लिए आर्थिक सहायता भी दी जाती है?
इसकी जरूरत ही नहीं है। दरअसल, जब हुनर का प्रदर्शन करने का मौका मिलता है, तो इस दौरान उन्हें देश-विदेश से इतने ऑर्डर मिल जाते हैं, जिससे उन्हें किसी मदद की जरूरत नहीं होती। फिर भी जो वित्तीय योजनाएं पहले से चल रही हैं, जैसे मुद्रा लोन, स्टार्टअप और स्टैंड अप जैसी योजनाएं, उनका लाभ मुस्लिम या कोई भी ले सकता है। मोदीजी की सरकार आने के बाद बहुत सी प्रक्रियाएं सरल कर दी गईं। पांच करोड़ रुपये तक के लोन ऑनलाइन लिए जा सकते हैं।
मुस्लिम बच्चों की पढ़ाई अभी भी मदरसों में होती है, मदरसों की पढ़ाई को आधुनिक बनाने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं?
यह कार्य मानव संसाधन विकास मंत्रालय देखता है। लेकिन हमारे मंत्रालय की तरफ से भी कुछ प्रयास हुए हैं। हमने मदरसों के लिए तीन टी योजना शुरू की, यानी टीचर, टिफिन और टॉयलेट। मदरसों में आधुनिक शिक्षा के लिए प्रशिक्षित टीचरों की जरूरत होती है। हमने मदरसों से कहा कि वे अपने टीचर भेजें, हम उन्हें प्रशिक्षण देंगे, ताकि वे साइंस और कंप्यूटर आदि की शिक्षा दे सकें। अब तक 8,000 शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जा चुका है। दूसरे, मदरसे पहले मिड-डे मील में शामिल नहीं थे। हमने मदरसों को इससे जोड़ा। अब मदरसों में भी मिड-डे मील योजना शुरू हो गई है। सिर्फ मदरसों को इसके लिए आवेदन करना होता है। तीसरे, सभी मदरसों में टॉयलेट बनाने के लिए भी मदद दी जा रही है।
किंतु भाजपा सरकार के आते ही मुस्लिमों में भय क्यों पैदा हो जाता है?
कहीं कोई डर नहीं है। विपक्ष ऐसा माहौल पैदा करता है। आज केंद्र के साथ-साथ कई राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। करीब 72 फीसदी आबादी के ऊपर भाजपा की सरकारें हैं। हमारी सरकारों की उपलब्धि यह रही है कि कोई सांप्रदायिक दंगे नहीं हुए हैं। कोई आतंकी घटना नहीं हुई। दरअसल, दंगों और आतंकी घटनाओं से सबसे ज्यादा पीड़ित मुस्लिम समाज ही होता है। पुलिस जांच के नाम पर उनका उत्पीड़न होता है। यूपीए के दस वर्षों के शासनकाल में बडे़ पैमाने पर मुस्लिमों को आतंकी बनाकर जेल भेजा गया। लेकिन अब वे छूट रहे हैं, क्योंकि उन्हें फंसाया गया था। हमारी कोशिश शांति और सौहार्द्र बनाए रखने की है। पर राजनीतिक विरोधियों को यह रास नहीं आ रहा है। इसलिए कभी असहिष्णुता, तो कभी डर पैदा करते हैं।
भाजपा सरकार में मॉब लिंचिंग की घटनाएं बढ़ी हैं, इस पर आप क्या कहेंगे?
कुछ छिटपुट घटनाएं ऐसी हुई हैं, जो दुर्भाग्यपूर्ण हैं। ऐसी घटनाएं नहीं होनी चाहिए थी। लेकिन यह भी मैं कहूंगा कि ऐसी घटनाएं ज्यादा नहीं हैं। जब भी ऐसे मामले हुए हमारी सरकारों ने, चाहे वह केंद्र की हो या राज्य की, तुरंत कदम उठाए हैं। चौबीस घंटों के भीतर गिरफ्तारी की गई है। सरकार के सख्त रुख के कारण ही आरोपियों की जमानत नहीं हो पा रही है।
आप कहते हैं कि भाजपा को हर वर्ग का समर्थन मिल रहा है, तो मुस्लिमों को क्यों नहीं मिलता?
मुस्लिमों का समर्थन भी भाजपा को मिल रहा है। मैं चुनाव प्रभारी रहा हूं, इसलिए इस बात को जानता हूं। 2014 के लोकसभा चुनावों में 22-23 फीसदी मुस्लिम वोट मोदीजी को मिले हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भी मुस्लिम वोट मिले हैं। यह हमारा आंतरिक विश्लेषण कहता है। हमें उम्मीद है कि 2019 के आम चुनाव में भी अल्पसंख्यकों के वोट मोदीजी को मिलेंगे।
तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने की बजाय सरकार उस पर कानून बनाने में उलझी हुई है, क्यों?
तीन तलाक का मुद्दा लैंगिक समानता का है। लैंगिक समानता संविधान का हिस्सा है। इसलिए सरकार इसके क्रियान्वयन को लेकर प्रतिबद्ध है। तीन तलाक एक कुरीति है। जिस प्रकार से सती प्रथा, बाल विवाह आदि को खत्म किया गया, उसी प्रकार से तीन तलाक को भी खत्म किए जाने की जरूरत थी। कई देशों में इसे खत्म किया जा चुका है। इस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद इसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए कानून बनाने की प्रक्रिया शुरू की गई। कुछ मुद्दों पर मुस्लिम समाज को आपत्ति थी, जिन्हें दूर कर दिया गया है। जल्द कानून पारित हो जाएगा।
अल्पसंख्यक मंत्री के नजरिये से मुस्लिमों का पिछड़ापन कैसे दूर हो सकता है?
जब तक मुस्लिमों की समस्याओं को हिन्दुस्तान की समस्या से अलग हटकर देखते रहेंगे, उनका पिछड़ापन दूर नहीं हो पाएगा। जो समस्याएं मुस्लिमों की हैं, वही देश की हैं। देश की समस्याएं दूर हो जाएंगी, तो मुस्लिमों की भी दूर हो जाएंगी। अशिक्षा, बेरोजगारी आदि समस्याएं हैं। इसलिए सरकार समावेशी विकास की नीति पर चल रही है। मुद्रा योजना शुरू की गई है, तो इसका लाभ मुस्लिमों को भी मिलेगा। आयुष्मान भारत से भी मुसलमानों का फायदा होगा। समावेशी विकास की नीति ही मुस्लिमों के पिछड़ेपन को दूर करेगी।
सरकारी एवं निजी क्षेत्र की नौकरियों में मुस्लिमों की हिस्सेदारी बहुत कम है, कैसे यह बढे़गी?
शिक्षा की कमी की वजह से मुसलमानों में पिछड़ापन है। इसका असर नौकरियों में दिखता है। आज भी 60-65 फीसदी मुस्लिम नौनिहाल प्राथमिक शिक्षा की दहलीज पार नहीं कर पाते। हमारी स्कॉलरशिप योजनाओं से स्थितियां बदल रही हैं। आर्थिक रूप से सक्षम न होना भी पिछड़ने की एक बड़ी वजह है। इसलिए हमने यूपीएससी, बैंकिग आदि परीक्षाओं के लिए अल्पसंख्यक नौजवानों को फ्री कोचिंग की सुविधा शुरू की है। इसके परिणाम अच्छे मिल रहे हैं। पिछले वर्ष यूपीएससी परीक्षा में 126 अल्पसंख्यक छात्रों ने बाजी मारी थी, जिनमें 52 मुस्लिम थे। इस साल 132 चुने गए, जिनमें 56 मुस्लिम हैं। साफ है, प्रयासों का असर दिख रहा है। आगे स्थितियां और बेहतर होंगी।
अन्य अल्पसंख्यक तबकों के लिए मंत्रालय क्या कर रहा है?
केंद्रीय अधिसूचना के अनुसार, मुसलमान, ईसाई, सिख, पारसी, बौद्ध और जैन अल्पसंख्यक हैं। इनकी जरूरतों के हिसाब से कई योजनाएं चल रही हैं। जैसे पारसियों की आबादी कम थी। उनकी संख्या 40-50 हजार के बीच रह गई थी। हमने उनके लिए जियो पारसी योजना शुरू की। इसका मकसद था- आबादी बढ़ाने के लिए उन्हें जागरूक करना और उपयुक्त चिकित्सकीय मदद उपलब्ध कराना। योजना का फायदा हुआ है और अब उनकी आबादी में बढ़ोतरी की सूचनाएं मिल रही हैं।
क्या कश्मीर और पंजाब में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं मिलना चाहिए?
किस राज्य में किसे अल्पसंख्यक घोषित करना है, यह राज्य सरकार तय कर सकती है। केंद्र की अधिसूचना में छह धार्मिक अल्पसंख्यक हैं। लेकिन राज्य अपनी स्थितियों के हिसाब से फैसला करने के लिए स्वतंत्र हैं। जैसे महाराष्ट्र में पारसी अल्पसंख्यक घोषित हैं। जैन को महाराष्ट्र, राजस्थान आदि पहले ही अल्पसंख्यक घोषित कर चुके थे। बाद में केंद्र ने किया।
पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों से क्या उम्मीद रखते हैं?
अधिकतर जगहों पर हमारी सरकार बनेगी। इन चुनावों में कांग्रेस सबसे ज्यादा नुकसान उठाएगी।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक विपक्षी दल एकजुट हो रहे हैं, आपको खतरा नहीं महसूस होता?
कोई खतरा नहीं है, क्योंकि गठबंधन की ड्राइविंग सीट पर बैठने वाले के पास लर्निंग लाइसेंस भी नहीं है। इसलिए गठबंधन की गाड़ी खड्ढे में गिर जाएगी, यह कोई भी अंदाज लगा सकता है।
पर राफेल के रूप में विपक्ष को एक बड़ा चुनावी मुद्दा मिल गया है।
राफेल का मुद्दा बनावटी है और खतरनाक मानसिकता के साथ गढ़ा गया है। इससे देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। सरकार इस पर अपना पक्ष रख चुकी है, और जब जरूरत होगी, रखेगी।
आम चुनाव से ठीक पहले मंदिर मुद्दा क्यों गरम हो जाता है?
ऐसा नहीं है। मंदिर का मुद्दा तो हमेशा गरम रहता है। साधु-संत मांग करते रहते हैं। मेरा मानना है कि इस मामले का अच्छे और सौहार्द्रपूर्ण माहौल में बातचीत के जरिये समाधान हो जाना चाहिए था। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो सका।
पर जब मामला कोर्ट में है, तो आपकी पार्टी मंदिर निर्माण की मांग कर रही है, क्या अल्पसंख्यकों की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचती?
नहीं। क्या अल्पसंख्यकों से आवाज आई कि मंदिर नहीं बनना चाहिए? जहां तक कोर्ट के फैसले की बात है, तो हम कब मना कर रहे हैं? कोर्ट के फैसले का सबको इंतजार है। सिर्फ कांग्रेस इस फैसले को लटकते देखना चाहती है।
ये भी कहा
मुस्लिम आरक्षण पर
आरक्षण दोधारी तलवार है। मेरा मानना है कि आरक्षण के झुनझुने से किसी समाज के सशक्तीकरण की गारंटी नहीं दी जा सकती। बराबर की हिस्सेदारी सुनिश्चित करके ही मुस्लिमों को सशक्त बनाया जा सकता है। सरकार इसी दिशा में काम कर रही है।
हज सब्सिडी पर
हज पर मिलने वाली सब्सिडी मुस्लिमों के लिए गाली बन गई थी। इसलिए उसे खत्म कर मुस्लिमों को सशक्त बनाने का काम किया गया है। दूसरे, सरकार ने सब्सिडी खत्म कर निजी एयरलाइन्सों से बात करके देश के 20 हवाई अड्डों से हज की उड़ानें शुरू कराई हैं। इससे प्रतिस्पद्र्धी माहौल बना। हज यात्रियों को भी अवसर दिए गए कि वे कहीं से यात्रा शुरू कर सकते हैं। नतीजा यह हुआ कि पहले सब्सिडी लेने के बाद भी जितनी रकम उन्हें अपनी जेब से देनी पड़ती थी, इस साल उतनी ही राशि में बिना सब्सिडी वे हज कर सके। कुल 20 में से 16-17 हवाई अड्डों से शुरू हुई हज यात्रा, सब्सिडी वाली हज यात्रा से सस्ती थी। नतीजा यह हुआ कि रिकॉर्ड 1.75 लाख मुस्लिमों ने इस बार हज यात्रा की।
“जब तक मुस्लिमों की समस्याओं को हिन्दुस्तान की समस्या से अलग हटाकर देखते रहेंगे, उनका पिछड़ापन दूर नहीं होगा। जो समस्याएं उनकी हैं, वही देश की हैं। देश की समस्याएं दूर होंगी, तो मुस्लिमों की भी दूर हो जाएंगी।”
बा शुक्रिया हिंदुस्तान